(चित्राली घटक)
कोलकाता, 12 जुलाई (भाषा) पश्चिम बंगाल के पश्चिमी मेदिनीपुर जिले का एक सुदूरवर्ती गांव ‘नाया’ किसी जीवंत कला दीर्घा से कम नहीं है, जहां दीवारें, कपड़े और दैनिक उपयोग की विविध वस्तुएं ‘पट्टचित्र’ की पारंपरिक कला का प्रदर्शन करती हैं, जिसे इसके ‘चित्रकार’ निवासियों द्वारा बनाया गया है।
वर्ष 2018 में भौगोलिक पहचान (जीआई) टैग प्राप्त और फलों, फूलों और खनिजों से प्राप्त गहरे प्राकृतिक रंगों का उपयोग करने को लेकर विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त, पट्टचित्र 136 परिवारों वाले छोटे से गांव नाया में वित्त पोषण, प्रौद्योगिकी और समर्थन की चुनौतियों का सामना करने के बावजूद फल-फूल रहा है।
पट्टचित्र अपनी मौखिक-दृश्य वर्णन शैली में अद्वितीय है, जिसे ‘पटुआ’ कहे जाने वाले कलाकार बनाते हैं। ये चित्र कभी पत्तों पर बनाये जाते थे और अब कपड़ों, वस्त्रों, मग, दीवार पर लटकाने वाले ‘पेंडेंट’ और दैनिक उपयोग की वस्तुओं पर भी चित्रित किये जाते हैं, जिससे यह कला प्रासंगिक और जीवंत बनी रहती है।
सोनिया चित्रकार ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘मैं कार्यशालाओं के लिए जर्मनी गई थी।’’ इस कला को संरक्षित करने के लिए उन्होंने और उनके परिवार ने जो प्रयास किए हैं, उसे लेकर उन्हें गर्व है।
सोनिया के माता-पिता और पति ही अकेले चित्रकार नहीं हैं, बल्कि उनकी 10 वर्षीय बेटी प्रियंका चित्रकार भी इसमें बराबर की हिस्सेदार हैं।
रूस की यात्रा कर चुके पटुआ कलाकार बहादुर चित्रकार के लिए, पट्टचित्र संचार का एक माध्यम है, जिसे वह और उनके साथी ग्रामीण बनाए रखने और पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रहे हैं।
इस कलाकार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिल्ली में 2022 के गणतंत्र दिवस परेड के दौरान अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए आमंत्रित किया था। इससे पहले, उक्त कलाकार ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जन्म से लेकर देश की स्वतंत्रता तक के सफर को दर्शाने के लिए 120 फुट का एक पट्टचित्र बनाया था।
पट्टचित्र का उपयोग विभिन्न उद्देश्यों के लिए तेजी से बढ़ रहा है, जिनमें दुर्गा पूजा पंडालों, चुनाव प्रचार, राज्य सरकार की योजनाओं के प्रचार और सामाजिक जागरूकता अभियान शामिल हैं।
पहले, पट्टचित्र से संबंधित गीत – एक पटुआ गान – हिंदू पौराणिक कथाओं और लोककथाओं के बारे में होता था। अब, कोरोना वायरस, डेंगू और ग्लोबल वार्मिंग के बारे में जागरूकता पैदा करने वाले विमर्श इस परंपरा का हिस्सा बन गए हैं।
प्रधानमंत्री मोदी द्वारा हाल ही में क्रोएशिया के राष्ट्रपति जोरान मिलनोविच को हस्तनिर्मित पट्टचित्र पेंटिंग उपहार स्वरूप देने से यह कला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में आ गई है।
भारत में अपनी वैश्विक पहुंच और लोकप्रियता के बावजूद, कलाकार नयी तकनीक और आर्थिक मदद से जुड़ी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
सोनिया और उनकी मां जोबा चित्रकार ने इंटरनेट के इस्तेमाल के बुनियादी प्रशिक्षण की कमी पर चिंता जताई।
सोनिया ने कहा, ‘‘हमें इंटरनेट का इस्तेमाल ठीक से करना नहीं आता, जिसकी वजह से कई लोग हमारी कृतियां कम दामों पर खरीदते हैं और बाद में उन्हें ई-कॉमर्स मंच पर ऊंची कीमतों पर बेचकर भारी मुनाफा कमाते हैं।’’
कलाकारों ने यह भी कहा कि अपने उत्पादों को बेचने के लिए बिचौलियों पर निर्भर रहने से एक सफल व्यवसाय चलाने की संभावना भी प्रभावित होती है।
सोनिया ने कहा, ‘‘गैर-सरकारी संगठन और स्वयं सहायता समूह हमें यात्रा करने, ठहरने, प्रदर्शन करने और व्यापार मेलों या उत्सवों में अपने उत्पाद बेचने का अवसर प्रदान करते हैं। लेकिन दिल्ली जैसे शहरों में दुकानें खोलना बहुत महंगा है। इसलिए ग्राहकों को सीधे अपनी कलाकृतियां बेचना अब भी एक चुनौती है।’’
भाषा सुभाष संतोष
संतोष