(अनिल भट्ट)
रियासी (जम्मू-कश्मीर), सात जून (भाषा) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को कश्मीर को भारत के बाकी हिस्सों से जोड़ने वाली एक प्रतिष्ठित रेलवे परियोजना को देश को समर्पित किया जो महाराजा प्रताप सिंह के सदियों पुराने सपने को पूरा करेगी।
भारतीय रेलवे ने सुदूर और अलग-थलग पड़े क्षेत्रों तक लोगों और मशीनों को पहुंचाने में सशस्त्र बलों के विभिन्न हेलीकॉप्टर की महत्वपूर्ण भूमिका को याद किया जिनका इस इतिहास को रचे जाने में अहम भूमिका है।
हेलीकॉप्टर का उपयोग न केवल पहाड़ी इलाकों में 215 किलोमीटर से अधिक लंबी सड़कें बनाने में बल्कि लगभग 70 दूरदराज के गांवों को जोड़ने में भी महत्वपूर्ण साबित हुआ।
इसके अलावा विभिन्न हेलीकॉप्टर के उपयोग की बदौलत ही मानव संसाधन की तैनाती और इंजीनियरिंग के तीन शानदार अजूबों के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो सका। इन तीन चमत्कारी निर्माण में दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे पुल, देश का सबसे बड़ा केबल पुल और भारत में सबसे लंबी परिवहन सुरंग का निर्माण शामिल है।
एक वरिष्ठ रेलवे अधिकारी ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘सशस्त्र बलों के विभिन्न हेलीकॉप्टर ने कश्मीर को रेल से जोड़ने के सपने को हकीकत में बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इनके जरिये असंबद्ध क्षेत्रों में काम शुरू करने के लिए लोगों और मशीनों को पहुंचाया गया जिससे कश्मीर के लिए यह ट्रेन संभव हो सकी।’’
उन्होंने कहा कि रियासी-रामबन बेल्ट दूरदराज और काफी हद तक दुर्गम है और शुरुआत में मजदूरों और अभियंताओं को बुनियादी परियोजना कार्य करने के लिए पैदल यात्रा करनी पड़ती थी।
परियोजना की देखरेख करने वाले पूर्व रेलवे बोर्ड के सदस्य ए के खंडेलवाल ने कहा, ‘‘परियोजना के सबसे दूरस्थ भाग, सवालकोट तक पहुंच मार्ग के निर्माण में तेजी लाने के लिए जम्मू हवाई अड्डे से सेना के कई हेलीकॉप्टर का उपयोग करके भारी निर्माण मशीनरी को वहां पहुंचाया गया।’’
उनके व्यापक रसद समर्थन ने रेलवे को देश की सबसे कठिन इंजीनियरिंग चुनौतियों में से एक ‘उधमपुर-श्रीनगर-बारामुल्ला रेल लिंक (यूएसबीआरएल) के 111 किलोमीटर लंबे बनिहाल-कटरा खंड’ को पार करने में मदद की, जो 43,780 करोड़ रुपये की राष्ट्रीय परियोजना है।
खंडेलवाल ने कहा, ‘‘केवल हाथ के औजारों का उपयोग करके डुग्गा और सवालकोट के बीच सुरुकोट गांव के पास 100 मीटर गुणा 40 मीटर की भूमि को समतल करके एक टेबलटॉप हेलीपैड का निर्माण किया गया।’’
उन्होंने कहा कि निर्माण से जुड़ी भारी मशीनों को हवाई मार्ग से ले जाने के लिए एमआई-26 हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल किया गया, कई उड़ानें भरी गईं और अक्टूबर 2010 में 226 मीट्रिक टन सामग्री सुरुकोट तक पहुंचाई गई।
परियोजना के शुरुआती वर्षों में जम्मू और कश्मीर के रियासी जिले के दूरदराज और दुर्गम इलाकों में लोगों, सामग्री और भारी मशीनरी को पहुंचाने के लिए सैकड़ों हेलीकॉप्टर को उड़ानें भरनी पड़ीं।
रेलवे के एक अभियंता ने कहा, ‘‘संपर्क सड़कों के निर्माण से पहले, ग्रामीण पास के शहरों तक पहुंचने के लिए खतरनाक पगडंडियों या नावों पर निर्भर थे। परियोजना ने इस स्थिति में भारी बदलाव लाया है।’’
अधिकारियों ने बताया कि पहाड़ी इलाकों में 215 किलोमीटर से अधिक लंबी संपर्क सड़कें बनाई गईं, जो गुनी, पैखड़, ग्रान, बक्कल, दुग्गा, सुरुकोट, सवालकोट और बरल्ला सहित लगभग 70 दूरदराज के गांवों को जोड़ती हैं और लगभग 1.5 लाख लोगों के जीवन में सुधार लाती हैं। इन सड़कों ने रियासी और रामबन जिलों के दूरदराज के इलाकों में स्पष्ट बदलाव लाया है।
रेलवे के एक अन्य अभियंता ने कहा, ‘‘पहली बार घरों के बाहर वाहन दिखाई दिए और बाजारों, सड़क किनारे भोजनालयों और मरम्मत की दुकानों के उभरने के साथ ही व्यावसायिक गतिविधि फलने-फूलने लगीं। कभी विकास से कटे ये गांव अब शिक्षा और वाणिज्य के केंद्र बन रहे हैं।’’
अधिकारियों ने बताया कि 2002 में राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने के बाद यूएसबीआरएल पहल ने 525 लाख से अधिक मानव-दिवस रोजगार सृजित किए और 804 पात्र भूमिहीनों को प्रत्यक्ष रोजगार प्रदान किया, इसके अलावा निर्माण के दौरान 14,000 अप्रत्यक्ष रोजगार सृजित किए गए जिनमें से अधिकांश स्थानीय लोगों के लिए थे।
कभी अलग-थलग रहे इन इलाकों के निवासियों ने अपने जीवन को बदलने के लिए भारतीय रेलवे की सराहना की है और इसे एक ऐसा ‘देवदूत’ बताया है जो कनेक्टिविटी, संचार और विकास लेकर आया है।
डुग्गा गांव के सीरत तारिक ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘हमारे लिए रेलवे एक मसीहा है। यह एक सुदूर और कटा हुआ इलाका था। इस ट्रेन के साथ, हम अब पूरी तरह से बाकी दुनिया से जुड़ गए हैं। इस रेलवे परियोजना के कारण बहुत बड़ा विकास हुआ है। इसने हमारी किस्मत बदल दी है।’’
रियासी की एक कॉलेज छात्रा कौसर जबीन ने कहा, ‘‘हमारे लिए अपनी पढ़ाई जारी रखना बहुत आसान हो गया है, जो इस परियोजना से पहले संभव नहीं था। यह यहां बनी सड़कों और संचार बुनियादी ढांचे की वजह से संभव हो पाया है।’’
गुलाबगढ़ के एक व्यवसायी सुरिंदर सिंह ने कहा, ‘‘अब हमारे पास दुनिया का सबसे ऊंचा रेल पुल, देश का सबसे बड़ा अंजी खड्ड केबल पुल और भारत की सबसे लंबी परिवहन सुरंग टी-50 है।’’
अधिकारियों ने बताया कि 272 किलोमीटर लंबी यूएसबीआरएल परियोजना करीब 43,780 करोड़ रुपये की लागत से बनी है, जिसमें 119 किलोमीटर लंबी 36 सुरंगें और 943 पुल शामिल हैं।
कश्मीर तक रेल संपर्क की योजना पहली बार एक मार्च 1892 को महाराजा प्रताप सिंह द्वारा प्रस्तावित की गई थी और इसके बाद जून 1898 में ब्रिटिश इंजीनियरिंग फर्म एसआर स्कॉट स्ट्रैटन एंड कंपनी को सर्वेक्षण करने और कश्मीर रेल परियोजना को क्रियान्वित करने के लिए नियुक्त किया गया था।
भाषा संतोष माधव
माधव