(स्टीवन शेरवुड, यूएनएसडब्ल्यू सिडनी, बेनोइट मिसिगनेक, यूनिवर्सिटी डे टूलूज़ और थॉर्स्टन मौरिट्सन, स्टॉकहोम विश्वविद्यालय)
सिडनी, 27 जून (द कन्वरसेशन) आप जलवायु परिवर्तन को कैसे मापते हैं? एक तरीका है कि लंबे समय तक विभिन्न स्थानों में तापमान दर्ज करना। यह विधि कारगर है, लेकिन प्राकृतिक उतार-चढ़ाव के कारण लंबे समय की प्रवृत्तियों को समझना कठिन हो सकता है।
लेकिन एक और तरीका हमें यह स्पष्ट रूप से बता सकता है कि क्या हो रहा है: यह मापना कि पृथ्वी के वायुमंडल में कितनी गर्मी प्रवेश करती है और कितनी गर्मी बाहर निकलती है। इसे ही पृथ्वी का ऊर्जा संतुलन कहा जाता है और यह अब पूरी तरह से असंतुलित हो चुका है।
हमारे हालिया शोध में पाया गया है कि पिछले 20 वर्षों में यह असंतुलन दोगुने से भी अधिक हो गया है। अन्य शोधकर्ता भी इसी निष्कर्ष पर पहुंचे हैं। यह असंतुलन अब जलवायु मॉडल द्वारा सुझाए गए असंतुलन से कहीं अधिक है।
साल 2000 के दशक के मध्य में, ऊर्जा असंतुलन औसतन 0.6 वाट प्रति वर्ग मीटर था। यह हाल के वर्षों में, औसतत लगभग 1.3 वाट प्रति वर्ग मीटर था। इसका मतलब है कि पृथ्वी की सतह के पास ऊर्जा के संचय की दर दोगुनी हो गई है।
इन निष्कर्षों से पता चलता है कि आने वाले वर्षों में जलवायु परिवर्तन में तेजी आ सकती है। इससे भी बुरी बात यह है कि यह चिंताजनक असंतुलन तब भी उभर रहा है जब अमेरिका में वित्तपोषण की अनिश्चितता गर्मी के प्रवाह पर नजर रखने की हमारी क्षमता को खतरे में डाल रही है।
अंदर आने वाली ऊर्जा, बाहर जाने वाली ऊर्जा :
पृथ्वी की ऊर्जा संतुलन प्रणाली कुछ हद तक आपके बैंक खाते की तरह काम करती है जैसे उसमें पैसा आता है और खर्च होता है। अगर आप कम खर्च करें, तो आपके खाते में पैसे जमा होने लगते हैं। इसी तरह, ऊर्जा इस प्रणाली की मुद्रा है।
पृथ्वी पर जितनी ऊर्जा सूरज से आती है, उतनी ही ऊर्जा वापस अंतरिक्ष में चली जाती है, पृथ्वी पर जीवन इस संतुलन पर निर्भर करता है।
लेकिन जब अंदर आने वाली ऊर्जा बाहर जाने वाली ऊर्जा से अधिक हो जाती है, तो पृथ्वी पर गर्मी ‘‘जमा’’ होने लगती है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग होती है।
सौर ऊर्जा पृथ्वी से टकराती है और इसे गर्म करती है। वायुमंडल में मौजूद ऊष्मा को रोकने वाली ग्रीनहाउस गैस इस ऊर्जा का कुछ हिस्सा रोक कर रखती हैं।
लेकिन कोयले, तेल और गैस के जलने से अब वायुमंडल में दो ट्रिलियन टन से ज़्यादा कार्बन डाइऑक्साइड और दूसरी ग्रीनहाउस गैसें जुड़ गई हैं। ये ज्यादा से ज्यादा ऊष्मा को रोकती हैं और इसे बाहर जाने से रोकती हैं।
इस अतिरिक्त ऊष्मा का कुछ हिस्सा जमीन को गर्म कर रहा है या समुद्री बर्फ, ग्लेशियर और बर्फ की चादरों को पिघला रहा है। लेकिन यह बहुत छोटा अंश है। पूरी 90 प्रतिशत ऊष्मा महासागरों में चली गई है, क्योंकि उनकी ऊष्मा क्षमता बहुत ज्यादा है।
इन निष्कर्षों से पता चलता है कि हाल के वर्षों में पड़े अत्यधिक गर्म साल कोई अपवाद नहीं हैं, बल्कि वे आने वाले दशक या उससे भी लंबे समय तक गर्मी के बढ़ते प्रभाव को दर्शा सकते हैं।
इसका मतलब होगा कि भयंकर हीटवेव, सूखा और अत्यधिक वर्षा जैसी जलवायु आपदाएं जमीन पर और भी ज्यादा गंभीर होंगी। साथ ही समुद्रों में तेज और लंबे समय तक चलने वाली समुद्री हीटवेव भी और ज्यादा तीव्र हो सकती हैं।
उपग्रह विशेष रूप से हमारे लिए एक अग्रिम चेतावनी प्रणाली का काम करते हैं, जो हमें ऊष्मा संग्रहण में हो रहे बदलावों की जानकारी अन्य तरीकों की तुलना में लगभग एक दशक पहले ही दे देते हैं।
लेकिन अमेरिका में वित्त पोषण में कटौती और नीतिगत प्राथमिकताओं में बड़े बदलाव इस जरूरी उपग्रह आधारित जलवायु निगरानी प्रणाली को खतरे में डाल सकते हैं।
द कन्वरसेशन
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