नयी दिल्ली, 29 जून (भाषा) भारत में कई कैंसर रोग विशेषज्ञों ने ‘ह्यूमन पैपिलोमावायरस’ (एचपीवी) को लेकर चिंता जताई है और कहा है कि यह युवा भारतीयों विशेषरूप से 20 से 30 साल तक की उम्र के युवाओं में कैंसर के मामलों में वृद्धि का एक प्रमुख कारक बन रहा है।
‘सर्वाइकल’, मुंह के कैंसर और ऑरोफरींजियल (सिर व गले के) कैंसर के कई मामलों का संबंध एचपीवी संक्रमण (शरीर के अलग-अलग हिस्सों पर मस्से बनना) से रहा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर तत्काल कदम नहीं उठाए गए तो भारत रोकथाम योग्य कैंसर संकट बन जाएगा।
नयी दिल्ली स्थित ऐमरिक्स कैंसर अस्पताल में मेडिकल ओंकोलॉजी के प्रमुख डॉ आशीष गुप्ता ने कहा, ‘‘एचपीवी से संबंधित कैंसर अनुमान से कहीं पहले सामने आ रहे हैं। 20 की उम्र के आसपास के कई मरीजों में सर्वाइकल, मुंह और गले के कैंसर का पता चल रहा है, जिनमें से कई को समय पर टीकाकरण और उचित जागरूकता से पूरी तरह से टाला जा सकता था।’’
डॉ गुप्ता ने कहा, ‘‘सबसे दुखद बात यह है कि एचपीवी को रोका जा सकता है, फिर भी कई परिवारों और व्यक्तियों को इसके जोखिम के बारे में पता ही नहीं है।’’
दशकों में विकसित होने वाले अन्य कैंसरों के विपरीत युवाओं में एचपीवी से संबंधित कैंसर अक्सर तेजी से और चुपचाप बढ़ते हैं।
टीकाकरण और प्रारंभिक जांच के माध्यम से रोकथाम को किसी भी राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपातकाल के समान ही तत्परता से लिया जाना चाहिए।
गुप्ता ने कहा, ‘‘हमें एक केंद्रित, सामाजिक लोक लाज से मुक्त, देशव्यापी अभियान की आवश्यकता है जो स्कूलों, कॉलेजों और अभिभावकों तक पहुंचे।’’
यह वायरस मुख्य रूप से त्वचा से त्वचा के संपर्क के माध्यम से फैलता है, दुनिया भर में सबसे आम यौन संचारित संक्रमणों में से एक माना जाता है।
शरीर स्वत: अधिकतर एचपीवी संक्रमणों को साफ कर देता है, लेकिन कुछ उच्च जोखिम वाले ‘स्ट्रेन’ बने रह सकते हैं और कैंसर का कारण बन सकते हैं।
महिलाओं में, यह गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर का प्रमुख कारण बनता है, जबकि पुरुषों और महिलाओं में समान रूप से यह अब मुख, गुदा और गले के कैंसर से जुड़ा हुआ है।
विशेषज्ञ भारत में एचपीवी से संबंधी चर्चाओं को लेकर जागरूकता की कमी और सामाजिक लोक लाज को लेकर अधिक चिंतित हैं। जागरुकता और सामाजिक लोक लाज के कारण टीकाकरण की दर कम है और जांच का दायरा शून्य है।
धर्मशिला नारायण सुपरस्पेशलिटी अस्पताल के वरिष्ठ ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. शुभम गर्ग ने कहा, ‘‘एचपीवी से संबंधित कैंसर के लक्षण शुरुआत में बहुत अधिक नहीं दिखते हैं। इसलिए नियमित जांच बहुत महत्वपूर्ण है। बिना किसी लक्षण वाली कम उम्र की महिला के गर्भाशय ग्रीवा में पहले से ही कैंसर की कोशिकाएं मौजूद रह सकती हैं। इसी तरह, पुरुषों में मुख के एचपीवी संक्रमण पर अक्सर तब तक किसी का ध्यान नहीं जाता जब तक कि वे पूर्ण विकसित ट्यूमर के रूप में सामने नहीं आते। शिक्षा, टीकाकरण और नियमित जांच के बिना हम रोकथाम योग्य कैंसर को अनियंत्रित रूप से फैलने दे रहे हैं।’’
वर्तमान में भारत में सभी किशोरों के लिए कोई राष्ट्रीय एचपीवी टीकाकरण कार्यक्रम नहीं है, हालांकि टीके स्वीकृत हैं और निजी संस्थानों में उपलब्ध हैं।
वैश्विक अध्ययनों ने साबित किया है कि यौन रूप से सक्रिय होने से पहले किशोर और किशोरियों दोनों को टीका लगाने से एचपीवी संचरण एवं संबंधित कैंसर में काफी कमी आती है।
भाषा सुरभि जोहेब
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