फिरोजपुर(पंजाब), एक जुलाई (भाषा) भारतीय वायुसेना द्वारा 1962, 1965 और 1971 के युद्धों के दौरान पाकिस्तान सीमा के निकट एक गांव में लड़ाकू विमानों को उतारने के लिए इस्तेमाल की गई हवाई पट्टी को एक महिला और उसके बेटे ने 1997 में कुछ राजस्व अधिकारियों के साथ मिलीभगत कर कथित तौर पर बेच दिया था।
हालांकि, अधिकारियों ने बताया कि एक सेवानिवृत्त राजस्व अधिकारी द्वारा शिकायत दर्ज कराये जाने पर जांच के बाद भूमि रक्षा मंत्रालय को वापस सौंप दी गई।
पुलिस ने 28 जून को डुमनी वाला गांव निवासी उषा अंसल और उनके बेटे नवीन चंद अंसल के खिलाफ कुलगढ़ी पुलिस थाने में भारतीय दंड संहिता की धारा 420 (धोखाधड़ी), 465 (जालसाजी) और 120 बी (आपराधिक साजिश) सहित संबद्ध धाराओं के तहत मामला दर्ज किया है।
यह भूमि 982 एकड़ जमीन का हिस्सा थी, जिसे ब्रिटिश सरकार ने 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान रॉयल एयर फोर्स के इस्तेमाल के लिए अधिग्रहित किया था।
यहां तक कि भारतीय वायुसेना ने भी 1962, 1965 और 1971 के युद्धों के दौरान आपातकालीन लैंडिंग और रक्षा उद्देश्यों के लिए इस हवाई पट्टी का इस्तेमाल किया था।
पुलिस उपाधीक्षक करण शर्मा ने बताया कि सेवानिवृत्त राजस्व अधिकारी निशान सिंह द्वारा सतर्कता ब्यूरो के मुख्य निदेशक के समक्ष दायर की गई शिकायत के आधार पर जांच की गई और रिपोर्ट सौंपी गई, जिसके बाद आरोपियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है।
जांच रिपोर्ट के अनुसार, आरोपियों ने राजस्व अधिकारियों की मिलीभगत से वायुसेना की जमीन निजी व्यक्तियों को कथित तौर पर बेच दी थी।
यह मामला सबसे पहले निशान सिंह ने उठाया था।
फत्तूवाला गांव में स्थित भूमि के एक हिस्से (118 कनाल 16 मरला) की धोखाधड़ी से बिक्री का मामला सामने आने के बाद, वायुसेना स्टेशन हलवारा के कमांडेंट ने स्टेशन मुख्यालय फिरोजपुर के माध्यम से 16 अप्रैल 2021 को तत्कालीन उपायुक्त(डीसी), फिरोजपुर को इस मामले की जांच करने के लिए पत्र लिखा था।
निशान सिंह ने जांच में अत्यधिक देरी को लेकर याचिका भी दायर की थी, जिसके बाद पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने 21 दिसंबर 2023 को फिरोजपुर के डीसी को छह माह में जांच पूरी करने के निर्देश दिए थे।
बाद में, डीसी फिरोजपुर ने तीन पृष्ठों की रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें कहा गया कि भूमि 1958-59 के राजस्व रिकॉर्ड के अनुसार उसी स्थिति में है तथा इसका कब्जा अभी भी भारतीय वायुसेना के पास है।
हालांकि, रिपोर्ट से असंतुष्ट निशान सिंह ने उच्च न्यायालय में एक और याचिका दायर कर आरोप लगाया कि राज्य सरकार को सौंपी गई रिपोर्ट में कई तथ्य छिपाये गए हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि इस भूमि का दाखिल खारिज राजस्व अधिकारियों की मिलीभगत से 2001 में निजी व्यक्तियों के पक्ष में किया गया था।
भूमि का वह हिस्सा, जिसे कथित तौर पर निजी व्यक्तियों को हस्तांतरित कर दिया गया था, जिला प्रशासन द्वारा की गई जांच के बाद मई में रक्षा मंत्रालय को वापस कर दिया गया।
यह भूमि पहले मदन मोहन लाल और उनके भाई टेक चंद को सौंपी गई थी, जिन्हें 1964 में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री द्वारा प्रस्तावित एक योजना के तहत केंद्र सरकार ने ‘‘फसल प्रबंधक’’ नियुक्त किया गया था, जिसका उद्देश्य खाद्यान्न संकट से निपटने के लिए खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने हेतु रक्षा क्षेत्र की खाली पड़ी भूमि का उपयोग खेती के लिए करना था।
हालांकि, मदन की मृत्यु के बाद, उनकी ‘जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी’ का उपयोग कर जमीन कथित तौर पर बेच दी गई थी।
भाषा सुभाष नरेश
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