बेंगलुरु, सात जुलाई (भाषा) न्याय प्रणाली में दिव्यांग व्यक्तियों से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां या तो गायब है या फिर असंगत है, जिससे जवाबदेही तय करना और उनमें जरूरी सुधार कर पाना मुश्किल हो रहा है। भारत में पहली बार किए गए एक अलग तरह के शोध अध्ययन – ‘भारत में दिव्यांग व्यक्तियों के लिए न्याय तक पहुंच: एक जानकारी आधारित रिपोर्ट’ में यह बात सामने आई हैं।
बेंगलुरु स्थित विधि एवं नीति से संबंधित संस्था ‘पैक्टा’ द्वारा जारी की गई इस रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत की पुलिस, जेल, न्यायपालिका और कानूनी सहायता प्रणालियों में दिव्यांग व्यक्तियों से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी की भारी कमी है और उन्हें इस प्रणालियों से काफी हद तक बाहर रखा गया है।
रिपोर्ट में यह भी उजागर किया गया है कि कुछ प्रगतिशील आदेशों के बावजूद भारत की न्याय प्रणाली विश्वसनीय आंकड़ों के अभाव और संस्थागत स्तर पर कमजोर कार्यान्वयन के कारण काफी हद तक दिव्यांग व्यक्तियों के पहुंच से बाहर है।
इस रिपोर्ट की प्रस्तावना में भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी. वाई. चंद्रचूड़ ने कहा है कि जानकारी आधारित रिपोर्ट बेहद मूल्यवान होती हैं।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने अपनी प्रस्तावना में लिखा, ‘‘ये उपख्यान या नैतिक अपील से कहीं आगे जाती हैं। ये सटीक नीति निर्माण को सक्षम बनाती हैं, अनुपालन पर नजर रखती हैं और जवाबदेही बनाती हैं।’’
पैक्टा की संस्थापक निवेदिता कृष्णा के अनुसार, भारत में दिव्यांग व्यक्तियों के लिए न्याय प्रणाली में आगे बढ़ना कठिन बना हुआ है – जिसमें भौतिक, प्रक्रियात्मक, मनोवृत्तिगत और प्रणालीगत बाधाएं शामिल हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘भारत में 2.6 करोड़ से अधिक दिव्यांग व्यक्ति न्याय प्रणाली से बाहर हैं। न्याय प्रणाली में दिव्यांग व्यक्तियों को पूर्ण रूप से शामिल करने के लिए जागरूकता, आरक्षण नीतियों के प्रवर्तन, बुनियादी ढांचे की पहुंच और व्यापक आंकड़ा संग्रह के माध्यम से दिव्यांगता समावेशन पर निरंतर ध्यान देने की आवश्यकता है।’’
भाषा यासिर माधव
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