नयी दिल्ली, एक जुलाई (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने नाबालिग से बलात्कार के मामले में अपराध की गंभीरता को रेखांकित करते हुए एक व्यक्ति को दी गयी 10 साल की सजा को बरकरार रखा।
न्यायमूर्ति अमित महाजन ने निचली अदालत के फैसले से सहमति जताई कि 20 वर्षीय युवक और 15 वर्षीय पीड़िता के बीच यौन संबंध सहमति से बने प्रतीत होते हैं, लेकिन मामला बलात्कार की श्रेणी में आएगा, क्योंकि घटना के समय वह (पीड़िता) नाबालिग थी।
निचली अदालत के 2023 के फैसले को बरकरार रखते हुए न्यायमूर्ति महाजन ने व्यक्ति की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उसने अपनी दोषसिद्धि और 10 साल की जेल की सजा को चुनौती दी थी।
उच्च न्यायालय ने 25 जून के फैसले में कहा कि व्यक्ति ने पीड़िता की उम्र पर कोई आपत्ति नहीं जताई।
सजा के बिंदु पर उच्च न्यायालय ने कहा कि निचली अदालत ने अपीलकर्ता के पक्ष में कमज़ोर करने वाली परिस्थितियों- कम उम्र और पहली बार अपराध करने- पर पहले ही विचार कर लिया है, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि ‘अपराध की गंभीरता’ को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
अदालत ने कहा कि 10 वर्ष की जेल की अवधि कानून में अपराध के लिए निर्धारित न्यूनतम अवधि है, तथा सुनाई गयी सजा इस घृणित अपराध के अनुरूप है।
प्रारंभ में लड़की के पिता की शिकायत पर 2017 में समयपुर बादली पुलिस स्टेशन में अपहरण का मामला दर्ज किया गया था, जिसमें कहा गया था कि वह स्कूल के लिए निकली थी, लेकिन घर नहीं लौटी और तब से लापता है। करीब एक महीने बाद उसे हरियाणा के बल्लभगढ़ से आरोपियों के पास से बरामद किया गया।
उसने आरोप लगाया कि वह स्कूल गई थी, जहां उसकी मुलाकात आरोपी व्यक्ति से हुई, जो उसका रिश्तेदार था, और वह उसे कालकाजी मंदिर ले गया तथा आश्वासन दिया कि वे दोपहर तक वापस आ जाएंगे।
हालांकि, पीड़िता ने आरोप लगाया था कि वह घर लौटने में देरी करता रहा और फिर उसे अपने घर ले गया, जहां उसने उसे नशीली दवा मिली कोल्ड ड्रिंक दी, जिससे वह बेहोश हो गई तथा जगने पर खुद को निर्वस्त्र पाया।
व्यक्ति ने आरोपों से इनकार करते हुए मामले में अपनी बेगुनाही का दावा किया।
भाषा आशीष सुरेश
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