नयी दिल्ली, 28 जून (भाषा) आपातकाल की 50वीं बरसी पर शनिवार को दिल्ली विधानसभा में एक संगोष्ठी आयोजित की गई, जिसमें नेताओं, पत्रकारों और नागरिक संस्थाओं के सदस्यों ने इस अवधि को भारत के लोकतांत्रिक इतिहास के सबसे काले अध्यायों में से एक बताया।
एक आधिकारिक बयान में कहा गया कि ‘‘ना भूलें, ना क्षमा करें’’ शीर्षक वाले इस कार्यक्रम में नये सिरे से राष्ट्रीय आत्मावलोकन और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए प्रतिबद्धता का आह्वान किया गया।
केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने उपस्थित लोगों से कहा कि आपातकाल लोकतांत्रिक लोकाचार की कमी के कारण लगाया गया था, ऐसी प्रवृत्तियां अभी भी देश के राजनीतिक परिदृश्य में मौजूद हैं।
दिल्ली विधानसभा के अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता ने आपातकाल के दौरान की गई ज्यादतियों की पूरी जांच के लिए एक नये आयोग के गठन की मांग की। उन्होंने कहा कि 1978 में गठित शाह आयोग की रिपोर्ट संवैधानिक उल्लंघनों, मानवाधिकारों के हनन और प्रशासनिक अतिक्रमण की सीमा का पूरी तरह से दस्तावेजीकरण करने में असमर्थ रही थी।
गुप्ता ने आपातकाल के दौरान 42वें संशोधन के माध्यम से संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ और ‘पंथनिरपेक्ष’ शब्दों को विवादास्पद रूप से शामिल किये जाने पर भी सवाल उठाया।
पूर्व केंद्रीय मंत्री सत्यनारायण जटिया ने कहा कि प्रस्तावना संविधान के मूल मूल्यों को प्रतिबिंबित करती है और इसकी शुचिता को बनाए रखा जाना चाहिए।
इंडिया टीवी के प्रधान संपादक एवं वरिष्ठ पत्रकार रजत शर्मा ने आपातकाल के दौरान 17 वर्षीय छात्र कार्यकर्ता के रूप में अपनी गिरफ्तारी का व्यक्तिगत अनुभव साझा किया।
कार्यक्रम में विधानसभा उपाध्यक्ष मोहन सिंह बिष्ट, मुख्य सचेतक अभय वर्मा, पूर्व सांसद रमेश बिधूड़ी, विधायक, पत्रकार, विद्वान, संविधान विशेषज्ञ भी शामिल हुए।
भाषा सुभाष दिलीप
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