नयी दिल्ली, पांच जून (भाषा) अखिल भारतीय किसान संघों के महासंघ (एफएआईएफए) ने बृहस्पतिवार को कहा कि टिकाऊ कृषि गतिविधियों को व्यापक रूप से अपनाने में उच्च प्रारंभिक लागत, खंडित बुनियादी ढांचे और किसानों के बीच कम जागरूकता प्रमुख बाधाएं हैं। संगठन ने जलवायु-सहिष्णु कृषि प्रौद्योगिकियों में निवेश बढ़ाने का आह्वान किया।
एफएआईएफए ने नयी दिल्ली में एक राष्ट्रीय संगोष्ठी के दौरान ‘भविष्य का पोषण: जलवायु-सहिष्णु कृषि पर एक रिपोर्ट’ शीर्षक से एक श्वेत पत्र जारी किया, जिसमें जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का मुकाबला करने के लिए टिकाऊ यानी पर्यावरण अनुकूल कृषि गतिविधियों की तत्काल जरूरत बतायी गयी है।
रिपोर्ट में अनियमित वर्षा, बेमौसम सूखा, तापमान में उछाल और कीटों के बढ़ते प्रकोप को उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक सहित प्रमुख कृषि राज्यों में फसल चक्र को बाधित करने वाले प्रमुख खतरों के रूप में चिन्हित किया गया है।
आंध्र प्रदेश के सांसद पुट्टा महेश कुमार इस कार्यक्रम में मौजूद थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के कृषि समुदाय में 80 प्रतिशत से अधिक छोटे और सीमांत किसान सीमित अनुकूलन क्षमता के कारण काफी प्रभावित हैं।
एफएआईएफए के महासचिव मुरली बाबू ने कहा, ‘‘मिट्टी का क्षरण, खेती की बढ़ती लागत और गिरते जल स्तर कृषि उत्पादकता और आय पर महत्वपूर्ण दबाव डाल रहे हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हमें ‘अधिक उत्पादन’ दृष्टिकोण से ‘बेहतर उत्पादन’ मानसिकता में बदलाव करना चाहिए।’’
फसल बीमा कार्यक्रम प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना और सूक्ष्म सिंचाई पहल जैसी मौजूदा सरकारी योजनाओं को स्वीकार करते हुए, एफएआईएफए ने उच्च प्रारंभिक लागत, खंडित बुनियादी ढांचे और किसानों के बीच कम जागरूकता सहित कार्यान्वयन अंतराल की पहचान की।
संगठन ने जलवायु-सहिष्णु बीज किस्मों के लिए अनुसंधान और विकास में सार्वजनिक निवेश बढ़ाने, किसान प्रशिक्षण कार्यक्रमों का विस्तार करने और सटीक कृषि उपकरणों को बढ़ावा देने की सिफारिश की।
रिपोर्ट में भारत के विविध कृषि परिदृश्य में जलवायु-अनुकूल कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने के लिए नीति निर्माताओं, शोध संस्थानों और निजी पक्षों के बीच सहयोग की आवश्यकता भी बतायी गयी है।
भाषा राजेश राजेश रमण
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