(साइमन थियोबाल्ड, यूनिवर्सिटी ऑफ नोट्रे डेम ऑस्ट्रेलिया)
मेलबर्न, 28 जून (द कन्वरसेशन) वर्ष 2015 से 2018 तक, मैंने ईरान के दूसरे सबसे बड़े शहर मशहद में 15 महीने शोध कार्य किया। एक मानवविज्ञानी के रूप में, मेरी रुचि राजधानी तेहरान से बाहर ईरान के आम जनजीवन को समझने में थी। मेरी यह समझने में भी दिलचस्पी थी कि क्या 1979 की क्रांति की महत्वाकांक्षाएं ‘आम’ ईरानियों में भी जीवित हैं, न कि सिर्फ राजनीतिक अभिजात वर्ग में।
मैं पहले एक विश्वविद्यालय परिसर में रहा, जहां मैंने फारसी सीखी। बाद में मैं ईरानी परिवारों के साथ रहा। मैंने ऐसे सैकड़ों लोगों के साक्षात्कार किए जिनके राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक विचारों का दायरा बहुत व्यापक था। उनमें इस्लामिक गणराज्य के विरोधी, समर्थक और कई ऐसे लोग शामिल थे जो इन दोनों के बीच के थे।
जो साक्षात्कार मैंने लिए, उनसे मुझे ईरान में विचारों और अनुभवों की विविधता का पता चला और यह भी कि ईरानी क्या मानते हैं, इसके बारे में कोई एक समान बयान देना कितना मुश्किल है।
शासन के प्रति विद्वेष की गहराई को मापना
जब 13 जून को इज़राइल ने ईरान पर हमले शुरू किए, जिनमें कई शीर्ष सैन्य कमांडरों की मौत हो गई, तो अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थानों और ईरानी प्रवासियों द्वारा संचालित समाचार माध्यमों ने ऐसी तस्वीरें दिखाईं, जिनमें ईरानी नागरिक इन अलोकप्रिय शासन अधिकारियों की मौत पर खुशी जाहिर करते नज़र आ रहे थे।
मेरे कार्यक्षेत्र के मित्रों ने भी इन जश्नों को रेखांकित किया, हालांकि वे हमेशा उनसे सहमत नहीं थे। कई लोगों को डर था कि ईरान और इजराइल के बीच बड़े संघर्ष का असर हो सकता है।
इन भावनाओं को संदर्भ में रखने की कोशिश करते हुए, कई विश्लेषकों ने नीदरलैंड स्थित ‘गमान’ नामक एक स्वतंत्र संगठन द्वारा 2019 में किए गए सर्वेक्षण की ओर इशारा किया है, जिसमें ईरानी जनता की राय जानने की कोशिश की गयी है। इस सर्वेक्षण से पता चला है कि अगर ईरान के शासन पर स्वतंत्र जनमत संग्रह कराया जाता है, तो देश में रहने वाले 79 प्रतिशत ईरानी इस्लामिक गणराज्य के खिलाफ मतदान करेंगे।
इन उदाहरणों को इस्लामिक गणराज्य के लिए समर्थन की कमी के संकेतक के रूप में देखना गलत नहीं है। लेकिन जब खबरों में छपी बातों को तथ्यों के रूप में उपयोग किया जाता है, तो वे ईरान में जीवन की जटिलताओं से अलग हो जाते हैं। यह हमें विचारधारा और व्यावहारिकता, शासन के समर्थन और विरोध और राज्य एवं समाज के बीच संबंधों के बारे में गहन प्रश्न पूछने से हतोत्साहित कर सकता है।
एक अधिक सूक्ष्म दृष्टिकोण
ईरान पर समाचार रिपोर्टिंग ने एक ऐसी प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया है, जिसमें ईरानी राज्य को एकरूप, अत्यधिक वैचारिक और आबादी से मौलिक रूप से अलग देखा जाता है।
परन्तु राज्य और लोगों के बीच हम कहां रेखा खींचें? इसका कोई आसान उत्तर नहीं है।
जब मैं ईरान में रहता था, तो मेरे शोध में भाग लेने वाले कई लोग सरकारी कर्मचारी थे – सरकारी संस्थानों में शिक्षक, विश्वविद्यालय के व्याख्याता, प्रशासनिक कर्मचारी। उनमें से कई लोगों के क्रांति की विरासत और देश के भविष्य के बारे में मजबूत एवं विविध विचार थे।
वे कभी-कभी देश/शासन के उन विमर्शों की ओर इशारा करते थे जिनसे वे सहमत होते थे, उदाहरण के लिए ईरान का राष्ट्रीय आत्मनिर्णय का अधिकार, विदेशी प्रभाव से मुक्ति। वे कई बातों से असहमत भी थे, जैसे कि ‘अमेरिका मुर्दाबाद’ के नारे।
यह दुविधा मेरी एक फारसी शिक्षिका में स्पष्ट नजर आती थी। वह राज्य की कर्मचारी थीं, उन्होंने क्रांति की वर्षगांठ मनाने वाली वार्षिक परेड में भाग लेने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा, ‘‘हमारे मन में अमेरिका के प्रति गर्मजोशी का अहसास है।’’ दूसरी ओर, वह फलस्तीनी मुक्ति के पक्ष में सरकार द्वारा आयोजित विरोध प्रदर्शनों में खुशी-खुशी शामिल हुईं।
या मशहद में मिले एक युवा सरकारी कर्मचारी को ही लें (जिसने कहा),‘‘हम दूसरे देशों (के दखल) से स्वतंत्र होना चाहते हैं, लेकिन इस तरह नहीं।’’
संकीर्ण अर्थ में, ‘राज्य/शासन’ के बारे में चर्चा ‘इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (आईआरजीसी)’ और ‘बासिज’ जैसे संगठनों के संदर्भ हो सकती है। ‘बासिज’ आईआरजीसी के भीतर अर्धसैनिक बल है जिसने हाल के दशकों में असहमति पर कठोर कार्रवाई की है। दोनों को अक्सर वैचारिक रूप से गहराई से प्रतिबद्ध माना जाता है।
उदाहरण के लिए, अमेरिका में रहने वाले ईरानी शिक्षाविद और लेखक सईद गोलकर ईरान को एक ‘बंधक समाज’ कहते हैं। उनका मानना है कि नागरिक संस्था होने के बजाय, ईरानी लोग खूंखार बासिज के जाल में फंसे हुए हैं, जो विश्वविद्यालयों और स्कूलों जैसे कई संस्थानों में अपनी मौजूदगी के जरिए नियंत्रण बनाए रखते हैं।
फिर से, यह दृष्टिकोण गलत नहीं है। लेकिन बासिज और रिवोल्यूशनरी गार्ड के बीच भी, यह अनुमान लगाना मुश्किल हो सकता है कि ये संगठन वास्तव में कितने वैचारिक और समरूप हैं।
सबसे पहले तो, आईआरजीसी अपने पदों को भरने के लिए केवल वैचारिक रूप से चयनित समर्थकों पर ही नहीं, बल्कि जबरन भर्ती किए गए सैनिकों पर भी निर्भर करता है। ये सदस्य भी हमेशा वैचारिक रूप से एकरूप नहीं होते, जैसा कि अमेरिका-स्थित मानवविज्ञानी नारगेस बजोगली ने उल्लेख किया है, जिन्होंने तेहरान में राज्य/शासन समर्थक फ़िल्म निर्माताओं के साथ काम किया है।’
बीच की तस्वीर
इसके अलावा, ईरान एक जातीय रूप से विविध देश है। इसकी जनसंख्या 9.2 करोड़ है, जिनमें फ़ारसी (पर्शियन) मूल के लोगों की संख्या थोड़ी ज्यादा है। देश में अज़ेरी, कुर्द, अरब, बलोच, तुर्कमेन सहित कई अन्य अल्पसंख्यक समुदाय भी रहते हैं।
ईरान धार्मिक रूप से भी विविधता वाला देश है। हालांकि देश में शिया समुदाय की आबादी बहुसंख्यक है, लेकिन साथ ही लगभग 10 से 15 प्रतिशत आबादी सुन्नी मुस्लिम समुदाय की भी है। इसके अतिरिक्त, देश में ईसाई, यहूदी, ज़रथुस्त्री, बहाई और अन्य धर्मों के छोटे-छोटे समुदाय भी मौजूद हैं।
ईरान में सामाजिक और आर्थिक वर्गों के बीच मौजूद गहरे अंतर भी अक्सर नजरअंदाज कर दिये जाते हैं।
मैंने देखा कि सरकारी प्रचारतंत्र अक्सर इस सामाजिक और सांस्कृतिक विविधता को नजरअंदाज कर उसे एकरूप दिखाने की कोशिश करता है। ईरान विषयक ऑस्ट्रेलियाई विद्वान जेम्स बैरी ने भी इसी तरह की प्रक्रिया की ओर ध्यान दिलाया है।
ईरान छोड़ने के बाद से मैंने प्रवासी ईरानियों की कई आवाज़ों को करीब से सुना और समझा है। सोशल मीडिया पर विपक्षी समूह काफी मुखर हैं, विशेष रूप से वे राजशाही समर्थक जो अपदस्थ शाह के बेटे रेज़ा पहलवी का समर्थन करते हैं।
इन समूहों का अनुसरण करते हुए मैंने यह प्रवृत्ति भी देखी है कि वे ऐसे बोलते हैं मानो वे पूरे ईरानी समाज की आवाज़ हों। जैसे ‘ईरानी शाह का समर्थन करते हैं’ या ‘ईरानी पेरिस स्थित विपक्षी नेता मरियम रजवी का समर्थन करते हैं।
चाहे ईरान के भीतर हो या प्रवासी समुदायों में, अक्सर शासन को भी एक विदेशी साज़िश के थोपे गए रूप के तौर पर देखा जाता है। यह दृष्टिकोण इस्लामी गणराज्य और उसके द्वारा निर्मित जटिल सामाजिक-राजनीतिक संबंधों को पूरी तरह से खारिज कर देता है। एक बार फिर, इस तरह की सोच ईरान की विविधता को सपाट और एकरूप बना देती है।
पिछले कुछ वर्षों में राजनीतिक पहचान और सामाजिक विभाजन पहले से अधिक गहरा और स्पष्ट होता गया है। इसका परिणाम यह है कि कई ईरानियों के बीच राज्य/शासन और समाज के बीच की खाई को लेकर धारणा और भी गहरी होती जा रही है। यह स्थिति न केवल ईरान के भीतर देखने को मिलती है, बल्कि विशेष रूप से प्रवासी ईरानी समुदायों में और भी अधिक स्पष्ट रूप से सामने आती है।
देशभर में दशकों से रुक-रुक कर हो रहे विरोध प्रदर्शनों और सिविल नाफरमानी आंदोलनों से यह साफ होता है कि बहुत से लोगों के लिए मौजूदा व्यवस्था अब उनकी उम्मीदों और आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व नहीं करती। यह स्थिति विशेष रूप से युवाओं के बीच स्पष्ट है, जो देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा हैं।
भाषा
राजकुमार पवनेश
पवनेश