लखनऊ, चार जुलाई (भाषा) इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने प्रदेश में प्राथमिक विद्यालयों के विलय को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई पूरी करने के बाद शुक्रवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की पीठ ने कृष्णा कुमारी व अन्य की ओर से दायर दो अलग-अलग याचिकाओं पर यह आदेश पारित किया। याचिकाकर्ताओं ने विलय के संबंध में राज्य सरकार के 16 जून के आदेश को रद्द करने का अनुरोध किया है।
याचिकाकर्ताओं के वकील एल पी मिश्रा और गौरव मेहरोत्रा ने जोर देकर कहा था कि राज्य सरकार की कार्रवाई संविधान के अनुच्छेद 21ए के तहत 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों को दिए गए शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन है, क्योंकि इससे वे अपने आस-पड़ोस में शिक्षा हासिल करने के अधिकार से वंचित हो जाएंगे।
याचिका में कहा गया कि यदि किसी स्कूल में छात्रों की संख्या कम है तो सरकार को स्कूल का स्तर सुधारने का प्रयास करना चाहिए ताकि अधिक से अधिक बच्चे वहां दाखिला ले सकें। ऐसा करने की बजाय राज्य सरकार ने विलय या किसी अन्य तरीके से उन स्कूलों को बंद करने का आसान रास्ता खोज लिया है।
वहीं, निदेशक बेसिक शिक्षा की ओर से अपर महाधिवक्ता अनुज कुदेसिया व मुख्य सरकारी अधिवक्ता शैलेंद्र सिंह के साथ ही वरिष्ठ अधिवक्ता संदीप दीक्षित ने दलील दी कि सरकार ने नियमानुसार निर्णय लिया है और इसमें कोई त्रुटि व अवैधानिकता नहीं है।
शासन की ओर से कहा गया कि कई विद्यालय ऐसे हैं, जिनमें एक भी छात्र नहीं है। यह भी दलील दी गई कि सरकार ने कोई विलय नहीं किया है, बल्कि विद्यालयों को जोड़ा गया है। साथ ही, जिन प्राथमिक विद्यालयों को जोड़ा गया है, उन्हें बंद नहीं किया गया है।
सुनवाई के दौरान अपर महाधिवक्ता अनुज कुदेसिया ने बार-बार अदालत से इस मामले की रिपोर्टिंग पर रोक लगाने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि इस मामले की कार्यवाही की रिपोर्टिंग की जा रही है, जिससे सरकारी वकीलों की छवि खराब हो रही है।
हालांकि, न्यायमूर्ति भाटिया ने इस अनुरोध को सिरे से खारिज कर दिया।
भाषा सं आनन्द सुभाष
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