कोच्चि, सात जुलाई (भाषा) उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सोमवार को कहा कि भारतीय संविधान की प्रस्तावना बच्चों के लिए माता-पिता की तरह है और इसे बदला नहीं जा सकता, चाहे कोई कितनी भी कोशिश कर ले।
उन्होंने कहा, ‘‘संविधान की प्रस्तावना को लेकर कई मुद्दे रहे हैं। भारतीय संविधान की प्रस्तावना बच्चों के लिए माता-पिता की तरह है। आप चाहे जितनी कोशिश कर लें, आप अपने माता-पिता की भूमिका को नहीं बदल सकते। यह संभव नहीं है।’’
कोच्चि स्थित ‘नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ एडवांस्ड लीगल स्टडीज’ (एनयूएएलएस) में छात्रों और संकाय सदस्यों के साथ बातचीत में उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक रूप से किसी भी देश के संविधान की प्रस्तावना में बदलाव नहीं हुआ है, लेकिन भारत के संविधान की प्रस्तावना में आपातकाल के दौरान बदलाव किया गया।
उन्होंने कहा, ‘‘हमारे संविधान की प्रस्तावना उस समय बदली गई जब सैकड़ों और हजारों लोग जेल में थे, जो कि हमारे लोकतंत्र का सबसे अंधकारमय काल यानी आपातकाल था।’’
उनका यह बयान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) द्वारा संविधान की प्रस्तावना में शामिल शब्दों ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ की समीक्षा की हाल ही में की गई मांग के संदर्भ में आया है। आरएसएस का कहना है कि ये शब्द डॉ. भीमराव अंबेडकर द्वारा तैयार किए गए संविधान में नहीं थे और इन्हें आपातकाल के दौरान जोड़ा गया था।
नयी दिल्ली में 26 जून को आपातकाल के 50 वर्ष पूरे होने पर आयोजित एक कार्यक्रम में आरएसएस महासचिव दत्तात्रेय होसबाले ने कहा था, ‘‘बाबा साहेब आंबेडकर ने जो संविधान बनाया, उसकी प्रस्तावना में ये शब्द कभी नहीं थे। आपातकाल के दौरान जब मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए, संसद काम नहीं कर रही थी, न्यायपालिका पंगु हो गई थी, तब ये शब्द जोड़े गए।’’
भाषा गोला नेत्रपाल
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