नयी दिल्ली, सात जुलाई (भाषा) रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान सशस्त्र बलों द्वारा दिखाए गए पराक्रम की सराहना करते हुए कहा कि शांति का समय एक ‘‘भ्रम’’ के अलावा कुछ नहीं है और भारत को अपेक्षाकृत शांत अवधि के दौरान भी अनिश्चितता के लिए तैयार रहना चाहिए।
सिंह ने एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि अभियान में स्वदेश निर्मित उपकरणों और प्रणालियों के प्रदर्शन से भारत निर्मित सैन्य उत्पादों की वैश्विक मांग बढ़ी है।
उन्होंने कहा, ‘‘विश्व हमारे रक्षा क्षेत्र को नए सम्मान की दृष्टि से देख रहा है। वित्तीय प्रक्रियाओं में एक भी देरी या त्रुटि अभियानगत तैयारियों को सीधे प्रभावित कर सकती है।’’
सिंह ने कहा, ‘‘अधिकतर उपकरण जो हम पहले आयात करते थे, अब भारत में बनाए जा रहे हैं। हमारे सुधार उच्चतम स्तर पर स्पष्ट दृष्टिकोण और प्रतिबद्धता के कारण सफल हो रहे हैं।’’
रक्षा मंत्री रक्षा लेखा विभाग (डीएडी) के नियंत्रकों के सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने रक्षा विभाग से रक्षा में निजी क्षेत्र की बढ़ती भागीदारी के साथ तालमेल बिठाते हुए ‘‘नियंत्रक’’ से ‘‘सुविधाकर्ता’’ बनने का आह्वान किया।
व्यापक भू-राजनीतिक स्थिति पर प्रकाश डालते हुए रक्षा मंत्री ने ‘स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट’ के विश्लेषण का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि 2024 में वैश्विक सैन्य व्यय 2.7 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर तक पहुंचा।
उन्होंने कहा कि इससे भारत के स्वदेशी रक्षा उद्योगों के लिए अपार अवसर खुलेंगे।
रक्षा मंत्री ने रक्षा विभाग के नए आदर्श वाक्य ‘‘सतर्क, सक्रिय, अनुकूल’’ की प्रशंसा की तथा कहा कि ये महज शब्द नहीं हैं, बल्कि आज के तेजी से विकसित हो रहे रक्षा परिवेश में आवश्यक कार्य संस्कृति का प्रतिबिंब हैं।
उन्होंने अधिकारियों से आग्रह किया कि वे केवल बाहरी ‘ऑडिट’ या सलाहकारों पर निर्भर रहने के बजाय आत्मावलोकन के माध्यम से आंतरिक सुधार करें।
सिंह ने कहा कि आंतरिक मूल्यांकन के माध्यम से किए गए सुधार जीवंत संगठन बनाते हैं और ये सुधार अधिक बेहतर होते हैं, जिनमें कम बाधाएँ होती हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘शांति का समय एक भ्रम के अलावा कुछ नहीं है। अपेक्षाकृत शांत अवधि के दौरान भी हमें अनिश्चितता के लिए तैयार रहना चाहिए। अचानक होने वाले घटनाक्रम हमारी वित्तीय और अभियानगत स्थिति में पूर्ण बदलाव ला सकते हैं।’’
रक्षा मंत्री ने कहा, ‘‘चाहे उपकरण उत्पादन बढ़ाना हो या वित्तीय प्रक्रियाओं को अनुकूलित करना हो, हमें हर समय नवीन तकनीकों और प्रणालियों के साथ तैयार रहना चाहिए।’’
उन्होंने डीएडी से कहा कि वह इस मानसिकता को अपनी योजना, बजट और निर्णय लेने की प्रणालियों में शामिल करे।
रक्षा क्षेत्र के बढ़ते सामरिक और आर्थिक महत्व पर प्रकाश डालते हुए सिंह ने रक्षा व्यय को महज व्यय मानने की धारणा को बदलने से लेकर गुणक प्रभाव वाले आर्थिक निवेश के रूप में बदलने का आह्वान किया।
उन्होंने कहा, ‘‘हाल तक रक्षा बजट को राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का हिस्सा नहीं माना जाता था। आज वे विकास के वाहक हैं।’’
रक्षा मंत्री ने रक्षा विभाग से आग्रह किया कि वह अपनी योजना और आकलन में रक्षा अर्थशास्त्र को शामिल करे, जिसमें अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं और दोहरे उपयोग वाली प्रौद्योगिकियों का सामाजिक प्रभाव विश्लेषण भी शामिल हो।
भाषा नेत्रपाल नरेश
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