मुंबई, आठ जुलाई (भाषा) मुंबई उच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि महाराष्ट्र सरकार ने धार्मिक स्थलों पर अवैध लाउडस्पीकरों के खिलाफ पर्याप्त और गंभीर प्रयास किए हैं, इसलिए कोई अवमानना कार्रवाई शुरू करने की आवश्यकता नहीं है।
मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और न्यायमूर्ति संदीप मार्ने की पीठ ने सामाजिक कार्यकर्ता संतोष पचलाग द्वारा दायर 2018 की याचिका का निपटारा कर दिया, जिसमें ध्वनि प्रदूषण नियमों का उल्लंघन करने वाले अवैध लाउडस्पीकरों पर उच्च न्यायालय के अगस्त 2016 के आदेश का पालन नहीं करने के लिए सरकार के खिलाफ अवमानना कार्रवाई की मांग की गई थी।
अदालत ने महाराष्ट्र की पुलिस महानिदेशक रश्मि शुक्ला द्वारा पूर्व में प्रस्तुत हलफनामे का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि इस वर्ष अप्रैल तक विभिन्न धार्मिक स्थलों पर 2,812 लाउडस्पीकरों का प्रयोग किया जा रहा था।
इनमें से 343 को हटा दिया गया और 831 लाउडस्पीकरों को लाइसेंस और अनुमति दी गई। 767 संरचनाओं को नोटिस जारी कर उन्हें ‘डेसिबल’ सीमा से अधिक शोर नहीं करने की चेतावनी दी गई और 19 मामलों में प्राथमिकी दर्ज की गई।
सरकारी वकील नेहा भिड़े ने अदालत को बताया कि ऐसे अवैध लाउडस्पीकरों के खिलाफ की जाने वाली कार्रवाई की निगरानी के लिए पुलिस महानिरीक्षक स्तर के एक नोडल अधिकारी की नियुक्ति की गई है।
पीठ ने कहा कि वह इस बात से संतुष्ट है कि उच्च न्यायालय के 2016 के निर्देशों का अनुपालन किया गया है।
अदालत ने कहा, “यह स्पष्ट है कि अधिकारियों ने आदेश का पर्याप्त रूप से पालन किया है। इस न्यायालय के निर्देशों की जानबूझकर अवज्ञा करने का कोई मामला नहीं बनता है क्योंकि अधिकारियों ने आदेश का पालन करने के लिए गंभीर प्रयास किए हैं।”
अदालत ने कहा, इसलिए कोई अवमानना का मामला नहीं बनता और अवमानना याचिका निस्तारित की जाती है।
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प्रशांत अविनाश
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