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Monday, August 11, 2025

अभिव्यक्ति की आजादी के तहत सेना के खिलाफ अपमानजनक बयान देने की स्वतंत्रता शामिल नहीं : अदालत

Newsअभिव्यक्ति की आजादी के तहत सेना के खिलाफ अपमानजनक बयान देने की स्वतंत्रता शामिल नहीं : अदालत

लखनऊ, चार जून (भाषा) इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता उचित प्रतिबंधों के अधीन है और इसमें किसी व्यक्ति या भारतीय सेना के खिलाफ अपमानजनक बयान देने की स्वतंत्रता शामिल नहीं है।

अदालत ने इसके साथ ही 2022 की ‘‘भारत जोड़ो यात्रा’’ के दौरान कथित अपमानजनक टिप्पणियों के लिए कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खिलाफ जारी समन रद्द करने की याचिका 29 मई को खारिज कर दी।

न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी ने कहा कि रिकॉर्ड पर मौजूद तथ्य भारतीय सेना के खिलाफ अपमानजनक बयान देने के लिए गांधी के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनाती है और इसलिए निचली अदालत के समन आदेश को खारिज नहीं किया जा सकता है और नेता प्रतिपक्ष को मुकदमे का सामना करना होगा।

अदालत ने लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष को मुकदमे का सामना करने के लिए तलब करने को निचली अदालत द्वारा फरवरी में जारी समन आदेश को बरकरार रखा।

न्यायमूर्ति विद्यार्थी ने अपने विस्तृत आदेश में कहा, ‘‘इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत के संविधान का अनुच्छेद 19(1)(ए) भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है, (लेकिन) यह स्वतंत्रता उचित प्रतिबंधों के अधीन है और इसमें किसी व्यक्ति या भारतीय सेना के लिए अपमानजनक बयान देने की स्वतंत्रता शामिल नहीं है।’’

यह मामला सीमा सड़क संगठन (भारतीय सेना में कर्नल के समकक्ष पद) के सेवानिवृत्त निदेशक उदय शंकर श्रीवास्तव की ओर से दायर एक शिकायत से सामने आया है।

श्रीवास्तव ने आरोप लगाया कि 16 दिसंबर, 2022 को लखनऊ में अपनी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान गांधी ने अरुणाचल प्रदेश में भारतीय और चीनी सेनाओं के बीच नौ दिसंबर, 2022 के टकराव को लेकर अपमानजनक टिप्पणी की।

श्रीवास्तव ने दलील दी है कि गांधी का बयान ‘‘झूठा और निराधार’’ था और ‘‘भारतीय सेना का मनोबल गिराने और भारतीय सेना में भारतीय आबादी के विश्वास को नुकसान पहुंचाने के बुरे इरादे से’’ दिया गया था।

शिकायत के अनुसार, कांग्रेस सांसद ने इस बात पर प्रकाश डाला कि 12 दिसंबर, 2022 को भारतीय सेना के आधिकारिक बयान ने पुष्टि की कि ‘‘तवांग सेक्टर में नियंत्रण रेखा पर पीएलए के सैनिकों और भारतीय सैनिकों के बीच झड़प हुई थी। इस मौके पर हमारे सैनिकों ने दृढ़ता से जवाब दिया था। इस टकराव में दोनों पक्षों के सैन्यकर्मियों मामूली रूप से जख्मी हुए थे।’’

शिकायतकर्ता ने कहा कि गांधी के ‘‘निराधार और अपमानजनक बयान’’ ने उन्हें और अन्य राष्ट्रवादियों को बहुत आहत किया है।

लखनऊ स्थित अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने 11 फरवरी, 2025 को गांधी को दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 500 (मानहानि) के तहत अपराध के लिए मुकदमे का सामना करने के लिए समन जारी किया था।

निचली अदालत ने पाया था कि प्रथम दृष्टया, गांधी का बयान भारतीय सेना और सैन्यकर्मियों का मनोबल गिराने वाला प्रतीत होता है और यह उनके आधिकारिक कर्तव्यों के निर्वहन में समाहित नहीं है।

गांधी के वकील प्रांशु अग्रवाल ने उच्च न्यायालय में दलील दी कि यह शिकायत राजनीति से प्रेरित थी और इसमें कोई दम नहीं था।

उन्होंने दलील दी थी कि शिकायतकर्ता दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 199 के तहत ‘‘पीड़ित व्यक्ति’’ नहीं है, क्योंकि कथित मानहानि भारतीय सेना के खिलाफ एक संस्था के रूप में थी, न कि सीधे श्रीवास्तव के खिलाफ।

हालांकि, उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि शिकायतकर्ता एक ‘‘पीड़ित व्यक्ति’’ के रूप में सीआरपीसी की धारा 199 के तहत शिकायत दर्ज करने में सक्षम है।

न्यायमूर्ति विद्यार्थी ने यह भी कहा कि गांधी को समन करने का निचली अदालत का फैसला शिकायत और गवाहों के बयानों पर विचार करने के बाद ‘‘विवेकपूर्ण तरीके से विचार करने’’ के बाद दिया गया है।

उन्होंने गांधी की समन को चुनौती देने वाली याचिका निरस्त कर दी।

भाषा सं जफर सुरेश

सुरेश

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