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Friday, July 11, 2025

ग्रामीण युवाओं को कृषि उद्यमी बनने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए: धनखड़

Newsग्रामीण युवाओं को कृषि उद्यमी बनने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए: धनखड़

(तस्वीर के साथ)

शिमला, सात जून (भाषा) उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शनिवार को ग्रामीण युवाओं को सशक्त करने की आवश्यकता पर जोर दिया, ताकि वे भारत की कृषि अर्थव्यवस्था में परिवर्तन लाने का जरिया बन सकें।

हिमाचल प्रदेश के सोलन में डॉ. वाई एस परमार बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय के अपने दौरे के दौरान छात्रों, शिक्षकों और शोधार्थियों के साथ बातचीत करते हुए उन्होंने किसानों को सीधे सब्सिडी देने का आह्वान किया तथा दावा किया कि इससे उनकी वार्षिक आय 30,000 रुपये तक बढ़ जाएगी।

धनखड़ ने कहा कि उर्वरकों, बीजों और अन्य कृषि लागत पर अप्रत्यक्ष सब्सिडी देने के बजाय किसानों को सीधे मौद्रिक सहायता मिलनी चाहिए, जिससे उन्हें उर्वरक खरीदने या प्राकृतिक खेती का विकल्प चुनने का विकल्प मिलेगा।

उन्होंने कहा कि अमेरिका में किसान परिवार की आय उस देश के औसत परिवार की आय से अधिक है, क्योंकि किसानों को सीधे सरकारी सहायता मिलती है।

प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि में बढ़ोतरी की वकालत करते हुए उन्होंने कहा कि इस राशि को मुद्रास्फीति के साथ जोड़ा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि सम्मान निधि की तरह अन्य सभी सहायता सीधे किसानों के बैंक खातों में जमा की जानी चाहिए, जो काफी फायदेमंद होगा।

छात्रों को अपने कृषक परिवारों में परिवर्तन का अग्रदूत बनने के लिए प्रोत्साहित करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘‘आप जैसे लड़के और लड़कियों को अपने परिवारों को उपज के विपणन में आगे आने के लिए प्रेरित करना चाहिए।’’

उन्होंने कृषि उत्पादन और बाजार पहुंच के बीच के अंतराल को पाटने की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया।

उन्होंने कहा कि कृषि पृष्ठभूमि वाले ग्रामीण युवाओं को ‘‘उद्यमी और कृषि उद्यमी बनने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए’’ तथा उन्हें भारत की विशाल लेकिन ‘‘कम उपयोग की गयी’’ कृषि अर्थव्यवस्था में ‘‘परिवर्तन का साधन’’ बनने के लिए सशक्त बनाया जाना चाहिए।

धनखड़ ने इस क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव लाने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) के उपयोग का भी आह्वान किया।

उन्होंने कहा कि किसान न केवल ‘‘अन्नदाता’’ हैं, बल्कि ‘‘भाग्य विधाता’’ भी हैं। उन्होंने कहा कि विकसित भारत का रास्ता किसानों के खेतों से होकर जाता है।

निर्यातोन्मुखी सोच पर चिंता व्यक्त करते हुए धनखड़ ने कहा, ‘‘मुझे यह बहुत परेशान करने वाला लगता है जब लोग कहते हैं कि ‘यह निर्यात सामग्री है, यह निर्यात के लिए है’। क्यों? क्या हमें सबसे अच्छा खाना नहीं चाहिए, सबसे अच्छा पहनना नहीं चाहिए?’’

धनखड़ ने विश्वविद्यालय परिसर में, अपनी मां केसरी देवी की स्मृति में एक पौधा भी लगाया।

भाषा सुभाष पवनेश

पवनेश

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