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Thursday, August 14, 2025

आईआईटी-गुवाहाटी ने मिट्टी के कणों का उपयोग कर कोविड-19 की जांच पद्धति विकसित की

Newsआईआईटी-गुवाहाटी ने मिट्टी के कणों का उपयोग कर कोविड-19 की जांच पद्धति विकसित की

नयी दिल्ली, छह जून (भाषा) भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी)-गुवाहाटी के शोधकर्ताओं ने पाया है कि मिट्टी के कण कोविड-19 का कारण बनने वाले वायरस सार्स-कोव-2 की उपस्थिति में अलग तरह से प्रतिक्रिया करते हैं। इस शोध का उपयोग उन्होंने एक सरल, वहनीय जांच विकल्प विकसित करने के लिए किया है।

शोध में यह पता चला है कि मिट्टी के कण वायरस युक्त नमकीन-पानी के घोल में कितनी जल्दी तल पर बैठते हैं।

‘एप्लाइड क्ले साइंस’ पत्रिका में प्रकाशित शोध में शोधकर्ताओं ने लिखा है, ‘‘वायरस की उपस्थिति की वजह से मिट्टी के कणों के बल में परिवर्तन के कारण, मिट्टी की इलेक्ट्रोलाइट प्रणाली की सेडिमेंटेशन दर बदल गई।’’

‘सेडिमेंटेशन’ वह प्रक्रिया है जिसमें किसी तरल या गैस में घुले कण गुरुत्वाकर्षण या अन्य बलों के कारण द्रव से बाहर निकल आते हैं।

टीम ने कहा कि ये निष्कर्ष सार्स-कोव-2 का पता लगाने के लिए फिलहाल उपयोग की जाने वाली जटिल, महंगी विधियों की तुलना में एक ‘सरल और वहनीय’ विकल्प प्रदान करते हैं।

आईआईटी गुवाहाटी के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर और प्रमुख लेखक टी.वी. भरत ने कहा, ‘‘पॉलीमरेज चेन रिएक्शन (पीसीआर) जैसी मौजूदा विधियां अत्यधिक संवेदनशील हैं, लेकिन समय लेती हैं और भारी उपकरणों की आवश्यकता होती है। इसी तरह, एंटीजेन परीक्षण तेज होता है, लेकिन इसमें सटीकता की कमी है, जबकि एंटीबॉडी परीक्षण का उपयोग संक्रमण होने के बाद किया जाता है।’’

उन्होंने कहा कि इसके अलावा, फिलहाल उपलब्ध कई पद्धतियां सीमित संसाधनों वाली परिस्थितियों में या बड़े पैमाने पर होने वाले प्रकोप ​​के दौरान व्यावहारिक नहीं हैं। उन्होंने कहा कि कोविड-19 महामारी ने वायरल संक्रमणों का पता लगाने और उनपर नजर रखने के तरीके में एक महत्वपूर्ण अंतर को उजागर किया है।

शोध के लिए, शोधकर्ताओं ने ‘बेंटोनाइट मिट्टी’ का उपयोग किया क्योंकि इसकी अनूठी रासायनिक संरचना प्रदूषकों और भारी धातुओं को आसानी से अवशोषित करने में मददगार होती हैं।

भरत ने कहा, ‘‘पिछले अध्ययनों से पता चला है कि मिट्टी के कण वायरस और बैक्टीरियोफेज से स्थिर हो सकते हैं, जिससे यह वायरस का पता लगाने के लिए एक आशाजनक सामग्री बन जाती है।’’

भाषा जोहेब सुभाष

सुभाष

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