(सुमीर कौल)
मुंबई, 13 जुलाई (भाषा) साल 2006 में मुंबई में हुए ट्रेन धमाकों में जीवित बचे चिराग चौहान का शहर की जीवनरेखा कही जाने वाली लोकल ट्रेन में सफर करने का मोह आज तक नहीं छूट पाया है।
ग्यारह जुलाई 2006 को, चार्टर्ड अकाउंटेंसी (सीए) के 21 वर्षीय छात्र रहे चौहान अपने घर जा रहे थे, तभी उनकी ट्रेन में एक बम विस्फोट हुआ, जिसने उनके जीवन को हमेशा के लिए बदल दिया। विस्फोट के कारण उनकी रीढ़ की हड्डी में चोट लग गई, जिसकी वजह से उन्हें ‘व्हीलचेयर’ पर रहना पड़ा।
एक ओर उनके कई मित्रों और परिवार के सदस्यों ने इसे एक बड़ी त्रासदी के रूप में देखा, तो वहीं दूसरी ओर अब एक सफल ‘चार्टर्ड अकाउंटेंट’ बन चुके और एक कंपनी चला रहे चौहान ने इसे एक अलग और कई मायनों में अधिक संतुष्टिदायक यात्रा की शुरुआत के रूप में देखा।
उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘मैं सोचता था कि काश उस दिन मेरी ट्रेन छूट जाती, लेकिन फिर मुझे एहसास हुआ कि जो नियति में लिखा है, वही होता है।’
उस दिन वह किसी काम से घर से जल्दी निकल गए थे जबकि आमतौर पर ऐसा नहीं करते थे। यह एक असामान्य निर्णय था जिसकी वजह से वह एक ऐसी ट्रेन में चढ़ गए, जिसमें बम उनसे सिर्फ दो-तीन फुट की दूरी पर था।
बम खार और सांताक्रूज़ स्टेशनों के बीच फटा। उस दिन ट्रेन में सवार कई लोग तो बच नहीं पाए, लेकिन चौहान किसी तरह बच गए।11 जुलाई 2006 को शहर की लोकल ट्रेनों की पश्चिमी लाइन पर विभिन्न स्थानों पर 15 मिनट में सात विस्फोट हुए, जिनमें 180 से अधिक लोग मारे गए और कई अन्य घायल हो गए।
मुंबई की लोकल ट्रेनों की आवाज चौहान के लिए एक ऐसा गीत है, जो उन्होंने लगभग दो दशकों से नहीं सुना।
जब उन्होंने बताया कि उन्हें लोकल ट्रेनों में सफर करना कितना याद आता है, तो उनकी आंखों में चमक साफ देखी जा सकती थी।
ब्रेक लगने की तेज आवाज, दरवाजों का जोर से बंद होना, और हजारों लोगों को जान बचाने की जुगत में एक साथ इधर-उधर भागना – ये वे यादें हैं जो आज भी उनके जेहन में ताजा हैं।
चौहान कहते हैं, ‘काश! मैं लोकल ट्रेन में यात्रा कर पाता।”
वह कहते हैं कि उनके लिए दोबारा ट्रेन में सफर करना किसी डर पर विजय पाने के बजाय पुरानी यादें ताजा करना होगा।
वह वंदे भारत एक्सप्रेस में सफर करना चाहते हैं, जिसके बारे में उन्होंने सुना है कि वह ज्यादा आरामदायक है।
उन्होंने कहा, ‘मैंने सुना है कि वह ज्यादा आरामदायक है। मैं सोच रहा हूं कि अगर मुझे मौका मिला, तो मैं जरूर वंदे भारत में यात्रा करूंगा।”
साल 2009 में, सीए की परीक्षा पास करने के बाद, गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन्हें सम्मानित करने के लिए मुंबई में एक रैली में आमंत्रित किया था।
उन्होंने कहा, ‘ये मेरे लिए सम्मान की बात थी। इसके बाद मैंने अपने निजी जीवन पर ध्यान केंद्रित किया, अपनी ही दुनिया में रम गया।’
एक बहुराष्ट्रीय कंपनी और एक बैंक में काम कर चुके चौहान का ध्यान अपनी नयी यात्रा यानी एक व्यवसाय स्थापित करने, एक स्टार्टअप शुरू करने और अन्य उद्यमों का प्रबंधन करने पर रहा है।
भाषा जोहेब नरेश
नरेश