27.8 C
Jaipur
Saturday, June 28, 2025

कोल्हापुरी चप्पल सवा लाख रुपये में बेच रहा प्राडा, विवाद बढ़ने पर बताई ‘प्रेरणा’

Newsकोल्हापुरी चप्पल सवा लाख रुपये में बेच रहा प्राडा, विवाद बढ़ने पर बताई ‘प्रेरणा’

(मणिक गुप्ता)

नयी दिल्ली, 28 जून (भाषा) सस्ती व टिकाऊ और आम लोगों की बरसों से पसंदीदा रही कोल्हापुरी चप्पल अब मिलान में धूम मचा रही है हालांकि हाथ से बनाई जाने वाली चमड़े के इस चप्पल को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है, क्योंकि दिग्गज फैशन डिजाइनर कंपनी प्राडा यह चप्पल सवा लाख रुपये में बेच रही है।

बरसों से भारतीय शिल्प का प्रतीक रही कोल्हापुरी चप्पल की हूबहू नकल कर इटली की बड़ी कंपनी प्राडा ने इसे ‘स्प्रिंग/समर 2026’ शो में प्रदर्शित किया, जिसके बाद इसका श्रेय दिये जाने को लेकर लोगों के बीच बहस छिड़ गयी।

दशकों तक शिल्पकारों के साथ काम करने वाली डिजाइनर और कार्यकर्ता लैला तैयबजी ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, “मैं इस बात से बेहद व्यथित और निराश हूं कि जिस तरह से प्राडा ने भारतीय और बेहद पारंपरिक चीज को अपना बनाकर पेश किया है और वे भी शिल्पकारों या उस संस्कृति को कोई बिना श्रेय दिये। यह इस बात को दर्शाता है कि कैसे हम भारत में अक्सर अपनी विरासत को कम आंकते हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘हम लोग इसे मामूली ‘हस्तकला’ के रूप में नजरअंदाज कर देते हैं, जबकि दुनिया इसे विलासिता के रूप में पेश करती है।”

‘दस्तकार’ की अध्यक्ष ने कहा, “अब समय आ गया है कि हम स्वीकार करें कि भारत में असाधारण कौशल और ज्ञान प्रणालियां हैं। हमें उन्हें पहचानना चाहिए, उनकी रक्षा करनी चाहिए और गर्व के साथ दुनिया के सामने पेश करना चाहिए, इससे पहले कि दूसरे हमारी पहचान चुरा लें और हमें बेच दें।”

कई दिनों बाद जब भारत में इस बात को लेकर विवाद बढ़ गया तो प्राडा ने स्वीकार किया और कहा कि डिजाइन भारतीय हस्तनिर्मित चप्पल से ‘प्रेरित’ है।

प्राडा ने कहा कि ‘मेन्स 2026 फैशन शो’ में जो सैंडल प्रदर्शित की गयी वे अब भी डिजाइन चरण में हैं और रैंप पर मॉडलों द्वारा पहनी गयी, किसी भी चप्पल के व्यावसायीकरण की पुष्टि नहीं हुई है।

प्राडा के कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी के ग्रुप हेड लोरेंजो बर्टेली ने ‘महाराष्ट्र चैंबर ऑफ कॉमर्स, इंडस्ट्री एंड एग्रीकल्चर’ के एक पत्र के जवाब में कहा, “हम जिम्मेदार डिजाइन तौर तरीकों, सांस्कृतिक जुड़ाव को बढ़ावा देने और स्थानीय भारतीय कारीगर समुदायों के साथ सार्थक आदान-प्रदान के लिए बातचीत शुरू करने के लिए प्रतिबद्ध हैं, जैसा कि हमने अतीत में अन्य उत्पादों में किया है ताकि उनके शिल्प की सही पहचान सुनिश्चित हो सके।”

कोल्हापुरी चप्पलें आमतौर पर महाराष्ट्र के कोल्हापुर शहर, सांगली, सतारा और सोलापुर के आसपास के जिलों में हस्तनिर्मित की जाती हैं, जहां से इन्हें यह नाम भी मिला है।

कोल्हापुरी चप्पलों का निर्माण 12वीं या 13वीं शताब्दी से चला आ रहा है। मूल रूप से इस क्षेत्र के राजघरानों द्वारा संरक्षित कोल्हापुरी चप्पल स्थानीय मोची समुदाय द्वारा वनस्पति-टैन्ड चमड़े का उपयोग करके तैयार की जाती थीं और पूरी तरह से हाथ से बनाई जाती थीं।

इसमें किसी कील या सिंथेटिक घटकों का उपयोग नहीं किया जाता है।

प्राडा के खिलाफ एक जनहित याचिका दायर करने की प्रक्रिया भी जारी है।

भाषा जितेंद्र रंजन

रंजन

Check out our other content

Check out other tags:

Most Popular Articles