बिलासपुर (हिमाचल प्रदेश), छह जून (भाषा) हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले के छड़ोल, कचोली और कल्लर वन क्षेत्रों में सूखे पेड़ों को काटने की आड़ में कथित तौर पर बड़ी संख्या में पर्णपाती ‘खैर’ के पेड़ काटे जाने का मामला सामने आया है। सूत्रों ने यह जानकारी दी।
प्रधान मुख्य वन संरक्षक समीर रस्तोगी ने शुक्रवार को बताया कि स्वारघाट रेंज के तीन वन क्षेत्रों में अवैध रूप से खैर के पेड़ों को काटने का मामला उनके संज्ञान में आया है तथा इसकी जांच कर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
उन्होंने कहा कि अब तक यह जानकारी नहीं मिल पाई है कि बिलासपुर जिले में कितने पेड़ अवैध रूप से काटे गए हैं।
पर्यावरण प्रेमियों ने जिले के स्वारघाट रेंज में पेड़ों की कटाई की शिकायत प्रधानमंत्री कार्यालय, राज्य सतर्कता विभाग एवं प्रमुख वन अधिकारी से की है।
स्थानीय लोगों ने पत्र लिखकर मामले की जांच करने और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की मांग की है।
बाजार में ‘खैर’ की लकड़ी की जबरदस्त मांग है और एक बड़े पेड़ की कीमत एक लाख तक हो सकती है।
हिमाचल प्रदेश में हालांकि, इस किस्म के पेड़ों को काटने की अनुमति केवल राज्य सरकार के आदेश पर ही दी जाती है।
नियमों के अनुसार वन झाड़ी श्रेणी की भूमि (निजी या सरकारी) से खैर के पेड़ों को काटना पूर्णतया प्रतिबंधित है।
हालांकि, इस संबंध को लेकर आई खबरों के मुताबिक जनवरी से अप्रैल के बीच वन माफिया ने सूखे पेड़ों की आड़ में ऐसे सैकड़ों पेड़ काटे हैं। इन खबरों में आरोप लगाया गया है कि माफिया ने निजी जमीन पर लगे सूखे पेड़ों की कटाई करने की अनुमति लेने के बाद सरकारी वन क्षेत्र में हजारों पेड़ों की कटाई की है।
दिलचस्प बात यह है कि सबूत मिटाने के लिए पेड़ों की जड़ें भी कथित तौर पर जमीन में तीन फीट गहराई तक खोदकर उखाड़ दी गईं।
स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया कि वन विभाग ने केवल पांच ट्रक को अनुमति दी थी, लेकिन 150 वाहन जंगल से लकड़ी ढोने में इस्तेमाल किये गए थे।
स्थानीय लोगों का दावा है कि जिन तीन वन क्षेत्रों में पेड़ों की कटाई की गई वे रत्नापुर वन परिक्षेत्र के अंतर्गत आते हैं।
भाषा धीरज प्रशांत
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