(लक्ष्मी देवी ऐरे)
देहरादून, 6 जून (भाषा) उत्तराखंड के किसानों ने शुक्रवार को केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान से उत्पात मचाने वाले बंदरों से लेकर अपर्याप्त बाजार पहुंच तक तमाम कृषि मामलों में मदद की अपील की।
पववाला सोडा गांव में एक सरकारी ‘आउटरीच’ कार्यक्रम के दौरान लीची उत्पादक किसान हरिप्रसाद शर्मा ने चौहान से कहा, ‘‘मुझे बेहतर कीटनाशक चाहिए जो परागण में मददगार मधुमक्खियों को न मारें। मैं चाहता हूं कि शोधकर्ता मुझे इसका समाधान खोजने में मदद करें।’’
यह बातचीत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार द्वारा किसानों से सीधे जुड़ने के लिए शुरू किए गए 15 दिवसीय राष्ट्रव्यापी, विकसित कृषि अभियान का हिस्सा थी।
शर्मा के लीची के बाग में सालाना 100 क्विंटल लीची का उत्पादन होता है, जिससे उन्हें अच्छा-खासा मुनाफा होता है। लेकिन जमीन की बढ़ती कीमतें और शहरी विकास पारंपरिक खेती के क्षेत्रों को ख़तरे में डाल रहे हैं।
शर्मा ने कहा, ‘‘अब यहां ज़मीन महंगी हो गई है और लोग आम एवं लीची के बागों को काट रहे हैं। भविष्य की पीढ़ियों के लिए आम और लीची का उत्पादन करने के लिए इसे रोकने की ज़रूरत है।’’
भारतीय किसानों की नई पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करने वाले आशीष राजवंशी अब जैविक उत्पादन का रुख कर रहे हैं। उनका परिवार पीढ़ियों से देहरादूनी बासमती चावल उगाता रहा है, लेकिन वर्ष 2020 से, इसने जैविक प्रमाणीकरण और ब्रांडिंग पर ध्यान केंद्रित किया है।
राजवंशी ने कहा, ‘‘हम यहां अच्छा कर रहे हैं, लेकिन इसे और आगे बढ़ाने के लिए, हमें बेहतर बाज़ार पहुंच और व्यापार मेलों में भागीदारी की जरूरत है।’’
राजवंशी का अनुभव भारत के खंडित कृषि क्षेत्र में छोटे पैमाने की सफलता और वाणिज्यिक पैमाने के बीच के अंतर को उजागर करता है।
उत्तराखंड के किसानों की सबसे बड़ी चिंता इंसानों और वन्यजीवों के बीच संघर्ष को लेकर देखने को मिली। यह एक ऐसा मुद्दा है जो नीतिगत चर्चाओं में शायद ही आता है लेकिन ग्रामीण आजीविका को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है।
सुभाष चंद्र कोटारी ने कहा कि जंगली जानवरों के फसलों पर हमले के कारण वन क्षेत्रों के पास के कई किसान खेती छोड़ रहे हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘छोटे किसान सोलर या बाड़ लगाने का जोखिम नहीं उठा सकते। सरकार को इसका समर्थन करना चाहिए।’’
रायपुर कृषि उत्पादक सहकारी समिति के प्रमुख आशीष व्यास ने कहा कि समस्या इतनी गंभीर हो गई है कि कुछ किसान समूह अब फसलों का चुनाव इस आधार पर करने लगे हैं कि कौन सी फसल जानवर नहीं खाते।
किसानों ने सरकारी लाभों तक पहुंच से जुड़ी जटिलताओं के बारे में भी शिकायत की, जबकि सरकार सालाना कृषि सब्सिडी और सहायता योजनाओं पर करोड़ों खर्च करती है।
व्यास ने कहा, ‘‘हम चाहते हैं कि योजनाएं सीधे किसानों तक पहुंचें। अभी भी पूरी जागरुकता नहीं है। कागजी कार्रवाई बहुत अधिक है। एकल खिड़की मंजूरी की व्यवस्था होनी चाहिए।’’
किसानों ने कृषि भूमि में कमी पर भी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि अगली पीढ़ी पारिवारिक कृषि परंपराओं को जारी रखने में बहुत कम रुचि दिखाती है।
चौहान ने किसानों को आश्वासन दिया कि उनकी चिंताओं का समाधान सरकारी अभियान के हिस्से के रूप में किया जाएगा, जिसमें उत्तराखंड राज्य भर में कृषि क्षेत्रों का दौरा करने वाली 75 टीमें शामिल हैं।
12 जून तक चलने वाले इस कार्यक्रम में पहले ही सात अन्य राज्यों को शामिल किया जा चुका है।
भाषा राजेश राजेश प्रेम
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