नयी दिल्ली, नौ जुलाई (भाषा) प्रमुख रक्षा अध्यक्ष जनरल अनिल चौहान ने मंगलवार को कहा कि अपने-अपने हितों को लेकर चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश का एक-दूसरे के प्रति संभावित झुकाव, भारत की स्थिरता एवं सुरक्षा पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है।
एक थिंक टैंक ‘ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन’ द्वारा आयोजित कार्यक्रम में अपने संबोधन में जनरल चौहान ने भारत और पाकिस्तान के बीच सात से 10 मई के दौरान हुए सैन्य टकराव का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि संभवत: यह पहली बार है जब दो परमाणु हथियार संपन्न देशों में सीधे तौर पर सैन्य टकराव हुआ।
प्रमुख रक्षा अध्यक्ष (सीडीएस) ने चीन और पाकिस्तान की साठगांठ का जिक्र करते हुए कहा कि पाकिस्तान ने पिछले पांच वर्षों में अपने लगभग 70 से 80 प्रतिशत हथियार और उपकरण चीन से हासिल किए हैं। उन्होंने कहा कि चीनी सैन्य कंपनियों की पाकिस्तान में वाणिज्यिक देनदारियां हैं।
शीर्ष सैन्य अधिकारी ने कहा कि हिंद महासागर क्षेत्र के देशों में आर्थिक संकट ने ‘‘बाहरी शक्तियों’’ को अपना प्रभाव बढ़ाने का मौका दे दिया, जिससे भारत के लिए संकट पैदा हो सकता हैं।
जनरल चौहान ने कहा, ‘‘चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच हितों में संभावित समानता है जिसका भारत की स्थिरता एवं सुरक्षा पर प्रभाव पड़ सकता है।’’
उनकी यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब बांग्लादेश की अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना के पिछले वर्ष अगस्त में ढाका से पलायन कर भारत में शरण लेने के बाद से दोनों देशों के बीच संबंधों में खटास आई है।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ के विभिन्न पहलुओं के बारे में बात करते हुए सीडीएस ने कहा कि साइबर और विद्युत चुंबकीय क्षेत्रों जैसे युद्ध के नए क्षेत्रों को शामिल कर परंपरागत अभियानों में ‘‘दायरे का और अधिक विस्तार’’ किया जा सकता है।
जनरल चौहान ने कहा कि जब भारत और पाकिस्तान के बीच चार दिनों तक सैन्य टकराव जारी रहा, तब उत्तरी सीमा पर चीन की ओर से कोई असामान्य गतिविधि नहीं हुई।
उन्होंने कहा, ‘‘हो सकता है कि यह एक छोटा संघर्ष हो। मैं सिर्फ अनुमान लगा सकता हूं। लेकिन यह सच है कि उत्तरी सीमा पर (चीनी सेनाओं द्वारा) कोई गतिविधि नहीं हुई।’’
शीर्ष सैन्य अधिकारी ने पाकिस्तान और चीन के बीच रणनीतिक मित्रता पर भी प्रकाश डाला।
उन्होंने कहा, ‘‘पिछले पांच साल में पाकिस्तान ने अपने लगभग 70 से 80 प्रतिशत हथियार और उपकरण चीन से खरीदे हैं। यह एक तथ्य है। यह धारणा भी उचित है कि चीनी ओईएम (मूल उपकरण निर्माता) के पास वाणिज्यिक दायित्व हैं जिन्हें उन्हें पूरा करना होगा और पाकिस्तान में उनके लोग हैं।’’
सीडीएस ने यह भी रेखांकित किया कि कैसे भारत ने पाकिस्तान की परमाणु हमले की धौंस को उजागर किया।
उन्होंने कहा, ‘‘भारत ने यह भी कहा है कि वह ‘परमाणु ब्लैकमेल’ से नहीं डरेगा। मेरा मानना है कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ दो परमाणु संपन्न देशों के बीच संघर्ष का एकमात्र उदाहरण है।’’
जनरल चौहान ने कहा कि परमाणु हथियारों के आविष्कार के बाद दुनिया भर में सैकड़ों संघर्ष हुए हैं, लेकिन यह पहली बार है जब दो परमाणु हथियार संपन्न देशों के बीच सीधा सैन्य टकराव हुआ।
उन्होंने कहा, ‘‘इस तरह से ‘ऑपरेशन सिंदूर’ अपने आप में अनूठा है और यह न केवल उपमहाद्वीप के लिए, बल्कि पूरे विश्व के लिए सबक हो सकता है।’’
जनरल चौहान ने कहा कि इस संदर्भ में परंपरागत अभियान के लिए काफी स्थान है। अपने तर्क के समर्थन में उन्होंने तीन मूलभूत कारण बताए। उन्होंने कहा, ‘‘पहला कारण है भारत का परमाणु सिद्धांत, जिसके अनुसार भारत पहले परमाणु हथियार का इस्तेमाल नहीं करेगा। मुझे लगता है कि इससे हमें ताकत मिलती है तथा यह भारत और पाकिस्तान के बीच एक खास अंतर बनाने में योगदान देता है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘दूसरा कारण है, उन्होंने (पाकिस्तान ने) वास्तव में जिस तरह से जवाब दिया। भारत के जवाब में हमने रोकथाम की रणनीति के तहत, आतंकवादी हमले के जवाब में आतंकवादी ठिकानों को नष्ट किया। आप इसे बदला या प्रतिकार कह सकते हैं, लेकिन इससे आगे के हमलों को रोका जा सकता है।’’
शीर्ष सैन्य अधिकारी ने कहा कि पारंपरिक अभियानों के विस्तार की अब भी गुंजाइश है।
युद्ध की बदलते स्वरूप के बारे में बात करते हुए जनरल चौहान ने कहा कि भारत को पुराने और नए दोनों तरह के युद्धों के लिए तैयार रहना होगा।
जनरल चौहान ने कहा, ‘‘सैन्य दृष्टिकोण से दूसरी उभरती चुनौती 365 दिन 24 घंटे उच्च स्तर की अभियानगत तैयारी बनाए रखना है।’’
जनरल चौहान ने यह भी कहा कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान सेना, नौसेना और वायुसेना के बीच पूर्ण तालमेल था।
भाषा सुरभि मनीषा
मनीषा