नयी दिल्ली, दो जून (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने मजनू का टीला में पाकिस्तानी हिंदू शरणार्थी शिविर को ढहाने के निर्णय में दखल देने से इनकार करते हुए कहा है कि यह पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील यमुना डूब क्षेत्र में स्थित है, जिसे संरक्षित किया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति धर्मेश शर्मा ने 30 मई को पाकिस्तान के 800 ऐसे शरणार्थियों से संबंधित उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें वैकल्पिक आवास के लिए अधिकारियों को निर्देश देने का अनुरोध किया गया था।
अदालत ने कहा कि डूब क्षेत्र की सुरक्षा का उद्देश्य दिल्लीवासियों और भावी पीढ़ियों के लिए स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण का मौलिक मानवाधिकार सुरक्षित करना है।
फैसले में कहा गया है कि भारतीय नागरिक भी उन जगहों पर वैकल्पिक आवंटन का दावा पूर्ण अधिकार के तौर पर नहीं कर सकते हैं, जहां कब्जे वाली भूमि यमुना के डूब क्षेत्र की तरह निषिद्ध इलाकों में आती है।
अदालत ने कहा कि शरणार्थियों को इस क्षेत्र पर कब्जा जारी रखने का कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि भारत सरकार ने उन्हें आवंटन या वैकल्पिक आवास प्रदान करने का कोई वादा नहीं किया है।
फैसले में कहा गया है कि सहायता और सहयोग इस सीमा तक सीमित था कि ‘दीर्घकालिक वीजा’ के लिए उनके आवेदन सफलतापूर्वक प्रस्तुत किए जा सकें और गृह मंत्रालय द्वारा उन पर यथासंभव शीघ्रता से निर्णय लिया जा सके।
हालांकि, अदालत ने कहा कि शरणार्थियों को दूसरी जगह बसाने के लिए अधिकारियों के साथ बातचीत का उसका ‘‘ईमानदार प्रयास’’ बेकार चला गया है और ऐसा ‘‘विशेष रूप से केंद्र की ओर से नौकरशाही की जिम्मेदारी दूसरे के सिर पर मढ़ने की प्रवृत्ति’’ के कारण प्रतीत होता है।
न्यायमूर्ति शर्मा ने कहा, ‘‘फिर भी, यह अदालत शरणार्थियों की दुर्दशा दूर करने के लिए नीति बनाने का काम नहीं कर सकती। वर्तमान रिट याचिका तदनुसार खारिज की जाती है।’’
फैसले में कहा गया है कि निस्संदेह पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील यमुना डूब क्षेत्र की सुरक्षा न केवल पर्यावरण की दृष्टि से, बल्कि सर्वोच्च न्यायालय, राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) और उच्च न्यायालय के स्पष्ट निर्देशों के अनुरूप भी आवश्यक है।
अदालत ने कहा, ‘‘इन निर्देशों का उद्देश्य पारिस्थितिकी अखंडता को संरक्षित रखना तथा दिल्लीवासियों और भावी पीढ़ियों के लिए स्वच्छ एवं स्वस्थ पर्यावरण के मौलिक मानवाधिकार को सुरक्षित करना है। यमुना नदी की गंभीर स्थिति को देखते हुए यह अदालत बिना किसी हिचकिचाहट के पाती है कि याचिकाकर्ताओं के कहने पर नदी के जीर्णोद्धार और कायाकल्प के प्रयासों में कोई हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है।’’
न्यायमूर्ति शर्मा ने कहा कि दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड की दिल्ली में झुग्गी-झोपड़ी और जेजे पुनर्वास और स्थानांतरण नीति के तहत, पाकिस्तानी शरणार्थियों को उनकी विदेशी राष्ट्रीयता के कारण पुनर्वासित नहीं किया जा सकता है।
अदालत ने कहा, ‘‘यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि इस तरह के आवेदन को स्वीकार करने का प्रभाव यह होगा कि पीड़ित शरणार्थी भारत के नागरिक माने जाएंगे और भारत के किसी भी आम नागरिक को उपलब्ध सभी अधिकारों एवं लाभ का आनंद लेने में सक्षम होंगे।’’
याचिकाकर्ताओं ने उच्च न्यायालय का रुख तब किया, जब चार मार्च 2024 की तारीख वाला एक सार्वजनिक नोटिस इलाके में चस्पा कर दिया गया, जिसमें शरणार्थियों से छह मार्च 2024 तक अपने आवास खाली करने के लिए कहा गया था, अन्यथा दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) उनके शिविरों को ध्वस्त कर देगा।
याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि पाकिस्तानी हिंदू शरणार्थी कई वर्षों से मजनू का टीला में रह रहे हैं, जहां अधिकारियों द्वारा बुनियादी सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं।
अदालत ने शुरू में याचिकाकर्ता को अंतरिम राहत दी थी और डीडीए को कोई भी दंडात्मक कार्रवाई करने से रोक दिया था।
भाषा सुरेश पारुल
पारुल