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Monday, June 30, 2025

कैंसर से जूझ रही यूक्रेनी महिला की बंदी पति को मुक्त कराने की लड़ाई जारी

Newsकैंसर से जूझ रही यूक्रेनी महिला की बंदी पति को मुक्त कराने की लड़ाई जारी

कीव, 30 जून (एपी) यूक्रेन की ओल्हा कुर्तमलाईवा जब आईसीयू (गहन चिकित्सा इकाई) में लेटी थीं तो उन्होंने अपने आप से यही कहा, ‘‘तुम मर नहीं सकती, तुम्हे जीना होगा।’’

कीमोथेरेपी का उनके शरीर पर दुष्प्रभाव दिखने लगा था। उनका कैंसर ‘स्टेज 4’ तक पहुंच गया था, यानी अब कैंसर का नासूर उनके शरीर के अन्य अंगों तक फैल चुका था, जिसका इलाज संभव नहीं था। दर्द असहनीय था। चिकित्सकों को यकीन नहीं था कि वह रात भर भी जीवित रह पाएंगी।

यूक्रेन की राजधानी कीव में वह अकेले ही अपनी मौत का सामना कर रही थीं और उनके सैनिक पति तीन साल से अधिक समय से जारी युद्ध में रूस के कब्जे में थे।

ओल्हा यही सोचती रहतीं, ‘‘अगर मैं अभी मर गई तो कौन उन्हें (उनके पति को) वापस लाएगा? यूक्रेन में उनका कोई नहीं है।’’

तमाम बाधाओं के बीच पिछले साल उन्हें पता चला कि उनकी स्थिति में सुधार हो रहा है। इस बीच रूस और यूक्रेन ने कई कैदियों की अदला-बदली की लेकिन, जिसमें 1,000 से ज्यादा लोगों को रिहा किया गया लेकिन रिहा होने वालों में ओल्हा के पति नहीं थे, वह अब भी बंदी हैं। ओल्हा के पति एक यूक्रेनी मरीन हैं।

ओल्हा उन सैकड़ों यूक्रेनी महिलाओं में से एक हैं जो अब भी अपने पति, बेटे और भाइयों को घर वापस लाने की कोशिश कर रही हैं। उन्होंने हार नहीं मानी है और कैदियों की हर अदला-बदली के दौरान वहां इंतजार करती हैं।

ओल्हा ने कहा, ‘‘वह मेरे जीवन में हर जगह है। उनकी फोटो मेरे फोन के स्क्रीन पर है, मेरे बटुए में है, मेरे रसोईघर की दीवार पर है, मेरे कमरे में है।’’

दिन-रात उनके दिमाग में बस यही सवाल उठता रहता है, ‘‘इसमें (कैदियों की अदला-बदली की प्रक्रिया में) तेजी लाने के लिए मैं क्या कर सकती हूं? उन्हें घर वापस लाने के लिए आज में क्या करूं?’’

रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध से पहले ओल्हा को जब पता चला कि उन्हें कैंसर है तो महज 21 साल की थीं। उन्हें ‘हॉजकिन लिंफोमा’ ‘स्टेज 2’ का कैंसर होने का पता चला था। ट्यूमर तेजी से बढ़ रहा था हालांकि उसका उपचार संभव था।

उन्होंने कहा, ‘‘उस उम्र में आप सोचते हैं: कैंसर? मुझे क्यों हुआ? कैसे हुआ? मैंने ऐसा क्या किया?’’

उन्होंने कहा कि उनके पति रुसलान कुर्तमलाईव ने उनसे वादा किया था कि वह कीमोथेरेपी में उनके साथ रहेंगे।

ओल्हा ने कहा कि 2015 में जब वे मिले थे तो तब रुसलान 21 साल के थे और वह सिर्फ 15 साल की थीं। रुसलान की बात करते समय उनकी आंखों में अलग सी चमक थी। उन्होंने चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान के साथ कहा, ‘‘यह पहली नजर का प्यार था।’’

उन्होंने बताया कि जैसे ही वह 18 साल की हुईं उन्होंने शादी कर ली।

रुसलान एक पेशेवर सैनिक हैं जो अग्रिम मोर्चे पर सेवा देते हैं। शुरुआत से ही ओल्हा समझती थीं कि एक सैनिक की पत्नी होने का मतलब है लगातार बलिदान करते रहना, लंबी जुदाई और युद्ध की अनिश्चितता। लेकिन उन्होंने ये कभी नहीं सोचा था कि ऐसा दिन भी आएगा कि उन्हें अपने पति के कैद से लौटने का इंतजार करना होगा।

जब भी वह रुसलान की बात करतीं उनकी आंखें भर आतीं। उन्होंने कहा, ‘‘वह बहुत नरम दिल है, उनके अंदर न्याय की भावना प्रबल है।’’

जब रूस और यूक्रेन का युद्ध चरम पर पहुंचा तो ओल्हा ने सिर्फ दो कीमोथेरेपी करवाई थी। कैंसर से लड़ते हुए जब उन्होंने अपने बाल मुंडवाए और अपनी तस्वीर रुसलान को भेजी तो उन्होंने कहा, ‘‘तुम बहुत खूबसूरत हो।’’ रुसलान ने बाद में उन्हें यह भी बताया, ‘‘जब भी मैं सुबह सोकर उठता तो तुम्हारे तकिए पर झड़े हुए बालों को देखता था। तुम्हारे उठने से पहले ही मैं उन्हें उठाकर फेंक देता ताकि तुम उदास न हो जाओ।’’

ओल्हा ने तीसरी बार कीमोथेरेपी नहीं कराई, उन्होंने इलाज भी जारी नहीं रखा। वह अपने शहर बर्डियांस्क में ही रुकी रहीं और रुसलान की खबर लेती रहीं। उन्होंने कब्जे वाले क्षेत्र में चुपके से यूक्रेनी सैनिकों की मदद जारी रखी।

जून 2022 में ओल्हा ने बर्डियांस्क को छोड़ दिया। वह महीनों एक शहर से दूसरे शहर भटकती रहीं। यूक्रेनी युद्धबंदियों के बारे में जागरुकता फैलाने के लिए शांतिपूर्ण रैलियां आयोजित करने में मदद करती थीं। आखिरकार वह कीव में बस गईं। इस दौरान उन्होंने अपने कैंसर के उपचार पर जरा भी ध्यान नहीं दिया जबकि उनकी सेहत लगातार बिगड़ रही थी।

इसके बाद उनकी हालत बिगड़ती चली गई। डॉक्टर ने जब उनकी जांच रिपोर्ट देखी तो यही कहा, ‘‘तुम चल कैसे पा रही हो?’’

अस्पताल में उन्होंने चिकित्सकों को यह कहते हुए सुना कि उसकी हालत ऑपरेशन के लायक नहीं है। फिर एक नर्स उनके बिस्तर के पास आई और बोली, ‘‘हम कोशिश कर रहे हैं, लेकिन अगर यह काम नहीं करता है, तो हो सकता है कि कल आप जीवित नहीं रहें। आपको हमारी हर संभव मदद करनी होगी।’’

फिर उन्होंने रुसलान के बारे में सोचा, जो अभी भी कैद में थे और इसने ओल्हा को जीवित रहने में मदद की।

इस बीच, उन्होंने रुसलान को कई खत लिखे लेकिन उनके जवाब नहीं मिले। वह रिहा किए गए युद्धबंदियों से लगातार संपर्क में रहीं और एक एक कड़ियों को जोड़ती रहीं जिससे उन्हें पता चला कि लगातार पीटे जाने के कारण रुसलान की पसली और उनका हाथ की हड्डी टूट गई है।

एपी सुरभि अमित

अमित

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