जम्मू, 27 जून (भाषा) संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों की समीक्षा करने के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के आह्वान का परोक्ष रूप से समर्थन करते हुए केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने शुक्रवार को कहा कि कोई भी सही सोच वाला नागरिक इसका समर्थन करेगा, क्योंकि हर कोई जानता है कि ये शब्द डॉ. भीम राव आंबेडकर द्वारा लिखे गए मूल संविधान का हिस्सा नहीं थे।
आरएसएस ने बृहस्पतिवार को संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों की समीक्षा करने का आह्वान किया था और कहा था कि इन्हें आपातकाल के दौरान शामिल किया गया था और ये कभी भी बी आर आंबेडकर द्वारा तैयार संविधान का हिस्सा नहीं थे।
आरएसएस महासचिव दत्तात्रेय होसबाले ने आपातकाल पर आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा था, ‘‘बाबा साहेब आंबेडकर ने जो संविधान बनाया, उसकी प्रस्तावना में ये शब्द कभी नहीं थे। आपातकाल के दौरान जब मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए, संसद काम नहीं कर रही थी, न्यायपालिका पंगु हो गई थी, तब ये शब्द जोड़े गए।’
सिंह ने पत्रकारों से बातचीत में कहा, ‘‘मुझे लगता है कि कोई भी सही सोच वाला नागरिक इसका समर्थन करेगा, क्योंकि हर कोई जानता है कि यह डॉ. आंबेडकर और उनकी टीम द्वारा लिखे गए मूल संविधान का हिस्सा नहीं था।’’
यह पूछे जाने पर कि क्या भाजपा भारतीय संविधान की प्रस्तावना से ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्दों को हटाने का समर्थन करती है, सिंह ने कहा, ‘‘कौन ऐसा नहीं चाहता? यहां तक कि आप भी ऐसा चाहते होंगे।’’
सिंह ने कहा, ‘‘यह भाजपा बनाम गैर-भाजपा का सवाल नहीं है। यह लोकतांत्रिक और संवैधानिक मूल्यों को संरक्षित करने का सवाल है।’’
उन्होंने कहा कि जो लोग संविधान की किताब उठा रहे हैं वे इसके सबसे बड़े उल्लंघनकर्ता हैं।
इस बारे में भाजपा संसद में विधेयक लाने जा रही है या नहीं, इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, ‘‘मैंने ऐसा नहीं कहा। मुझे ऐसा कहने का अधिकार नहीं है।’’
सिंह ने कहा कि कल ही दत्तात्रेय ने इन शब्दों को हटाने की मांग उठाई थी, ‘‘ये शब्द डॉ. आंबेडकर के मूल संविधान का हिस्सा नहीं थे। ये शब्द डॉ. आंबेडकर की विरासत नहीं हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘आंबेडकर ने हमें दुनिया का सबसे अच्छा संविधान दिया। अगर ये शब्द उनके विचार नहीं थे तो फिर किसकी विचारधारा थी जिसे इसमें शामिल किया गया?’’
कांग्रेस पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने कहा कि आपातकाल के दौरान इन्हीं धाराओं के तहत लोकसभा और राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल पांच साल से बढ़ाकर छह साल कर दिया गया था।
उन्होंने कहा, ‘‘इस प्रावधान का जम्मू-कश्मीर में भी दुरुपयोग किया गया। शेख अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा का कार्यकाल छह साल कर दिया था।’’
उन्होंने कहा, ‘‘जब तीन साल बाद मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर इस प्रावधान को उलट दिया। हालांकि, अनुच्छेद 370 के कारण यह परिवर्तन जम्मू और कश्मीर में कभी लागू नहीं हुआ।’’
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि जब देश की अन्य सभी विधानसभाओं का कार्यकाल पांच साल हो गया, तब भी जम्मू-कश्मीर विधानसभा का कार्यकाल छह साल ही रहा और यह सिलसिला पांच अगस्त 2019 तक जारी रहा।
उन्होंने कहा, ‘‘जम्मू-कश्मीर सरकार ने न केवल आपातकाल के प्रावधानों का दुरुपयोग किया, बल्कि उन्होंने अनुच्छेद 370 को लागू करके उनका दो बार दुरुपयोग किया।’’
भाषा शोभना सुरेश
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