पटना, 10 जुलाई (भाषा)बिहार में निर्वाचन आयोग द्वारा मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण कराए जाने के खिलाफ दाखिल याचिका पर बृहस्पतिवार को उच्चतम न्यायालय को लेकर दिये गए फैसले को सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग)और विपक्षी ‘इंडिया’ गठबंधन अपने-अपने हिसाब से व्याख्या करते हुए अपनी-अपनी जीत बता रहे हैं।
उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को निर्वाचन आयोग से कहा कि वह बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के दौरान आधार, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड को वैध दस्तावेज माने, जहां इस साल के अंत में चुनाव होने हैं। एसआईआर को ‘‘संवैधानिक आदेश’’ बताते हुए, शीर्ष अदालत ने चुनाव आयोग को यह प्रक्रिया जारी रखने की अनुमति भी दे दी।
राज्य के विपक्षी गठबंधन में शामिल भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य एक बयान जारी कर दावा किया कि ‘‘ उच्चतम न्यायालय का आदेश मतदाताओं की बुनियादी आशंकाओं और आपत्तियों की पुष्टि करता है।’’ वह इस मामले में याचिकाकर्ता भी हैं।
उन्होंने आधार, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड को दस्तावेजों की स्वीकार्य सूची में शामिल करने के लिए निर्वाचन आयोग को दी गई न्यायालय की सलाह की सराहना करते हुए कहा कि यह ‘‘न्याय के हित में’’ है और ‘‘हर मतदाता की आम मांग’’ को दर्शाता है।
निर्वाचन आयोग ने 24 जून को जारी एक अधिसूचना जारी कर एसआईआर कराने का निर्देश दिया था। इसमें प्रत्येक मतदाता को संबंधित बूथ-स्तरीय अधिकारियों द्वारा उपलब्ध कराए गए ‘‘गणना प्रपत्रों’’ पर हस्ताक्षर करना अनिवार्य बताया गया था। हालांकि, जिन लोगों के नाम 2003 की मतदाता सूची में नहीं थे, जब इसी तरह की प्रक्रिया अपनाई गई थी, उन्हें पहचान का अतिरिक्त प्रमाण प्रस्तुत करना होगा। आधार कार्ड, राशन कार्ड और मनरेगा जॉब कार्ड को सूची से बाहर रखे जाने के कारण प्रक्रिया का विरोध किया जा रहा है।
भट्टाचार्य ने न्यायालय से ‘‘दो अन्य बुनियादी चिंताओं पर संज्ञान लेने’’ का भी आग्रह किया, जिसमें ‘‘गणना प्रपत्र जमा करने पर कोई पावती रसीद नहीं मिलना’’ और ‘‘वासी श्रमिकों के सामने मताधिकार से वंचित होने का जोखिम’’ शामिल है, जो इन प्रपत्रों को भरने के लिए अपने कार्यस्थलों से लौटने की स्थिति में नहीं हो सकते हैं।
वामपंथी नेता ने निर्वाचन आयोग पर ‘‘अभियान की सुचारू और तीव्र प्रगति का दावा करने के लिए संख्याओं का हवाला देने’’ का उपहास किया।
उन्होंने ‘‘दस्तावेजों के बिना फॉर्म के मामलों पर निर्णय लेने के लिए चुनाव पंजीकरण अधिकारियों को दी गई अत्यधिक विवेकाधीन शक्तियों’’ पर भी आपत्ति जताई और जोर देकर कहा कि इससे ‘‘अंतिम सूची में बहुत सारे पक्षपातपूर्ण, मनमाने और गलत तरीके से नाम हटाने और शामिल करने का रास्ता साफ हो जाएगा।’’
विपक्षी दलों की शिकायत है कि विधानसभा चुनावों से कुछ महीने पहले इस प्रक्रिया का उद्देश्य भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत राजग की ‘‘मदद’’ करना है, जो दो दशकों से सत्ता में है।
हालांकि, राजग के सहयोगी जनता दल यूनाइटेड (जद-यू) का मानना है कि न्यायालय का आदेश विपक्ष के लिए करारा झटका है, जिसने एक दिन पहले एसआईआर के विरोध में बंद का आह्वान किया था। जद-यू के अध्यक्ष मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं।
जद-यू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद ने कहा, ‘‘राहुल गांधी और तेजस्वी यादव जैसे नेता कल सड़कों पर उतरे थे, जो सुनवाई से एक दिन पहले उच्चतम न्यायालय पर दबाव बनाने की कोशिश जैसा लग रहा था।
उन्होंने कहा कि अदालत का यह आदेश उन दलों के लिए करारा झटका है, जो निर्वाचन आयोग के अधिकार पर सवाल उठा रहे थे, जबकि संविधान में उसकी शक्तियों को अच्छी तरह परिभाषित किया गया है।
रंजन प्रसाद ने कहा कि एसआईआर को उत्साहजनक प्रतिक्रिया मिल रही है। उन्होंने कहा कि 28 जुलाई को होने वाली अगली सुनवाई से पहले यह प्रक्रिया पूरी हो जाएगी।
भाषा धीरज माधव
माधव