इंदौर (मध्यप्रदेश), चार जुलाई (भाषा) इंदौर के कुटुम्ब न्यायालय ने एक फैसले में कहा है कि भले ही कोई कामकाजी महिला अपना खर्च उठाने में सक्षम हो, लेकिन उसकी नाबालिग संतानों का भरण-पोषण करना उसके पति की ‘एक पिता के तौर पर प्राथमिक और नैतिक जिम्मेदारी’ है।
अदालत ने 42 वर्षीय व्यक्ति को उसके दो नाबालिग बच्चों के भरण-पोषण के लिए उसकी पत्नी को हर महीने 22,000 रुपये प्रदान करने का आदेश देते हुए यह टिप्पणी की। आदेश के मुताबिक इस व्यक्ति को यह रकम उसके दोनों बच्चों के वयस्क हो जाने तक उसकी अलग रह रही पत्नी को अदा करनी होगी।
यह व्यक्ति एक अग्रणी दवा कंपनी में सहायक प्रबंधक के तौर पर काम करता है, जबकि बैचलर ऑफ इंजीनियरिंग (बीई) की उपाधि प्राप्त कर चुकी उसकी पत्नी एक अन्य निजी कंपनी की कर्मचारी है।
कुटुम्ब न्यायालय के एक अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश ने दोनों पक्षों की दलीलों पर गौर करने के बाद 30 जून के आदेश में कहा, ‘‘अवयस्क संतानों का भरण-पोषण एक पिता की प्राथमिक एवं नैतिक जिम्मेदारी है। मौजूदा प्रकरण में भले ही आवेदिका (पत्नी) स्वयं का भरण-पोषण करने में सक्षम हो, लेकिन दोनों अवयस्क संतानों का भरण-पोषण अनावेदक (पति) द्वारा किया जाना अपेक्षित है।’’
मामले की सुनवाई के दौरान महिला ने अदालत में स्वीकार किया कि उसने बीई की उपाधि प्राप्त की है और वह एक निजी कंपनी में काम करके हर महीने 20,000 रुपये कमाती है।
कुटुम्ब न्यायालय ने कहा कि माना जा सकता है कि यह महिला खुद के भरण-पोषण में सक्षम है, लेकिन उसका नाबालिग बेटा और नाबालिग बेटी भी उसके साथ रह रही है।
अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश ने कहा,‘‘सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि दम्पति की बेटी हृदय रोगी है और उसका ऑपरेशन हो चुका है। वर्तमान में भी उसे निरंतर उपचार की आवश्यकता है।’’
भरण-पोषण राशि के लिए इस महिला और उसकी दो नाबालिग संतानों ने अपने वकील राघवेंद्र सिंह रघुवंशी के जरिये कुटुम्ब न्यायालय में याचिका दायर की थी।
रघुवंशी ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘पारिवारिक विवाद के कारण पति-पत्नी वर्ष 2020 से अलग-अलग रह रहे हैं। तब से दम्पति के दोनों बच्चे उनकी मां के पास हैं और वह ही उनका पालन-पोषण कर रही है।’
भाषा
हर्ष, रवि कांत
रवि कांत