(सुमीर कौल)
नयी दिल्ली/इंफाल, 13 जुलाई (भाषा) मणिपुर के मेइती और कुकी समुदायों के जातीय उग्रवादी समूह अपने हथियारों को परिवर्तित कर रहे हैं और उनकी मारक क्षमता बढ़ाने के लिए उन्हें जुगाड़ की स्नाइपर राइफल में बदल रहे हैं। इनमें से कई हथियार 2023 में पुलिस शस्त्रागारों से लूटे गए थे। अधिकारियों ने रविवार को यह जानकारी दी।
उन्होंने बताया कि इन हथियारों को विरोधी समुदायों को निशाना बनाने के लिए स्नाइपर राइफल में बदल दिया गया। पुलिस शस्त्रागारों से लूटे गए 6,000 से ज़्यादा हथियारों में .303 राइफल, एके असॉल्ट राइफल और इंसास राइफल और कार्बाइन शामिल थीं।
अधिकारियों ने बताया कि मानक .303 राइफल की मारक क्षमता लगभग 500 मीटर है। उन्होंने बताया कि बंदूक के बट में बदलाव करने और अन्य विशिष्टताओं के साथ विशेष दूरबीन लगाने के बाद, उसी राइफल से चलाई गई गोली अधिक सटीकता और मारक क्षमता के साथ अधिक दूरी तक जा सकती है।
एके-47 केवल 300-400 मीटर के दायरे में ही सबसे प्रभावी है।
इन बदलावों से पता चलता है कि ये समूह लंबी दूरी से घात लगाकर हमले में शामिल होना चाहते थे, लेकिन इससे पहले कि वे सुरक्षा बलों के लिए कोई नयी चुनौती पेश कर पाते, पुलिस ने असम राइफल्स और अन्य अर्द्धसैन्य बलों के साथ मिलकर इंफाल घाटी और पर्वतीय क्षेत्र के विभिन्न जिलों से इन हथियारों को जब्त कर लिया।
जून में, मणिपुर पुलिस और अन्य सुरक्षा बलों ने 13 और 14 जून की मध्य रात्रि को इंफाल घाटी के पांच जिलों में एक साथ अभियान के दौरान मेइती बहुल उग्रवादी समूहों से 328 हथियार बरामद किए थे, तथा जुलाई के प्रथम सप्ताह में पर्वतीय क्षेत्रों के चार जिलों से 203 हथियार बरामद किए थे, जहां कुकी उग्रवादी समूहों का दबदबा है।
इन दोनों छापों से बरामद हथियारों में इंसास राइफल, एके सीरीज राइफल, सेल्फ लोडिंग राइफल, परिवर्तित स्नाइपर राइफल, ग्रेनेड लांचर, पिस्तौल और देशी 0.22 राइफल शामिल हैं।
वर्ष 2023 में दोनों समुदायों के बीच झड़पें शुरू होने के तुरंत बाद, सुरक्षा एजेंसियों ने उखड़े हुए बिजली के खंभों या गैल्वेनाइज्ड आयरन पाइप के हिस्सों से बनी बंदूकें जब्त कर ली थीं। हिंसा की शुरुआत के बाद से अब तक 260 लोगों की जान जा चुकी है।
जून 2023 में झड़पों के हिंसक रूप लेने के बाद, पर्वतीय जिले के लोग, जो पारंपरिक रूप से शिकारी हैं और घातक हथियार बनाने में सक्षम हैं, ने कुछ बिजली के खंभे और पानी के पाइप उखाड़ दिए।
यह समुदाय पारंपरिक रूप से तलवार, भाले, धनुष और तीर का इस्तेमाल करता था। बाद में, उन्होंने ‘मजल गन’ और गोलियां, जिन्हें ‘थिहनांग’ भी कहा जाता है, का इस्तेमाल शुरू कर दिया।
उखाड़े गए बिजली के खंभों का इस्तेमाल स्वदेशी तोप बनाने के लिए किया गया, जिसे ‘पम्पी’ या ‘बम्पी’ भी कहा जाता है, जिसमें लोहे के टुकड़े और अन्य धातु के टुकड़े भरे जाते हैं। ये गोली या छर्रे के रूप में काम करती हैं।
अधिकारियों ने बताया कि ये गांव के लोहार बनाते हैं, जिन्हें ‘थिह-खेंग पा’ भी कहा जाता है, जो अक्सर अपने समुदाय की रक्षा के लिए निशुल्क सेवा प्रदान करते हैं।
पर्वतीय समुदाय को गुरिल्ला युद्ध तकनीकों के लिए भी जाना जाता है और अक्सर अपनी रक्षा के लिए वे पास आ रहे लोगों पर अचानक हमला करते हैं या खड़ी ढलानों पर बड़े-बड़े पत्थरों को लुढ़काकर उन पर घात लगाकर हमला करते हैं।
भाषा आशीष नरेश
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