धर्मशाला/शिमला, 30 जून (भाषा) हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने सोमवार को कहा कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए दलबदल विरोधी कानून जरूरी है। उन्होंने पहाड़ी राज्यों के लिए अलग नीति की भी वकालत की।
धर्मशाला के तपोवन में राष्ट्रमंडल संसदीय संघ (सीपीए), भारत क्षेत्र जोन-2 के दो दिवसीय वार्षिक सम्मेलन में बोलते हुए सुक्खू ने कहा कि लोकतांत्रिक संस्थाओं की अखंडता के लिए एक मजबूत दलबदल विरोधी कानून महत्वपूर्ण है।
सम्मेलन का उद्घाटन लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने किया।
सुक्खू ने कहा, ‘‘हिमाचल प्रदेश के इतिहास में पहली बार, लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई किसी सरकार को गिराने का प्रयास किया गया। हालांकि, विधानसभा अध्यक्ष ने वैधानिक रुख अपनाया और संबंधित विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया।’’
उन्होंने कहा कि राज्य विधानसभा ने अयोग्य विधायकों की पेंशन रोकने के लिए एक विधेयक पारित किया है, जिसे राज्यपाल की मंजूरी का इंतजार है।
सुक्खू का इशारा 2024 के राज्यसभा चुनावों की ओर था, जिसमें तीन निर्दलीय और छह कांग्रेस विधायकों ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के उम्मीदवार हर्ष महाजन के पक्ष में मतदान किया था, जो राज्य में कांग्रेस के सत्ता में होने के बावजूद जीत गए थे।
‘क्रॉस वोटिंग’ के कारण नौ विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया गया था और उसके बाद उपचुनाव कराए गए थे।
यहां जारी एक बयान में कहा गया है कि मुख्यमंत्री ने प्रस्तावित ‘एक देश, एक चुनाव’ व्यवस्था के तहत साल में केवल एक बार उपचुनाव कराने का मुद्दा भी उठाया और लोकसभा अध्यक्ष से इस मामले को उचित मंच पर रखने का अनुरोध किया।
सुक्खू ने कहा कि वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के क्रियान्वयन से हिमाचल प्रदेश को नुकसान हुआ है, इसलिए पहाड़ी राज्यों के लिए अलग नीति बनाई जानी चाहिए।
मुख्यमंत्री ने कहा कि 2014 में हिमाचल प्रदेश की विधानसभा देश की पहली ऐसी विधानसभा बन गई, जो पूरी तरह कागज रहित है और जहां सभी कार्यवाही डिजिटल प्रारूप में होती है।
सम्मेलन में जोन-2 के अंतर्गत आने वाले हरियाणा, दिल्ली, पंजाब और जम्मू-कश्मीर के वक्ताओं, उपाध्यक्ष, मुख्य सचेतक तथा उप मुख्य सचेतक ने हिस्सा लिया।
इसके अलावा, कर्नाटक, असम, उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र और तेलंगाना विधानसभाओं के अध्यक्ष विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित थे।
भाषा यासिर पारुल
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