(आसिम कमाल)
नयी दिल्ली, 12 जुलाई (भाषा) राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल ने शनिवार को कहा कि न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा पर महाभियोग का प्रस्ताव लाने के सरकार के किसी भी कदम का विपक्ष को समर्थन नहीं करना चाहिए, जब तक कि न्यायमूर्ति शेखर यादव की ‘‘सांप्रदायिक’’ टिप्पणी को लेकर महाभियोग की कार्यवाही के तहत जांच सुनिश्चित नहीं हो जाती।
पूर्व कानून मंत्री ने ‘पीटीआई-भाषा’ के साथ साक्षात्कार में दलील दी कि वर्मा का मामला भ्रष्टाचार का नहीं है और इसलिए जो पार्टियां यह सोच रही हैं कि उन्हें न्यायाधीश के खिलाफ कार्रवाई का समर्थन करना चाहिए क्योंकि यह भ्रष्टाचार का मामला है, उन्हें अपने रुख पर पुनर्विचार करना चाहिए।
न्यायमूर्ति वर्मा के आवासीय परिसर में आग लगने की घटना के बाद वहां से नोटों की जली हुई गड्डियां मिलने के कारण वह विवादों में घिर गए हैं।
निर्दलीय राज्यसभा सदस्य ने दावा किया कि वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने के पीछे सरकार के दो उद्देश्य हो सकते हैं –पहला, यह कि वे उनसे नाखुश हैं क्योंकि वह ‘‘उच्च न्यायालय के सबसे स्वतंत्र न्यायाधीशों में से एक हैं’’ और दूसरा, वे सोच रहे होंगे कि यह ‘‘अदालतों पर दबाव डालने का एक अच्छा अवसर है’’ और राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) को दूसरे स्वरूप में लाने का प्रयास करना है।
सिब्बल ने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि संस्था (न्यायपालिका) के कंधे इतने मजबूत हैं कि वह सरकार के ऐसे कदमों का सामना कर सकती है।’’
यह पूछे जाने पर कि अगर ऐसी स्थिति आती है तो क्या वह महाभियोग की कार्यवाही के दौरान संसद में वर्मा का बचाव करेंगे, वरिष्ठ अधिवक्ता सिब्बल ने कहा, ‘‘…पहले न्यायाधीश को मुझसे पूछना होगा।’’
सिब्बल की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब सरकार न्यायमूर्ति वर्मा को हटाने के लिए संसद में प्रस्ताव लाने के वास्ते सांसदों के हस्ताक्षर जुटाने की कवायद कर रही है।
सूत्रों ने बताया कि महाभियोग प्रक्रिया के लिए लोकसभा के कई सदस्यों के हस्ताक्षर लिए गए हैं, जो इस बात का संकेत है कि यह प्रस्ताव संसद के निचले सदन में पेश किया जा सकता है।
संसदीय कार्य मंत्री किरेन रीजीजू ने कहा है कि (न्यायमूर्ति) वर्मा को पद से हटाने का प्रस्ताव 21 जुलाई से शुरू हो रहे संसद के मानसून सत्र में लाया जाएगा।
हस्ताक्षर जुटाने की प्रक्रिया में आगे बढ़ने के लिए सरकार की आलोचना करते हुए सिब्बल ने कहा, ‘‘सबसे पहले, सरकार का इससे क्या लेना-देना है? संविधान के तहत, लोकसभा के 100 सदस्य या राज्यसभा के 50 सदस्य महाभियोग का प्रस्ताव पेश कर सकते हैं।’’
उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा हस्ताक्षर जुटाने का मतलब है कि वह एक संस्था के रूप में प्रस्ताव लाने और महाभियोग चलाने में रुचि रखती है, जबकि संवैधानिक प्रक्रिया सरकार का विरोध करती है।
सिब्बल ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘मुझे थोड़ा आश्चर्य हुआ, लेकिन जब सरकारें महाभियोग प्रस्ताव लाती हैं तो यही होता है। जाहिर है, वे न्यायाधीश को उन कारणों से नहीं चाहते जो उन्हें सबसे अच्छी तरह से पता है।’’
यह पूछे जाने पर कि विपक्षी दलों के लिए उनका क्या संदेश होगा, सिब्बल ने कहा कि यह पार्टियों का मुद्दा नहीं है और यहां तक कि सरकार भी हस्ताक्षर जुटा कर गलत तरीके से आगे बढ़ रही है।
सिब्बल ने कहा कि विपक्ष को एकजुट होकर वही कहना चाहिए जो वह कहते रहे हैं — ‘‘किसी सांसद द्वारा प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने से पहले, जांच होनी चाहिए।’’
उन्होंने यह भी कहा कि विपक्ष को सबसे पहले न्यायमूर्ति शेखर यादव के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही के तहत जांच सुनिश्चित करने की मांग करनी चाहिए, क्योंकि विपक्षी सांसदों ने पिछले साल विश्व हिंदू परिषद( विहिप) के एक कार्यक्रम में कथित तौर पर ‘‘सांप्रदायिक टिप्पणी’’ करने को लेकर उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने के वास्ते दिसंबर 2024 में राज्यसभा में एक नोटिस दिया था।
सिब्बल ने कहा, ‘‘अन्यथा, ऐसा लगता है कि यह (न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ कार्रवाई) सरकार द्वारा चुनिंदा तरीके से की जा रही है तथा भाजपा इस न्यायाधीश के पीछे पड़ी है और दूसरे न्यायाधीश को बचा रही है। विपक्षी दलों का यही सही रुख होना चाहिए।’’
सिब्बल ने कहा, ‘‘मेरा मानना है कि विपक्ष के नेताओं को यह रुख अपनाना चाहिए कि जब तक जांच (न्यायमूर्ति शेखर यादव के खिलाफ) पूरी नहीं हो जाती या आप (कम से कम) न्यायमूर्ति यादव के खिलाफ जांच सुनिश्चित नहीं कर देते, इस प्रस्ताव का समर्थन करने का कोई सवाल ही नहीं उठता।’’
न्यायमूर्ति वर्मा से जुड़े मामले पर उन्होंने कहा कि यह बहुत ही विचित्र मामला है, लेकिन यह ‘‘भ्रष्टाचार का मामला नहीं है।’’
भाषा सुभाष माधव
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