प्रयागराज, 27 जून (भाषा) इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक मामले में कहा है कि सह-जीवन संबंधों की अवधारणा, भारतीय मध्यम वर्गीय समाज में तय नियमों के खिलाफ है।
न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने शादी का झूठा बहाना बनाकर एक लड़की का यौन शोषण करने के आरोपी एक व्यक्ति को जमानत देते हुए यह टिप्पणी की।
उक्त आदेश पारित करते हुए उच्च न्यायालय ने अदालतों में इस तरह के बढ़ते मामलों पर नाखुशी जाहिर की। उच्च न्यायालय ने कहा, “उच्चतम न्यायालय द्वारा सह-जीवन संबंधों को वैध ठहराए जाने के बाद अदालतों में ऐसे मामलों की बाढ़ सी आ गई है। अदालत में ये मामले इसलिए आ रहे हैं क्योंकि सह-जीवन संबंध की अवधारणा भारतीय मध्यम वर्गीय समाज में तय नियमों के खिलाफ है।”
उच्च न्यायालय ने कहा कि सह-जीवन संबंधों से महिलाओं को अपेक्षाकृत अधिक नुकसान है तथा इस तरह के संबंध खत्म होने के बाद पुरुष कहीं भी जा सकते हैं और विवाह तक कर सकते हैं, लेकिन महिलाओं के लिए जीवन साथी तलाशना मुश्किल हो जाता है।
उच्च न्यायालय ने 24 जून को दिए अपने निर्णय में शाने आलम नाम के आरोपी को जमानत दे दी जिसके खिलाफ शादी का बहाना बनाकर लड़की के साथ शारीरिक संबंध बनाने और बाद में शादी से इनकार करने के आरोप में बीएनएस और पॉक्सो कानून की संबंधित धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था।
याचिकाकर्ता के वकील के मुताबिक, याचिकाकर्ता के खिलाफ शादी का झूठा बहाना बनाकर लड़की के साथ दुष्कर्म करने का आरोप है, लेकिन लड़की याचिकाकर्ता के साथ कई स्थानों पर गई। याचिकाकर्ता 22 फरवरी, 2025 से जेल में बंद है और उसका कोई आपराधिक इतिहास नहीं है।
वहीं दूसरी ओर, सरकारी वकील ने कहा कि आरोपी के कृत्य से लड़की का पूरा जीवन बर्बाद हो गया है और कोई भी उससे शादी करने का इच्छुक नहीं है।
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद उच्च न्यायालय ने कहा कि सह-जीवन संबंध की अवधारणा युवा पीढ़ी को काफी आकर्षित करती है, लेकिन इसके बाद के प्रभावों को मौजूदा मामले जैसे मामलों में देखा जा सकता है।
भाषा राजेंद्र
राजकुमार
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