नयी दिल्ली, 12 जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश सूर्यकांत ने कहा है कि भारत अब केवल स्थापित मध्यस्थता केंद्रों की बराबरी करने का प्रयास नहीं कर रहा है, बल्कि सक्रिय रूप से इस बात की ‘‘पुन: कल्पना’’ कर रहा है कि एक गतिशील और बहुध्रुवीय कानूनी व्यवस्था में मध्यस्थता कैसी हो सकती है और कैसी होनी चाहिए।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि मध्यस्थता का भविष्य न केवल अंतरराष्ट्रीय है, बल्कि भारतीय भी है। उन्होंने साथ ही प्रवर्तन संबंधी चिंताओं जैसी गंभीर चुनौतियों का भी हवाला दिया, जिनका देश को समाधान करना होगा। उन्होंने संस्थागत विकास को बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी की वकालत की।
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश 10 जुलाई को स्वीडन के गोथेनबर्ग में आयोजित ‘अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता की पुन: कल्पना: वैश्विक मध्यस्थता स्थल के रूप में भारत का उदय’ विषय पर आयोजित एक गोलमेज बैठक को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि मध्यस्थता को अब एक गौण या वैकल्पिक तंत्र के रूप में नहीं देखा जाता, बल्कि यह विवाद समाधान का एक पसंदीदा तरीका बनता जा रहा है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि लक्षित सुधारों, संस्थागत विकास और मध्यस्थता के प्रति गहरी होती सांस्कृतिक प्रतिबद्धता के माध्यम से भारत एक ऐसा मॉडल तैयार कर रहा है, जो न केवल वैश्विक मानकों के प्रति उत्तरदायी है, बल्कि इसके कानूनी और आर्थिक संदर्भ को भी दर्शाता है।
उन्होंने कहा, ‘‘मैं आपके समक्ष जो संदेश छोड़ना चाहता हूं वह स्पष्ट है: भारत अब केवल स्थापित मध्यस्थता केंद्रों की बराबरी करने का प्रयास नहीं कर रहा है – वह सक्रिय रूप से इस बात की पुनर्कल्पना कर रहा है कि एक गतिशील, बहुध्रुवीय कानूनी व्यवस्था में मध्यस्थता कैसी हो सकती है और कैसी होनी चाहिए।’’
उन्होंने कहा कि यह बदलाव केवल कानून और बुनियादी ढांचे से नहीं हो सकता, बल्कि इसके लिए भारत के मध्यस्थता पारिस्थितिकी तंत्र को पोषित करने, विश्वास पैदा करने और अंतरराष्ट्रीय संवाद को बढ़ावा देने में सरकारों, मध्यस्थता संस्थानों, चिकित्सकों और शिक्षाविदों द्वारा सामूहिक निवेश की आवश्यकता है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा, ‘‘यदि हम विचारशील सहभागिता और निरंतर नवाचार के साथ इस गति को बनाए रख सकें, तो न केवल भारत मध्यस्थता के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल के रूप में कार्य करेगा, बल्कि इससे इसके भविष्य को आकार देने में भी मदद मिलेगी।’’
उन्होंने कहा कि भारत ने महत्वपूर्ण कानूनी सुधारों, मध्यस्थता संस्थानों को मजबूत करने और तेजी से सहायक और सक्रिय न्यायपालिका के माध्यम से महत्वपूर्ण प्रगति की है, जो सामूहिक रूप से एक अधिक मजबूत और विश्वसनीय मध्यस्थता पारिस्थितिकी तंत्र में योगदान करते हैं।
चुनौतियों और आगे की राह के बारे में न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि यदि भारत को एक अग्रणी वैश्विक मध्यस्थता गंतव्य के रूप में अपनी क्षमता का सही मायने में एहसास करना है, तो उसे कई महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना होगा।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि भारत की एक प्रमुख मध्यस्थता स्थल बनने की यात्रा को दीर्घकालिक संरचनात्मक और सांस्कृतिक बदलावों पर आधारित होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि ‘मेक इन इंडिया’ और ‘इन्वेस्ट इंडिया’ जैसी पहल व्यापार में सरलता और निवेशक संरक्षण पर जोर देती हैं।
भाषा
देवेंद्र दिलीप
दिलीप