नयी दिल्ली, पांच जुलाई (भाषा) पुडुचेरी देश का पहला ऐसा राज्य/केंद्र शासित प्रदेश बन गया है, जहां ‘परिवार दत्तक ग्रहण योजना’ के तहत टीबी (क्षय रोग) के मरीजों की जांच की जा रही है। इस योजना के अंतर्गत एमबीबीएस छात्र विभिन्न परिवारों को गोद लेकर उनके स्वास्थ्य की निगरानी करते हैं और परामर्श प्रदान करते हैं।
राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग ने वर्ष 2022 में एफएपी को ‘निपुणता आधारित चिकित्सा शिक्षा पाठ्यक्रम’ (सीबीएमई) का हिस्सा बनाते हुए सभी मेडिकल छात्रों के लिये एमबीबीएस में प्रवेश के बाद तीन से पांच परिवारों को गोद लेना अनिवार्य कर दिया था।
पुडुचेरी के राज्य क्षय रोग अधिकारी डॉ. सी वेंकटेश ने बताया कि छात्र नियमित दौरे के दौरान गोद लिए गए परिवारों के सदस्यों में टीबी के लक्षणों की जांच करते हैं और बीमारी की पहचान तथा उपचार में मदद करते हैं।
उन्होंने बताया कि छात्र तब तक रोगियों का इलाज करता है, जब तक उनकी उपचार प्रक्रिया सफलतापूर्वक पूरी नहीं हो जाती।
केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी देश का पहला ऐसा क्षेत्र बन गया है, जिसने इस कार्यक्रम के तहत टीबी रोगियों की जांच (स्क्रीनिंग) को शामिल किया है।
एफएपी का उद्देश्य समुदाय की कार्यप्रणाली को समझना, उसके सदस्यों की स्वास्थ्य जरूरतों का मूल्यांकन करना और आंकड़े एकत्र कर साक्ष्य-आधारित उपायों में मदद करना है।
डॉ. वेंकटेश ने बताया कि टीबी नियंत्रण कार्यक्रमों में मरीजों की पहचान कई वर्षों से निष्क्रिय रही है। उन्होंने कहा कि इसमें मरीज ही आगे बढ़कर जांच कराता है, जिसकी अपनी सीमाएं हैं।
उन्होंने कहा कि इसके विपरीत, अब विशेषज्ञ यह सुझाव दे रहे हैं कि टीबी के मरीजों की पहचान सक्रिय तरीके से की जाए, जिसमें स्वास्थ्यकर्मी खुद आगे आकर मरीजों तक पहुंचते हैं। उन्होंने कहा कि इससे बीमारी का जल्दी पता लगता है और समय पर इलाज शुरू करना संभव हो पाता है।
उन्होंने कहा, ‘पुडुचेरी के मेडिकल कॉलेजों ने ‘परिवार दत्तक ग्रहण कार्यक्रम’ के अवसर का उपयोग किया है, ताकि इन मेडिकल छात्रों द्वारा गोद लिए गए परिवार के सदस्यों की टीबी जांच करने के लिए इन छात्रों का संसाधन के रूप में उपयोग किया जा सके।’
गोद लिए गए परिवारों की नियमित जांच के दौरान, छात्र टीबी के लक्षणों के लिए परिवार के अन्य सदस्यों की जांच करते हैं।
टीबी एक संक्रामक रोग है, जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैल सकता है।
डॉ. वेंकटेश ने कहा कि इससे बिना लक्षण वाले वे व्यक्ति भी जांच के योग्य हो जाते हैं, जो मध्यम से उच्च जोखिम की श्रेणी में आते हैं।
उन्होंने कहा कि टीबी की पुष्टि होने पर छात्र मरीज को अस्पताल ले जाकर सरकारी टीबी कार्यक्रम से जोड़ता है। उन्होंने कहा कि वह रोगी और परिवार को परामर्श भी देता है, जिसमें श्वसन स्वच्छता, थूक निस्तारण, पोषण की भूमिका और टीबी से जुड़ी भ्रांतियों को दूर करने जैसे पहलू शामिल होते हैं।
डॉ. वेंकटेश ने कहा कि इसके अतिरिक्त, छात्र परिवार के अन्य सदस्यों की जांच करता है और टीबी की रोकथाम से संबंधित उपचार दिलाने में मदद करता है।
उन्होंने कहा कि छात्र तीन वर्षों तक गोद लिए गए परिवारों की समय-समय पर जांच करते हैं और जोखिम वाले मामलों की शीघ्र पहचान सुनिश्चित करते हैं।
डॉ. वेंकटेश ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा आवश्यक सामग्री, लॉजिस्टिक्स, जांच और उपचार सेवाओं की व्यवस्था के बिना यह संभव नहीं था।
भाषा
राखी दिलीप
दिलीप