रांची. 30 जून (भाषा) झारखंड के साहिबगंज जिले के भोगनाडीह में ‘हूल दिवस’ के अवसर पर आयोजित एक आधिकारिक सरकारी समारोह से पहले प्रदर्शन कर रहे कुछ ग्रामीणों को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने सोमवार को हल्का लाठीचार्ज किया और आंसू गैस के गोले छोड़े। अधिकारियों ने यह जानकारी दी।
सिदो-कान्हू मुर्मू हूल फाउंडेशन (एसकेएचएफ) और आतो मांझी वाशी भोगनाडीह (एएमवीबी) के नेतृत्व में ग्रामीण जिला प्रशासन द्वारा ‘हूल दिवस’ मनाने के लिए बनाए गए एक अलग मंच को कथित तौर पर नष्ट किए जाने का विरोध कर रहे थे।
ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण गांव भोगनाडीह आदिवासी नायकों सिदो और कान्हू मुर्मू का जन्मस्थान है, जिन्होंने 1855-56 में ब्रिटिश शासन के खिलाफ संथाल विद्रोह का नेतृत्व किया था।
एक अधिकारी ने बताया, ‘‘पुलिस को हल्का लाठीचार्ज करना पड़ा और आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े, क्योंकि कुछ ग्रामीणों ने धनुष और तीर से पुलिस पर हमला कर दिया था।’’
साहिबगंज के पुलिस अधीक्षक (एसपी) अमित कुमार सिंह ने कहा, “स्थिति पूरी तरह नियंत्रण में है और सरकारी कामकाज सुचारू रूप से चल रहा है।’’
उन्होंने बताया कि यह घटना सुबह उस दौरान हुई, जब एक समूह ने इस अवसर को अलग-अलग मनाने का प्रयास किया।
इससे पहले, सिदो-कान्हू के वंशजों ने आरोप लगाया था कि प्रशासन ने उन्हें 30 जून को साहेबगंज जिले के भोगनाडीह में हुल दिवस मनाने की अनुमति नहीं दी।
सिदो-कान्हू के एक वंशज मंडल मुर्मू ने आरोप लगाया कि प्रशासन ने कार्यक्रम की अनुमति देने से इनकार कर दिया था। सिदो-कान्हू हूल फाउंडेशन (एसकेएचएफ) और आतो मांझी वाशी भोगनाडीह (एएमवीबी) ने इस कार्यक्रम का आयोजन किया था।
एसकेएचएफ के एक सदस्य ने आरोप लगाया कि इस अवसर पर कार्यक्रम आयोजित करने के लिए उन्होंने जो मंच बनाया था, प्रशासन ने उसे क्षतिग्रस्त कर दिया था।
इस बीच, राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने ‘हूल दिवस’ पर संथाल विद्रोह के आदिवासी योद्धाओं को श्रद्धांजलि अर्पित की और लोगों को शुभकामनाएं दीं।
‘हूल दिवस’ ब्रिटिश शासन के खिलाफ 1855-56 में हुए संथाल विद्रोह की वर्षगांठ की स्मृति में मनाया जाता है।
सिदो और कान्हू मुर्मू नामक दो भाइयों ने इस विद्रोह का नेतृत्व किया था, जिसे संथाल हूल के नाम से भी जाना जाता है।
भाषा
प्रीति दिलीप
दिलीप