नयी दिल्ली, 10 जुलाई (भाषा) नीति आयोग ने बृहस्पतिवार को कहा कि राज्य सरकारों को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषदों को पर्याप्त वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराने चाहिए और नवोन्मेष एवं प्रौद्योगिकी-आधारित विकास को बढ़ावा देने के लिए अपने संचालन मंडल का पुनर्गठन करना चाहिए।
आयोग ने ‘राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषदों को मजबूत बनाने के लिए रूपरेखा’ शीर्षक से जारी रिपोर्ट में कहा है कि इन परिषदों को मिली जिम्मेदारी से संबंधित गतिविधियों के लिए केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों के पास उपलब्ध व्यापक वित्तपोषण अवसरों का पता लगाना चाहिए।
इसमें कहा गया, ‘‘राज्य सरकारों को परिषदों को पर्याप्त वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराने चाहिए ताकि वे नियमित गतिविधियों को प्रभावी ढंग से संचालित कर सकें और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के अत्याधुनिक एवं उभरते क्षेत्रों में नई गतिविधियां शुरू कर सकें।’’
नीति आयोग के अनुसार, यह वांछनीय है कि हर राज्य अपने सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) का कम-से-कम 0.5 प्रतिशत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर आवंटित करे।
रिपोर्ट में यह भी सिफारिश की गयी है कि परिषदों के संचालन मंडल का थोड़ा पुनर्गठन और विस्तार किया जाना चाहिए ताकि इसे सोच-समझ के साथ नीतिगत निर्णय लेने और रणनीतिक योजना बनाने में अधिक सक्षम बनाया जा सके।
आयोग ने कहा, ‘‘मामले के हिसाब से संचालन मंडल की अध्यक्षता राज्य के मुख्यमंत्री या विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री करते रह सकते हैं। हालांकि, इसमें और अधिक विशेषज्ञता शामिल करने के लिए इसका विस्तार किया जाना चाहिए।’’
रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि परिषदों को विभिन्न गतिविधियों के लिए समर्थन और वित्तीय संसाधन जुटाने को राज्य के उद्योग निकायों, सार्वजनिक उपक्रमों और अन्य संभावित सहायक एजेंसियों के साथ जुड़ाव स्थापित करने पर भी विचार करना चाहिए।
नीति आयोग ने कहा, ‘‘ऐसे जुड़ाव परोक्ष रूप से परिषदों की विभिन्न गतिविधियों में विश्वविद्यालय-उद्योग संपर्क को बढ़ावा देने में मदद करेंगे।’’
रिपोर्ट के अनुसार, परिषदों के पास निकायों की प्रमुख गतिविधियों को प्रभावी और जवाबदेह तरीके से चलाने के लिए एक पर्याप्त कार्यबल होने चाहिए। ऐसे सभी पदों को राज्य सरकार से पूरा समर्थन मिलना चाहिए, जिससे वित्तीय स्थिरता और प्रतिबद्धता सुनिश्चित हो सके।
इसमें कहा गया है कि जहां कुछ राज्यों ने नवोन्मेष और प्रौद्योगिकी-आधारित विकास को बढ़ावा देने के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थानों का लाभ उठाया है, वहीं अन्य को अनियमित वित्तपोषण प्रवाह और कमजोर संस्थागत क्षमताओं से संबंधित कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
कई परिषदें अनियमित कार्यबल, प्रदर्शन-आधारित प्रोत्साहनों के अभाव और निर्णय लेने में सीमित स्वायत्तता से जूझ रही हैं। इससे दीर्घकालिक योजना और कार्यान्वयन में बाधा आ रही है।
रिपोर्ट जारी किये जाने के मौके पर नीति आयोग के उपाध्यक्ष सुमन बेरी ने शासन में व्यापक स्तर पर विज्ञान और प्रौद्योगिकी को शामिल करने की जरूरत बतायी।
उन्होंने कहा कि राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद सही माध्यमों, नेतृत्व और स्वायत्तता से सशक्त होने पर नवोन्मेष के गति देने वाले के रूप में कार्य कर सकती हैं।
नीति आयोग के सदस्य वी.के. सारस्वत ने राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषदों की उभरती भूमिका का जिक्र किया।
उन्होंने बेहतर तकनीकी-प्रशासनिक नेतृत्व, मजबूत विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं नवोन्मेष (एसटीआई) आंकड़ा प्रणालियों की आवश्यकता बतायी। साथ ही अनुसंधान संस्थानों, उद्योगों तथा जमीनी स्तर के नवप्रवर्तकों को एक साझा मंच पर लाने की बात कही।
सारस्वत ने कहा, ‘‘21वीं सदी की मांगों को पूरा करने के लिए, हमारी राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषदों को न केवल प्रशासनिक इकाइयों के रूप में, बल्कि एकीकृत नवोन्मेष परिवेश के रूप में भी काम करना चाहिए।’’
भाषा रमण अजय
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