नयी दिल्ली, तीन जून (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि संसद या राज्य विधानमंडल द्वारा बनाया गया कोई भी कानून न्यायालय की अवमानना नहीं माना जा सकता।
न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने समाजशास्त्री एवं दिल्ली विश्वविद्यालय की पूर्व प्रोफेसर नंदिनी सुंदर तथा अन्य की ओर से 2012 में दायर अवमानना याचिका का निपटारा करते हुए यह टिप्पणी की।
अवमानना याचिका में छत्तीसगढ़ सरकार पर सलवा जुडूम जैसे निगरानी समूहों का समर्थन रोकने तथा माओवादियों के खिलाफ लड़ाई में विशेष पुलिस अधिकारियों (एसपीओ) के नाम पर आदिवासियों को हथियार देने पर रोक लगाने संबंधी 2011 के न्यायालय के निर्देशों का पालन करने में विफल रहने का आरोप लगाया गया था।
याचिका में कहा गया कि उच्चतम न्यायालय के आदेश की अवमानना हुई है, क्योंकि छत्तीसगढ़ सरकार ने छत्तीसगढ़ सहायक सशस्त्र पुलिस बल अधिनियम, 2011 पारित किया, जो माओवादी/नक्सल हिंसा से निपटने में सुरक्षाबलों की सहायता के लिए एक सहायक सशस्त्र बल को अधिकृत करता है तथा मौजूदा एसपीओ को सदस्य के रूप में शामिल करके उन्हें वैध बनाता है।
छत्तीसगढ़ सरकार पर सलवा जुडूम संबंधी निर्देशों को न मानने का आरोप लगाने के अलावा याचिकाकर्ताओं ने कहा कि एसपीओ का उपयोग न करने और उन्हें निरस्त्र करने के बजाय राज्य सरकार ने ‘छत्तीसगढ़ सहायक सशस्त्र पुलिस बल अधिनियम, 2011’ पारित कर दिया, जिसके तहत पांच जुलाई, 2011 को शीर्ष अदालत के आदेश की तिथि से सभी एसपीओ को नियमित कर दिया गया।
उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य सरकार ने सुरक्षाबलों के कब्जे से सभी स्कूल भवनों और आश्रमों को खाली नहीं कराया है और न ही सलवा जुडूम तथा एसपीओ की कार्रवाई के पीड़ितों को मुआवजा दिया है।
शीर्ष अदालत ने 15 मई को कहा कि उसके आदेश के बाद छत्तीसगढ़ द्वारा कोई कानून पारित करना अवमानना का कार्य नहीं हो सकता।
शीर्ष अदालत ने कहा कि समतावादी सामाजिक व्यवस्था स्थापित करने के संवैधानिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कानून का शासन सुनिश्चित करने के वास्ते संबंधित संप्रभु पदाधिकारियों के बीच हमेशा संतुलन बनाए रखा जाना चाहिए।
इसने कहा, ‘‘प्रत्येक राज्य विधानमंडल के पास अधिनियम पारित करने की पूर्ण शक्तियां हैं और जब तक उक्त अधिनियम को संविधान के विरुद्ध या किसी भी तरह से संवैधानिक न्यायालय द्वारा अमान्य घोषित नहीं किया जाता, तब तक उक्त अधिनियम में कानून का बल रहेगा।’’
पीठ ने कहा, ‘‘हालांकि, यदि कोई पक्ष यह चाहता है कि उक्त अधिनियम को असंवैधानिक होने के कारण रद्द कर दिया जाए, तो इस संबंध में सक्षम न्यायालय के समक्ष कानूनी उपाय अपनाना होगा।’’
छत्तीसगढ़ में दशकों से व्याप्त स्थिति पर विचार करते हुए पीठ ने राज्य और केंद्र सरकार के समन्वित उपायों के माध्यम से प्रभावित क्षेत्रों में शांति और पुनर्वास लाने के लिए ‘‘विशिष्ट कदम’’ उठाने की आवश्यकता को रेखांकित किया।
फैसले में कहा गया कि विधायी कार्य का केन्द्रबिन्दु कानून बनाने और उनमें संशोधन करने की विधायी अंग की शक्ति है।
पीठ ने कहा, ‘‘संसद या राज्य विधानमंडल द्वारा बनाए गए किसी भी कानून को, केवल कानून बनाने के आधार पर, इस न्यायालय सहित किसी भी न्यायालय की अवमानना नहीं माना जा सकता।’’
भाषा
नेत्रपाल सुरेश
सुरेश