(पायल बनर्जी)
नयी दिल्ली, 13 जुलाई (भाषा) भारतीयों द्वारा अत्यधिक नमक का सेवन भारत में एक मूक महामारी का रूप ले रहा है, जिससे लोगों में उच्च रक्तचाप, स्ट्रोक, हृदय रोग और गुर्दे की बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद ( आईसीएमआर) के राष्ट्रीय महामारी विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों ने यह जानकारी दी है।
वैज्ञानिकों ने इस समस्या के समाधान के लिए समुदाय-आधारित नमक कटौती अध्ययन शुरू किया है तथा कम सोडियम वाले नमक के विकल्पों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने प्रति व्यक्ति प्रति दिन पांच ग्राम से कम नमक का सेवन की सिफारिश की है, जबकि अध्ययनों में खुलासा हुआ है कि शहरों में रहने वाले भारतीय लगभग 9.2 ग्राम/दिन का उपभोग करते हैं,जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में भी यह लगभग 5.6 ग्राम/दिन है। इस प्रकार पूरे देश में नमक का सेवन अनुशंसित मात्रा से अधिक है।
राष्ट्रीय महामारी विज्ञान संस्थान (एनआईई) के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अध्ययन के प्रमुख अन्वेषक डॉ. शरण मुरली ने कहा कि इस स्थिति को बदलने की एक उम्मीद कम सोडियम वाले नमक हैं। यह नमक का वह स्वरूप होता है, जिसमें सोडियम क्लोराइड के एक भाग को पोटेशियम या मैग्नीशियम लवण से प्रतिस्थापित किया जाता है।
डॉ. मुरली ने कहा,‘‘सोडियम का कम सेवन रक्तचाप को कम करने में मदद करता है और समग्र हृदय स्वास्थ्य में सुधार करता है। इस प्रकार कम सोडियम वाले विकल्प एक सार्थक विकल्प बन जाते हैं, विशेष रूप से उच्च रक्तचाप के मरीजों के लिए।’’
उन्होंने कहा, ‘‘केवल कम सोडियम वाले नमक पर स्विच करने से रक्तचाप औसतन 7/4 मिलीमीटर ऑफ मरक्यूरी तक कम हो सकता है। यह एक छोटा सा बदलाव है, जिसका प्रभाव बड़ा होता है।’’
उच्च नमक उपभोग की समस्या से निपटने के लिए, एनआईई ने पंजाब और तेलंगाना में तीन वर्षीय हस्तक्षेप परियोजना शुरू की है। इसे भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) का समर्थन प्राप्त है।
अध्ययन में शामिल एनआईई के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. गणेश कुमार ने बताया कि इसका लक्ष्य स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्रों (एचडब्ल्यूसी) में स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं द्वारा दिए जाने वाले नमक कटौती परामर्श की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करना है, जो उच्च रक्तचाप से ग्रस्त व्यक्तियों में रक्तचाप और सोडियम सेवन को कम करने में सहायक है।
डॉ. कुमार ने कहा, ‘‘हम वर्तमान में परियोजना के प्रथम वर्ष में हैं, जिसमें आधारभूत आकलन और क्षेत्रीय तैयारियों पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।’’
डॉ. मुरली ने कहा, ‘‘परामर्श सामग्री को अभी अंतिम रूप नहीं दिया गया है। हमारा लक्ष्य सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर हस्तक्षेप पैकेज तैयार करना है, उनके अनुभवों का उपयोग करना है और उनके सुझावों को शामिल करना है। यह सिर्फ स्वास्थ्य शिक्षा देने के बारे में नहीं है – यह सुनने, समझने और साथ मिलकर निर्माण करने के बारे में है।’’
यह सुनिश्चित करने के लिए कि हस्तक्षेप वास्तविकता पर आधारित हैं, एनआईई ने कम सोडियम वाले नमक (एलएसएस) की उपलब्धता और मूल्य निर्धारण का आकलन करने के लिए चेन्नई में 300 खुदरा दुकानों पर एक बाजार सर्वेक्षण किया।
उन्होंने पाया कि एलएसएस केवल 28 प्रतिशत खुदरा दुकानों में उपलब्ध था। यह 52 प्रतिशत सुपरमार्केट में देखा गया, लेकिन केवल चार प्रतिशत छोटी किराना दुकानों में इसकी उपलब्धता थी।
एलएसएस की कीमत औसतन 5.6 रुपये प्रति 100 ग्राम थी, जो सामान्य आयोडीन युक्त नमक (2.7 रुपये प्रति 100 ग्राम) की कीमत से दोगुनी से भी अधिक थी।
डॉ. मुरली ने कहा कि ये निष्कर्ष आपूर्ति-मांग के बीच गंभीर अंतर को उजागर करते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘कम सोडियम वाले नमक की कम मांग के कारण इसकी उपलब्धता कम हो सकती है – यह जागरूकता और पहुंच का एक अप्रत्यक्ष सूचक है।’’
नमक का उपभोग कम करने के बारे में सार्वजनिक चर्चा को बढ़ावा देने के लिए, एनआईई ने हाल ही में आईसीएमआर-एनआईई के माध्यम से ट्विटर और लिंक्डइन पर ‘बदलाव के लिए एक चुटकी’ अभियान भी शुरू किया है।
अभियान में इन्फोग्राफिक्स, तथ्यों और सरल संदेशों का उपयोग किया गया है और इसका उद्देश्य छिपे हुए नमक स्रोतों के बारे में जागरूकता बढ़ाना, कम सोडियम वाले विकल्पों को बढ़ावा देना और व्यक्तियों को हृदय-स्वस्थ विकल्प चुनने के लिए सशक्त बनाना है।
भाषा धीरज दिलीप
दिलीप