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Sunday, July 13, 2025

उत्तर प्रदेश में सरकारी स्कूलों के ‘विलय’ के फैसले से बेहतर की ‘उम्मीद’ और ‘चुनौतियों का पहाड़’ भी

Newsउत्तर प्रदेश में सरकारी स्कूलों के 'विलय' के फैसले से बेहतर की 'उम्मीद' और 'चुनौतियों का पहाड़' भी

(चंदन कुमार)

लखनऊ, 13 जुलाई (भाषा) उत्तर प्रदेश में सरकारी स्कूलों के विलय के फैसले से बेहतर की ‘‘उम्मीद’’ के साथ ही कई तरह की ‘‘चुनौतियों का पहाड़’’ भी है।

प्रदेश राजधानी लखनऊ के बाहरी इलाके काकोरी ब्लॉक के एक सरकारी प्राथमिक विद्यालय में कक्षा दो में पढ़ने वाले आठ वर्षीय छात्र अमित को अब तक स्कूल जाने के लिए सिर्फ 200 मीटर की दूरी तय करनी पड़ती थी लेकिन सरकार द्वारा स्कूलों के विलय करने के फैसले से अब उसकी दिनचर्या में ‘‘चुनौतियों का पहाड़’’ खड़ा होने का अंदेशा दिखने लगा है।

वहीं, सरकारी तंत्र को शिक्षा में बदलाव और बेहतरी की उम्मीद दिख रही है।

एक अधिकारी के अनुसार, यह बदलाव उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कम नामांकन वाले स्कूलों को दूसरे स्कूलों में विलय करने की एक व्यापक पहल का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य संसाधनों का बेहतर उपयोग करना, बुनियादी ढांचे में सुधार करना और राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के लक्ष्यों के साथ तालमेल बिठाना है।

स्कूलों के विलय की इस प्रक्रिया का उद्देश्य 50 से कम छात्रों वाले स्कूलों को आस-पास के संस्थानों में विलय करके एक अधिक सुदृढ़ शिक्षण वातावरण तैयार करना है।

दूसरी कक्षा में पढ़ने वाले अमित के स्‍कूल का कई अन्‍य विद्यालयों की तरह विलय होना तय है, इसलिए अब उसे दो किलोमीटर की दूरी तय करनी होगी क्योंकि उसके स्कूल का विलय पड़ोसी गांव के दूसरे स्‍कूल के साथ किया जाएगा।

छोटे बालक अमित के लिए उसके नये स्‍कूल की दो किलोमीटर की यात्रा एक नयी चुनौती होगी।

हल्‍की मुस्कान के साथ अमित ने कहा, ‘‘अब मुझे स्कूल जाने के लिए अपने पिता पर निर्भर रहना होगा ताकि वह मुझे साइकिल पर स्कूल ले जाएं। अब दिक्‍कत यह होगी कि यह जरूरी नहीं है कि स्कूल जाने और आने के समय पिता उपलब्ध हों जबकि अब तक मैं बस्ता उठाकर खुद ही पास के स्‍कूल चला जाता था।’’

अधिकारियों के मुताबिक, उच्‍च न्‍यायालय द्वारा कम नामांकन वाले स्कूलों के दूसरे स्कूलों में विलय करने के सरकारी फैसले को बहाल रखने से राज्य भर के 1.3 लाख सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में से 10,000 के लिए यह प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक फैसले में 16 जून और 24 जून, 2025 के सरकारी आदेशों को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं को खारिज कर दिया।

याचिकाकर्ताओं ने दावा किया था कि स्कूलों के विलय की प्रक्रिया के कारण बच्चों को एक किलोमीटर से ज्यादा पैदल चलकर स्कूल जाना पड़ेगा, जो कथित तौर पर संविधान के अनुच्छेद 21 ए और बच्चों के मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा के अधिकार अधिनियम (आरटीई), 2009 का उल्लंघन है।

बेसिक शिक्षा के अपर मुख्य सचिव (एसीएस) दीपक कुमार ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘इसका मुख्य उद्देश्य शिक्षण कर्मचारियों, बुनियादी ढांचे और अन्य शैक्षिक संसाधनों को एकीकृत करना है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘इसमें स्कूल भवनों, स्मार्ट क्लास तकनीक और सामग्री का बेहतर उपयोग शामिल है। इसका उद्देश्य हमारे बच्चों के लिए एक समृद्ध और अधिक प्रभावी शैक्षणिक वातावरण तैयार करना है।’’

हिमाचल प्रदेश और गुजरात जैसे राज्य पहले ही इसी तरह के सुधार कर चुके हैं। उत्तर प्रदेश के अधिकारियों का कहना है कि वे इस सफल मॉडल का अनुसरण कर रहे हैं।

एसीएस कुमार इस पहल को ‘‘एक परिवर्तनकारी संरचनात्मक सुधार’’ बताते हैं जिसका उद्देश्य बिखरे हुए ग्रामीण शिक्षा नेटवर्क को पुनर्जीवित करना है।

उन्होंने कहा, ‘‘छोटे स्कूल अक्सर छात्रों और शिक्षकों, दोनों के लिए एकाकीपन का कारण बनते हैं। विलय के माध्यम से, हमारा लक्ष्य बेहतर प्रशासन और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित करना है।’’

यह कदम सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में नामांकन संख्या में गिरावट के बीच उठाया गया है। कोविड-19 महामारी के बाद से उत्तर प्रदेश के सरकारी प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों (कक्षा एक से आठ तक) में छात्रों के नामांकन में गिरावट आई है।

वर्ष 2022-23 में, बेसिक शिक्षा परिषद के अंतर्गत आने वाले विद्यालयों में नामांकन 1.92 करोड़ के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया। हालांकि 2023-24 में यह आंकड़ा घटकर 1.68 करोड़ रह गया था। 2024-25 में नामांकन और घटकर 1.48 करोड़ रह गया। चालू 2025-26 सत्र में, नामांकन का आंकड़ा लगभग एक करोड़ के आसपास आ गया है।

शिक्षा विभाग के अधिकारियों के अनुसार, जिन स्कूलों में छात्रों का नामांकन और उपस्थिति कम है, वहां सत्र के बीच में या सत्र समाप्त होने के बाद छात्रों के स्कूल छोड़ने की संभावना ज्यादा हो सकती है।

अधिकारियों का दावा है कि स्कूलों के विलय की प्रक्रिया से कक्षा में छात्रों की संख्या बढ़ेगी और संसाधनों में वृद्धि से न केवल स्कूल छोड़ने वालों की संख्या कम होगी, बल्कि स्कूल में नामांकन बढ़ाने में भी मदद मिलेगी।

ग्रामीण क्षेत्र सीतापुर में दो बच्चों की मां और दिहाड़ी मजदूर रितु देवी ने कहा, ‘‘मेरे बच्चों का स्कूल पांच मिनट की पैदल दूरी पर हुआ करता था। इस विलय के बाद, अब उन्हें खेतों और दो व्यस्त सड़कों को पार करना पड़ सकता है। उनकी सुरक्षा कौन सुनिश्चित करेगा? उन्हें रोजाना स्कूल कौन छोड़ेगा और वापस कौन लाएगा?’’

किसान सुरेश सिंह जैसे अन्य लोग भविष्य को लेकर चिंतित हैं और उनका कहना है कि ‘‘विलय किए गए स्कूलों में भीड़भाड़ बढ़ेगी। शिक्षकों पर पहले से ही बहुत ज्यादा दबाव है। मुझे नहीं लगता कि हमारे बच्चों को गांव के नजदीकी स्कूल जैसा ध्यान मिलेगा।’’

दूसरी ओर, कुछ ग्रामीण इस कदम को लेकर आशा व्यक्त करते हैं। दो बच्चों के पिता देवताराम वर्मा ने कहा, ‘‘स्कूलों के विलय से हमारे बच्चों को ज्यादा शिक्षक और सुविधाएं मिलेंगी। इससे निश्चित रूप से शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा।’’

इस बीच, शिक्षक भी चिंतित हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में नामांकन अक्सर शिक्षकों की व्यक्तिगत पहुंच पर निर्भर करता है।

रायबरेली के एक सरकारी स्कूल की एक शिक्षिका ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, ‘‘गांवों में हम घर-घर जाकर परिवारों से कहते हैं कि वे अपने बच्चों को खेतों में भेजने के बजाय उन्हें स्‍कूल भेजें, लेकिन जैसे-जैसे स्कूल दूर होते जाते हैं, वह जुड़ाव खत्म होता जाता है। मुझे डर है कि कई बच्चे पढ़ाई छोड़ देंगे।’’

सीतापुर के एक शिक्षक ने भी यही चिंता जताई। उन्होंने कहा कि गांव वाले पूछ रहे हैं कि उनके बच्चे तीन किलोमीटर या उससे ज्यादा की यात्रा कैसे करेंगे। उनके पास कोई साधन नहीं है।

उन्होंने कहा कि कई लोग कह रहे हैं कि वे अपने बच्चों को स्कूल से निकाल लेंगे या उन्हें निजी स्कूलों में भेजेंगे।

उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षक संघ के पदाधिकारी दिनेश चंद्र शर्मा ने इस कदम की आलोचना की। उन्‍होंने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा कि एक तरफ सरकार नए निजी स्कूलों को अनुमति दे रही है, दूसरी तरफ वह ग्रामीण और वंचित आबादी के लिए काम करने वाले छोटे सरकारी स्कूलों को बंद कर रही है।

शर्मा ने आरोप लगाया, ‘‘इससे छात्रों और शिक्षकों, दोनों का भविष्य बर्बाद होगा।’’

उप्र प्राथमिक शिक्षक संघ को को डर है कि इस नीति के कारण बड़े पैमाने पर शिक्षकों के तबादले होंगे या नौकरियों में कटौती भी हो सकती है।

शर्मा ने कहा, ‘‘हमें संदेह है कि सरकार दक्षता के नाम पर कर्मचारियों की संख्या कम करेगी और नई भर्तियां पूरी तरह से बंद कर देगी।’’

इस पहल की समाजवादी पार्टी (सपा), बहुजन समाज पार्टी (बसपा), कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) सहित प्रमुख विपक्षी दलों ने भी तीखी आलोचना की है।

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस नीति को भावी पीढ़ियों, खासकर पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक समुदायों (पीडीए) को शिक्षा के उनके अधिकार से वंचित करने की एक ‘‘गहरी साजिश’’ करार दिया है।

बसपा प्रमुख मायावती ने इस कदम को ‘‘अन्यायपूर्ण, अनावश्यक और गरीब विरोधी’’ करार दिया है और कहा है कि यह लाखों लोगों के लिए सरकारी शिक्षा की पहुंच को कमजोर करता है।

कांग्रेस की उत्तर प्रदेश इकाई के प्रमुख अजय राय ने राज्यपाल को पत्र लिखकर इस प्रक्रिया को तुरंत रोकने की मांग की है और कहा है कि यह विलय स्कूलों को बंद करने का एक छिपा हुआ प्रयास है, जिससे ग्रामीण और आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को नुकसान हो रहा है।

आम आदमी पार्टी (आप) के राज्यसभा सदस्य और उप्र प्रभारी संजय सिंह ने ‘‘स्कूल बचाओ’’ अभियान शुरू किया है और सरकार पर शराब की दुकानें खोलने के साथ-साथ कई स्कूलों (कथित तौर पर लगभग 27,000) को बंद करने की योजना बनाने का आरोप लगाया है।

भाषा चंदन आनन्द खारी शफीक

शफीक

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