नयी दिल्ली, 10 जुलाई (भाषा) दिल्ली की एक अदालत ने 2007 के एक हत्याकांड की जांच में “बेहद चिंताजनक स्थिति” को रेखांकित करते हुए डीसीपी रैंक के पुलिस अधिकारी को नोटिस जारी किया है।
न्यायिक मजिस्ट्रेट भारती बेनीवाल ने कहा कि मानव जीवन के नुकसान से जुड़े मामले में कर्तव्य की उपेक्षा बर्दाश्त नहीं की जा सकती।
अदालत ने कहा, “यह वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण है कि 30-35 वर्ष की आयु का एक युवक 30 जुलाई, 2007 को संदिग्ध परिस्थितियों में मृत पाया गया था, फिर भी संबंधित पुलिस अधिकारियों ने कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की।”
आदेश में कहा गया है कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला है कि पीड़ित के गले पर रस्सी का निशान था और सिर के पीछे गंभीर चोट थी, जिससे संकेत मिलता है कि उसकी हत्या की गई होगी, लेकिन स्थानीय पुलिस ने मामला दर्ज करने या जांच शुरू करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया।
न्यायाधीश ने कहा, “मामला अत्यंत चिंताजनक स्थिति को उजागर करता है। यह हत्या के एक जघन्य मामले में पुलिस तंत्र की घोर उदासीनता और घोर लापरवाही को दर्शाता है।”
अदालत ने कहा कि चार गवाहों के बयानों से पता चला है कि पीड़ित अजमेरी गेट स्थित मोहन होटल में कार्यरत था और उसकी हत्या होटल परिसर के अंदर ही की गई थी।
अदालत ने कहा, “यह भी बताया गया है कि अपराध को छिपाने के प्रयास के तहत शव पास के नाले में फेंक दिया गया था। हैरानी की बात यह है कि बयान, पोस्टमार्टम रिपोर्ट और अपराध स्थल की जानकारी समेत पर्याप्त सबूत होने के बावजूद, तत्कालीन थाना प्रभारी (एसएचओ) या संबंधित सहायक पुलिस आयुक्त (एसीपी) ने कभी कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं।”
घटना के समय कमला मार्केट थाने के एसएचओ रहे सेवानिवृत्त एसीपी दिनेश कुमार ने कहा कि थाने के रिकॉर्ड को देखते समय उन्हें पूछताछ रिपोर्ट मिली और उसके बाद उन्होंने प्राथमिकी दर्ज करने के लिए मध्य जिले के पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) से अनुमति मांगी।
अदालत ने कहा, “यह भी गंभीर चिंता का विषय है कि पूरा पुलिस रिकॉर्ड पेश नहीं किया गया। प्राथमिकी दर्ज होने के बाद भी पुलिस ने गवाह/संदिग्ध से मिलने तक के लिए कोई कदम नहीं उठाया और ऐसा प्रतीत होता है कि प्राथमिकी दर्ज करना भी महज एक औपचारिकता थी।”
अदालत ने कहा कि तत्कालीन पुलिस अधिकारियों का आचरण “अत्यधिक संदिग्ध” पाया गया।
अदालत के अनुसार अधिकारियों का आचरण या तो ‘जानबूझकर की गई निष्क्रियता’ या ‘अपराधियों को बचाने का जानबूझकर किया गया प्रयास’ प्रतीत होता है।
अदालत ने आदेश दिया, “मानव जीवन की हानि से जुड़े मामले में कर्तव्य की ऐसी उपेक्षा बर्दाश्त नहीं की जा सकती। मध्य जिले के डीसीपी को नोटिस जारी कर व्यक्ति की मृत्यु की तारीख से लेकर प्राथमिकी दर्ज होने की तारीख तक संबंधित एसएचओ, निरीक्षक द्वारा की गई पूछताछ और एसीपी की सूची के बारे में अदालत को अवगत कराने को कहा जाए।”
अदालत ने मामले की जांच करने, जवाबदेही तय करने और दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ उचित विभागीय व कानूनी कार्रवाई करने के लिए सेंट्रल रेंज के संयुक्त पुलिस आयुक्त को नोटिस जारी किया।
इसके अलावा, तीन सप्ताह के अंदर एक अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया गया है। साथ ही पुलिस को मामले की जांच थाने के तत्कालीन पुलिस अधिकारियों की संभावित मिलीभगत के दृष्टिकोण से भी करने को कहा गया है। मामले की अगली सुनवाई दो अगस्त को होगी।
भाषा जोहेब नरेश
नरेश