नयी दिल्ली, एक जुलाई (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने 1996 में विधि पाठ्यक्रम की छात्रा प्रियदर्शिनी मट्टू के बलात्कार और हत्या के लिए आजीवन कारावास की सजा काट रहे दोषी संतोष कुमार सिंह को समय से पहले रिहा करने से इनकार का फैसला मंगलवार को रद्द कर दिया।
न्यायमूर्ति संजीव नरुला ने कहा कि दोषी में सुधार की गुंजाइश है। उन्होंने मामला फिर से सजा समीक्षा बोर्ड (एसआरबी) के पास भेजते हुए उसे दोषी की समय-पूर्व रिहाई की अर्जी पर नए सिरे से विचार करने को कहा।
न्यायमूर्ति नरुला ने फैसला सुनाते हुए कहा, ‘‘मैंने उसमें सुधार की गुंजाइश देखी है। एसआरबी के फैसले को रद्द किया जाता है और मैंने मामले को नए सिरे से विचार करने के लिए एसआरबी को वापस भेज दिया है।’’
अदालत ने कैदियों की याचिकाओं पर विचार करते समय एसआरबी द्वारा पालन किए जाने वाले कुछ दिशानिर्देश भी दिए हैं।
अदालत ने पाया कि एसआरबी में फिलहाल किसी सक्षम चिकित्सा पेशेवर से अपराधी का औपचारिक मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन कराने की व्यवस्था नहीं है।
अदालत ने कहा कि ऐसी स्थिति में एसआरबी के लिए यह आकलन करना कठिन रहा कि दोषी की अपराध करने की प्रवृत्ति खत्म हो गई है या नहीं।
अदालत ने कहा कि एसआरबी को दोषियों की दलीलों पर विचार करते समय उनका मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन भी करना चाहिए, जो वर्तमान मामले में नहीं किया गया।
अदालत ने बोर्ड के लिए विभिन्न समयसीमाएं भी निर्धारित कीं। मामले में विस्तृत फैसले की प्रतीक्षा है।
सिंह ने 2023 में अपनी याचिका में एसआरबी की 21 अक्टूबर, 2021 को हुई बैठक में उसकी समय-पूर्व रिहाई को खारिज करने की सिफारिश को रद्द करने की मांग की है।
सिंह के वकील ने कहा कि दोषी ने पहले ही 25 वर्ष की सजा काट चुका है।
उन्होंने यह भी कहा कि दोषी का आचरण संतोषजनक रहा है, जिससे पता चलता है कि उसमें सुधार आया है और अपराध करने की उसकी सारी संभावनाएं समाप्त हो गई हैं।
वकील ने कहा कि वह समाज का एक उपयोगी सदस्य होगा और पिछले कई वर्षों से वह खुली जेल में भी रहा है।
अदालत को पहले बताया गया था कि 18 सितंबर, 2024 को एसआरबी की एक और बैठक हुई थी और उसमें समय-पूर्व रिहाई की उसकी याचिका को फिर से खारिज कर दिया गया था।
मट्टू (25) से जनवरी 1996 में दुष्कर्म किया गया था और उसकी हत्या कर दी गयी थी। दिल्ली विश्वविद्यालय के कानून के छात्र सिंह को तीन दिसंबर 1999 को निचली अदालत ने इस मामले में बरी कर दिया था, लेकिन दिल्ली उच्च न्यायालय ने 27 अक्टूबर 2006 को फैसला पलटते हुए उसे दुष्कर्म तथा हत्या का दोषी ठहराया था और उसे मौत की सजा सुनाई थी।
भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के पूर्व अधिकारी के बेटे सिंह ने अपनी दोषसिद्धि और मौत की सजा को चुनौती दी थी।
उच्चतम न्यायालय ने अक्टूबर 2010 में सिंह की दोषसिद्धि को बरकरार रखा था, लेकिन मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया था।
भाषा जोहेब सुरेश
सुरेश