कोलकाता, 12 जुलाई (भाषा) राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने निर्देश दिया है कि पश्चिम बंगाल में गंगा कार्य योजना के क्रियान्वयन में कमियों को राज्य, एनएमसीजी और सीपीसीबी हलफनामे के माध्यम से स्पष्ट करें।
एनजीटी ने पश्चिम बंगाल में गंगा प्रदूषण नियंत्रण उपायों की स्थिति की समीक्षा करते हुए कहा कि राज्य में नदी में प्रदूषणकारी पदार्थों के प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए आंशिक कार्रवाई की गई है, लेकिन कई नालों से गैर शोधित सीवेज का इसमें प्रवाह जारी है।
एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव की अगुवाई वाली पीठ ने कई जल-मल शोधन संयंत्र के काम नहीं करने या मानकों को पूरा नहीं करने के मद्देनजर कहा कि आंकड़ों, परियोजना क्रियान्वयन और जल की गुणवत्ता में खामियां हैं।
एनजीटी ने निर्देश दिया कि राज्य और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की रिपोर्टों में किए गए खुलासे में पाई गई कमियों और अंतरालों के संबंध में पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव, राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के महानिदेशक और सीपीसीबी आठ अक्टूबर को राज्य की अगली सुनवाई से पहले हलफनामे के माध्यम से ‘जवाब’ दें।
एनजीटी ने कहा कि पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में कहा गया है कि महत्वपूर्ण प्रवाह वाले नाले भारी मात्रा में प्रदूषण फैला रहे हैं और इन नालों के लिए डीपीआर (विस्तृत परियोजना रिपोर्ट) अब भी तैयार किये जाने के चरण में है जिसकी समय-सीमा अनिश्चित है।
सीपीसीबी की रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य में गंगा तट पर स्थित 30 कस्बों में मौजूद 42 जल-मल शोधन संयंत्र (एसटीपी) में से केवल 31 ही चालू हैं और केवल सात ही मानकों का पालन कर रहे हैं, इसलिए गैर शोधित या आंशिक रूप से शोधित सीवेज प्रवाहित किया जा रहा है।
एनजीटी ने कहा कि सीपीसीबी ने अपनी रिपोर्ट में 42 एसटीपी की कुल स्थापित शोधन क्षमता और उपयोग क्षमता की सीमा का खुलासा नहीं किया है।
भाषा संतोष वैभव
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