(लक्ष्मी देवी ऐरे)
रामगढ़, 28 जून (भाषा) झारखंड के कोयला खनन क्षेत्र में खनन कंपनियों द्वारा छोड़े गए पानी से भरे गड्ढों को लाभदायक मछली फार्मों में बदला जा रहा है, जिससे विस्थापित समुदायों को आजीविका मिल रही है और ग्रामीण क्षेत्रों में प्रोटीन की कमी दूर हो रही है।
झारखंड में लगभग 1,741 ऐसी बंद कोयला खदानें हैं, जिनमें से कई 1980 के दशक की हैं। कोयला खनन कंपनियों को कानूनन इन खदानों को वैज्ञानिक तरीके से बंद करना होता है, लेकिन इसमें महंगी लागतों के कारण कार्यान्वयन खराब रहा है।
रामगढ़ जिले में 22 एकड़ के आरा कोयला खदान से संचालित कुजू मछुआरा सहकारी समिति इस परिवर्तन में एक सफल कहानी के रूप में उभरी है।
कुजू मछुआरा सहकारी समिति के वर्तमान सचिव शशिकांत महतो ने 2010 में उचित बुनियादी ढांचे के बिना इस पहल की शुरुआत की थी।
महतो ने बताया, “मैंने बिना किसी पिंजरे के पानी से भरी सुनसान आरा कोयला खदान में मछली पालन शुरू किया। मैंने बेतरतीब ढंग से मछली के बीज डाले और अच्छी उपज की।”
पहली बार पकड़ी गई 15 किलो की कतला मछली ने उन्हें एक सरकारी ‘मेले’ में पहला पुरस्कार दिलाया। उन्हें 5,000 रुपये की पुरस्कार राशि के साथ-साथ चार मछली पकड़ने के पिंजरे भी मिले।
तब से यह उद्यम तेजी से आगे बढ़ा है। महतो ने 2012 तक चार पिंजरे लगाए थे और छह से सात टन मछलियां पकड़ी थीं।
संभावना को पहचानते हुए, महतो और अन्य निवासियों ने कुजू मछुआरा सहकारी समिति का गठन किया। सामूहिक दृष्टिकोण ने उन्हें केंद्रीय और राज्य सरकार की योजनाओं तक पहुंचने में सक्षम बनाया, जिसमें प्रोटीन सप्लीमेंट्स के लिए राष्ट्रीय मिशन और जिला खनिज फाउंडेशन ट्रस्ट (डीएमएफटी) से सहयोग शामिल है।
आज, 68 सोसायटी सदस्य 22 एकड़ के आरा कोयला खदान में 126 पिंजरे संचालित करते हैं, जो रामगढ़ जिले में सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड (सीसीएल) के अंतर्गत आता है।
चार करोड़ रुपये की लागत वाले पिंजरे के पूरे बुनियादी ढांचे को 100 प्रतिशत सरकारी सब्सिडी के माध्यम से वित्त पोषित किया गया था।
पिछले साल, सोसायटी ने आरा खदान के गड्ढों से 40 टन मछली का उत्पादन किया, जिसे स्थानीय बाजारों और पड़ोसी राज्य बिहार में बेचा गया।
सोसायटी 1988 से बंद पड़े एक अन्य 16 एकड़ के गड्ढे में भी काम करती है, जहां पिछले साल उन्होंने 10 टन मछली पकड़ी थी।
भाषा अनुराग पाण्डेय
पाण्डेय