चंडीगढ़, छह जून (भाषा) उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शुक्रवार को कहा कि मौजूदा सरकार के हाथ बंधे हुए हैं, क्योंकि वह एक न्यायिक आदेश के कारण प्राथमिकी नहीं दर्ज कर सकती।
धनखड़ ने चंडीगढ़ में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट बार एसोसिशन के प्रतिनिधिमंडल के साथ चर्चा के दौरान दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश यशवंत वर्मा से जुड़े मामले के सिलसिले में यह टिप्पणी की।
मार्च में न्यायमूर्ति वर्मा के राष्ट्रीय राजधानी स्थित आधिकारिक आवास में लगी आग को बुझाने के प्रयास के दौरान परिसर से बड़ी मात्रा में जली हुई नोटों की गड्डियां बरामद हुई थीं।
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष सरतेज सिंह नरूला के नेतृत्व में एसोसिएशन के चार सदस्यों ने पंजाब राजभवन में उपराष्ट्रपति से मुलाकात की। धनखड़ बृहस्पतिवार शाम चंडीगढ़ पहुंचे थे और वह शुक्रवार को शिमला के लिए रवाना हो गए।
बाद में नरूला ने बताया कि चर्चा के दौरान न्यायमूर्ति वर्मा से जुड़ा मामला उठा।
शुक्रवार शाम जारी आधिकारिक बयान के अनुसार, उपराष्ट्रपति ने कहा, “मौजूदा सरकार के हाथ बंधे हुए हैं, क्योंकि वह तीन दशक से अधिक समय पुराने एक न्यायिक आदेश के कारण प्राथमिकी नहीं दर्ज कर सकती।”
धनखड़ ने कहा, “यह आदेश वस्तुत: अभेद्य सुरक्षा प्रदान करता है। जब तक न्यायपालिका में सर्वोच्च स्तर पर बैठे किसी पदाधिकारी की अनुमति नहीं मिल जाती, तब तक प्राथमिकी दर्ज नहीं की जा सकती।”
उन्होंने कहा, “इसलिए, मैं गहरी पीड़ा और चिंता के साथ अपने आप से सवाल पूछता हूं- यह अनुमति क्यों नहीं दी गई? उस समय सबसे पहले यही कदम उठाया जाना चाहिए था।”
उपराष्ट्रपति ने कहा, “मैंने यह मुद्दा उठाया है। अगर किसी न्यायाधीश को हटाने के लिए प्रस्ताव लाया जाता है, तो क्या यही जवाब है? अगर कोई अपराध किया गया, लोकतंत्र की नींव को हिला देने वाला कोई दोषपूर्ण कार्य किया गया, तो उसके लिए दोषी को दंडित क्यों नहीं किया गया?”
उन्होंने कहा, “हमने तीन महीने से अधिक समय गंवा दिया है और जांच भी शुरू नहीं हुई है। जब भी आप अदालत जाते हैं, तो वे पूछते हैं कि प्राथमिकी में देरी क्यों हुई।”
धनखड़ ने कहा, “क्या न्यायाधीशों की समिति को संवैधानिक मंजूरी हासिल है? क्या इसे वैधानिक मंजूरी प्राप्त है? क्या इसकी रिपोर्ट से कोई नतीजा निकल सकता है? क्या रिपोर्ट अपने आप में कार्रवाई योग्य हो सकती है? संविधान कहता है कि न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया लोकसभा या राज्यसभा में शुरू की जा सकती है।”
उन्होंने कहा कि भारत के राष्ट्रपति या राज्यपालों को भी अभियोजन से छूट केवल तब तक ही है, जब तक वे पद पर हैं।
उपराष्ट्रपति ने कहा, “किसी अन्य संवैधानिक पद को यह छूट प्राप्त नहीं है और वह भी पद पर रहते हुए। मुझे उम्मीद है कि प्राथमिकी दर्ज की जाएगी।”
उन्होंने कहा, “हमें लोकतंत्र के विचार को नष्ट नहीं होने देना चाहिए। हमें अपने नैतिक मानकों को कमजोर नहीं करना चाहिए। हमें ईमानदारी खत्म नहीं करनी चाहिए। मार्च के मध्य में दिल्ली में एक न्यायाधीश के आवास पर एक बहुत ही दर्दनाक घटना घटी। वहां नकदी बरामद हुई, जो स्पष्ट रूप से अवैध और अघोषित थी।”
उन्होंने कहा कि यह घटना छह-सात दिन बाद सार्वजनिक हुई।
धनखड़ ने कहा, “कल्पना कीजिए कि अगर यह (सार्वजनिक) नहीं होती तो क्या होता। हमें नहीं पता कि यह एक अलग घटना थी या नहीं। जब भी इस तरह की नकदी बरामद होती है, तो सिस्टम को यह पता लगाना होता है कि यह किसका पैसा था। पैसे का स्रोत क्या था? खुली नकदी कहां से आई? क्या इसमें बड़े लोग शामिल थे? क्या पैसे ने न्यायिक कार्य को प्रभावित किया? ये सभी सवाल वकीलों और आम लोगों को समान रूप से परेशान करते हैं।”
उन्होंने कहा, “सच को सामने आने दीजिए। प्राथमिकी क्यों नहीं हुई? जांच क्यों नहीं हुई।”
उपराष्ट्रपति ने कहा कि उन्हें खुशी है कि बार एसोसिएशन इस मुद्दे को उठा रहे हैं, जिससे लोगों का विश्वास बहाल होगा।
भाषा पारुल सुरेश
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