जालना, 29 जून (भाषा) ‘ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड’ (एआईएमपीएलबी) के अध्यक्ष मौलाना खालिद सैफुल्ला रहमानी ने संविधान की प्रस्तावना से ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों को हटाने के लिए की जा रही मांगों का रविवार को विरोध किया।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने बृहस्पतिवार को एक सभा को संबोधित करते हुए इन शब्दों की समीक्षा करने की मांग की थी और दावा किया था कि इन्हें आपातकाल के दौरान जोड़ा गया था और ये कभी भी भीमराव आंबेडकर द्वारा तैयार किए गए संविधान का हिस्सा नहीं थे।
रहमानी ने यहां ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘ये दो शब्द संविधान का सार हैं, जो जाति और धर्म से परे सभी नागरिकों को समान अधिकार देते हैं। इन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के शासन काल में सर्वसम्मति से शामिल किया गया था। वे संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा हैं।’’
उन्होंने उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू करने के लिए भाजपा सरकार की आलोचना की और कहा कि यह मुसलमानों की अलग पहचान को मिटाने का प्रयास है।
उन्होंने कहा, ‘‘भारत में हर धर्म के अपने निजी कानून हैं। यूसीसी सिर्फ मुसलमानों को प्रभावित नहीं करता, यह सभी समुदायों की धार्मिक स्वायत्तता को खतरे में डालता है। एआईएमपीएलबी यूसीसी के खिलाफ कानूनी और सार्वजनिक रूप से लड़ रहा है और अल्पसंख्यकों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करना जारी रखेगा।’’
यहां शनिवार को एक कार्यक्रम में उन्होंने यह भी कहा कि वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 संविधान के खिलाफ है और मुसलमानों के अधिकारों का उल्लंघन करता है।
भाषा संतोष सुभाष
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