(तस्वीरों के साथ)
नयी दिल्ली, 28 जून (भाषा) शुभांशु शुक्ला और अन्य अंतरिक्ष यात्रियों ने अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) पर अपने 14 दिन के प्रवास की शुरुआत करते हुए ‘गाजर का हलवा’, ‘मूंग दाल का हलवा’ और ‘आम रस’ का लुत्फ उठाया।
शुक्ला ने शनिवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ 18 मिनट की बातचीत में ये विवरण साझा किए। यह बातचीत 400 किलोमीटर की ऊंचाई पर पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन से की गई।
शुक्ला ने प्रधानमंत्री से कहा, ‘‘हां, मैं गाजर का हलवा, मूंग दाल का हलवा और आम रस लेकर आया हूं। मैं चाहता था कि दूसरे देशों से मेरे साथ आए सभी लोग स्वादिष्ट भारतीय व्यंजनों का आनंद लें। हम सभी ने इसे एक साथ खाया और सभी को यह पसंद आया।’’
मोदी ने शुक्ला से पूछा था क्या उन्होंने अपने साथी अंतरिक्ष यात्रियों के साथ कोई भारतीय व्यंजन साझा किया है।
शुक्ला वाणिज्यिक ‘एक्सिओम-4’ मिशन के तहत तीन अन्य अंतरिक्ष यात्रियों के साथ बृहस्पतिवार को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पहुंचे, जहां वे 14 दिन तक रुकेंगे और इस दौरान अंतरिक्ष यात्री कई वैज्ञानिक प्रयोग करेंगे।
बृहस्पतिवार को ‘ऑर्बिटल लैब’ पहुंचने के बाद, शुक्ला और तीन अंतरिक्ष यात्रियों ने पूरा दिन अपने शयन कक्षों को व्यवस्थित करने में बिताया।
कमांडर पैगी व्हिटसन एयरलॉक में, शुक्ला ड्रैगन में, स्लावोज़ ‘‘सुवे’’ उज़्नान्स्की-विस्नीव्स्की कोलंबस में और टिबोर कापू जापानी प्रयोग मॉड्यूल (जेईएम) में हैं।
उन्होंने ‘एक्सपीडिशन 73’ के चालक दल के साथ हैंडओवर गतिविधियां पूरी कीं और ‘माइक्रोग्रैविटी’ में ठहरने के लिए खुद को उस अनुरूप ढालना शुरू कर दिया।
ड्रैगन में आपातकालीन प्रोटोकॉल की समीक्षा करने सहित प्रमुख संचालन कार्य भी पूरे किए गए। बातचीत के दौरान, शुक्ला ने प्रधानमंत्री को अंतरिक्ष में किए जा रहे विभिन्न प्रयोगों के बारे में जानकारी दी।
अंतरिक्ष और पृथ्वी के बीच किस तरह का अंतर है, इस पर प्रतिक्रिया देते हुए शुक्ला ने बताया कि अंतरिक्ष में सब कुछ जमीन पर मिले प्रशिक्षण से अलग लगता है।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी से बात करते समय उनके पैर बंधे हुए थे, अन्यथा वह तैरने लगते। उन्होंने कहा कि पानी पीने या सोने जैसे सरल कार्य अंतरिक्ष में महत्वपूर्ण चुनौतियां बन जाती हैं।
शुक्ला ने बताया कि कोई व्यक्ति छत पर, दीवारों पर या कहीं भी सो सकता है, क्योंकि वातावरण ही कुछ ऐसा होता है।
उन्होंने कहा, ‘‘इस बदले हुए वातावरण में समायोजन करने में एक या दो दिन लगते हैं, लेकिन यह अनुभव विज्ञान और आश्चर्य का एक सुंदर सामंजस्य है।’’
भाषा सुभाष पवनेश
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