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Monday, July 7, 2025

इक्कीसवीं सदी के सॉफ्टवेयर को 20वीं सदी के टाइपराइटर से नहीं चलाया जा सकता: मोदी

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रियो डी जेनेरियो, छह जुलाई (भाषा) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रमुख वैश्विक निकायों में सुधार पर जोर देते हुए रविवार को कहा कि ‘ग्लोबल साउथ’ अक्सर ‘‘दोहरे मानदंडों’’ का शिकार हुआ है और विश्व अर्थव्यवस्था में प्रमुख योगदान देने वाले राष्ट्रों को निर्णय लेने वाले मंच पर जगह नहीं मिल पाती है।

वैश्विक शासन में सुधार पर आयोजित सत्र में अपने संबोधन में मोदी ने विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, विश्व व्यापार संगठन और प्रमुख वित्तीय निकायों में सुधार पर जोर देते हुए कहा कि इनमें विश्व की वर्तमान वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित किया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘‘एआई (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) के युग में, जहां प्रौद्योगिकी हर सप्ताह विकसित होती है, वैश्विक संस्थाओं का 80 साल तक बिना सुधार के चलना अस्वीकार्य है। आप 20वीं सदी के टाइपराइटरों पर 21वीं सदी का सॉफ्टवेयर नहीं चला सकते।’’

उन्होंने कहा कि ‘ग्लोबल साउथ’ के बिना ये संस्थाएं ऐसे मोबाइल फोन की तरह लगती हैं, जिनके अंदर ‘सिम कार्ड’ तो लगा हुआ है, लेकिन नेटवर्क नहीं है।

ब्राजील के समुद्र तटीय शहर में समूह के दो-दिवसीय वार्षिक शिखर सम्मेलन के पहले दिन ब्रिक्स के शीर्ष नेताओं ने विश्व के समक्ष उपस्थित विभिन्न चुनौतियों पर विचार-विमर्श किया।

चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग और उनके रूसी समकक्ष व्लादिमीर पुतिन ने शिखर सम्मेलन में भाग नहीं लिया। ईरानी राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन और मिस्र के राष्ट्रपति अब्दुल-फतह अल-सिसी भी सम्मेलन में शामिल नहीं हुए।

ब्रिक्स एक प्रभावशाली समूह के रूप में उभरा है क्योंकि यह विश्व की 11 प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्थाओं को एकसाथ लाता है, जो वैश्विक जनसंख्या का लगभग 49.5 प्रतिशत, वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 40 प्रतिशत और वैश्विक व्यापार का लगभग 26 प्रतिशत प्रतिनिधित्व करता है।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ‘‘ग्लोबल साउथ अक्सर दोहरे मानदंडों का शिकार हुआ है। चाहे वह विकास का मुद्दा हो, संसाधनों के वितरण या सुरक्षा से जुड़े मुद्दों का मामला हो।’’

पहले पूर्ण सत्र में अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने इस बात पर अफसोस जताया कि जलवायु वित्त, सतत विकास और प्रौद्योगिकी तक पहुंच जैसे मुद्दों पर ‘ग्लोबल साउथ’ को अक्सर आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि 20वीं सदी में निर्मित वैश्विक संस्थाओं में मानवता के दो-तिहाई हिस्से को अब भी उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिला है।

उन्होंने कहा, ‘‘आज की वैश्विक अर्थव्यवस्था में जिन देशों का बड़ा योगदान है, उन्हें निर्णय लेने वाले मंच पर जगह नहीं दी गई है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘यह केवल प्रतिनिधित्व का सवाल नहीं है, बल्कि विश्वसनीयता और प्रभावशीलता का भी सवाल है।’’

प्रधानमंत्री ने कहा कि वैश्विक संस्थाएं ठीक से काम करने या 21वीं सदी की चुनौतियों का सामना करने में असमर्थ हैं।

‘ग्लोबल साउथ’ से तात्पर्य उन देशों से है, जो प्रौद्योगिकी और सामाजिक विकास के मामले में कम विकसित माने जाते हैं। ये देश मुख्यतः दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थित हैं। इसमें अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका के देश शामिल हैं।

उन्होंने कहा, ‘चाहे वह दुनिया भर में चल रहे संघर्ष हों, महामारी हो, आर्थिक संकट हो या साइबर या अंतरिक्ष में उभरती चुनौतियाँ हों, ये संस्थान समाधान पेश करने में विफल रहे हैं।’

वार्षिक ब्रिक्स शिखर सम्मेलन की शुरुआत समूह के सदस्य देशों के नेताओं द्वारा एक सामूहिक तस्वीर खिंचवाने के साथ हुई, जिसके बाद ब्राजील के राष्ट्रपति लुइज इनासियो लूला डी सिल्वा ने अपना संबोधन दिया।

मोदी ने कहा कि आज दुनिया को एक नयी बहुध्रुवीय और समावेशी व्यवस्था की जरूरत है और इसकी शुरुआत वैश्विक संस्थाओं में व्यापक सुधारों से होनी चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘‘सुधार केवल प्रतीकात्मक नहीं होने चाहिए, बल्कि उनका वास्तविक प्रभाव भी दिखना चाहिए। शासन व्यवस्था, मताधिकार और नेतृत्व के पदों में बदलाव होना चाहिए।’’

प्रधानमंत्री ने तर्क दिया कि नीति-निर्माण में ‘ग्लोबल साउथ’ के देशों की चुनौतियों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि ब्रिक्स का विस्तार इस बात का प्रमाण है कि यह एक ऐसा संगठन है जो समय के अनुसार खुद को बदलने की क्षमता रखता है।

प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘अब हमें संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) और बहुपक्षीय विकास बैंकों जैसी संस्थाओं में सुधार के लिए भी यही इच्छाशक्ति दिखानी होगी।’’

उन्होंने कहा, ‘‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) के युग में, जहां हर सप्ताह तकनीक का उन्नयन होता है, किसी वैश्विक संस्था का 80 वर्षों में एक बार भी अपडेट न होना स्वीकार्य नहीं है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘भारत ने हमेशा अपने हितों से ऊपर उठकर मानव जाति के हित में काम करना अपना कर्तव्य माना है।’’

मोदी ने कहा, ‘‘हम ब्रिक्स देशों के साथ मिलकर सभी विषयों पर रचनात्मक योगदान देने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं।’’

भाषा अमित सुरेश

सुरेश

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