तिरुवनंतपुरम, 27 जून (भाषा) केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने भारतीय संविधान की प्रस्तावना में मौजूद ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों की समीक्षा किये जाने के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के आह्वान की शुक्रवार को निंदा की और इसे ‘हमारे गणतंत्र के मूल सिद्धांतों को नष्ट करने का एक निर्लज्ज प्रयास’ बताया।
विजयन ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘इन सिद्धांतों को बदनाम करने के लिए आपातकाल का हवाला देना एक धोखाधड़ीपूर्ण कदम है, खासकर तब जब आपातकाल के दौरान आरएसएस ने अपना अस्तित्व बचाने के लिए खुद इंदिरा गांधी सरकार के साथ सांठगांठ की थी।’’
उन्होंने कहा, ‘‘संविधान को कमजोर करने के लिए अब उस अवधि का उल्लेख करना सरासर पाखंड और राजनीतिक अवसरवाद को दर्शाता है।’’
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के नेता विजयन का यह बयान आरएसएस द्वारा संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों की समीक्षा करने के आह्वान के एक दिन बाद आया है।
आरएसएस ने कहा कि इन शब्दों को आपातकाल के दौरान शामिल किया गया था और ये कभी भी बी आर आंबेडकर द्वारा तैयार किए गए संविधान का हिस्सा नहीं थे।
विजयन ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद कोई अतिरिक्त शब्द नहीं हैं; ये भारत को परिभाषित करते हैं और उन्होंने लोकतंत्र में विश्वास रखने वाले प्रत्येक नागरिक से आरएसएस के ‘सांप्रदायिक एजेंडे’ के खिलाफ आवाज उठाने का आग्रह किया।
आपातकाल पर आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए आरएसएस सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कहा था, ‘‘बाबासाहेब आंबेडकर ने जो संविधान बनाया, उसकी प्रस्तावना में ये शब्द कभी नहीं थे। आपातकाल के दौरान जब मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए, संसद काम नहीं कर रही थी, न्यायपालिका पंगु हो गई थी, तब ये शब्द जोड़े गए।’’
उन्होंने कहा था कि इस मुद्दे पर बाद में चर्चा हुई लेकिन प्रस्तावना से उन्हें हटाने का कोई प्रयास नहीं किया गया। होसबोले ने कहा, ‘‘इसलिए उन्हें प्रस्तावना में रहना चाहिए या नहीं, इस पर विचार किया जाना चाहिए।’’
भाषा सुरेश पवनेश
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