नयी दिल्ली, 14 जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने केरल विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को स्वीकृति देने में देरी को लेकर राज्यपाल के खिलाफ दायर राज्य सरकार की याचिकाओं पर सुनवाई 25 जुलाई तक के लिए स्थगित कर दी है।
न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति ए एस चांदुरकर की पीठ ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि द्वारा समय मांगे जाने पर मामले की सुनवाई को सोमवार को स्थगित कर दिया।
केरल सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता के के वेणुगोपाल ने यह कहते हुए याचिका वापस लेने का अनुरोध किया कि तमिलनाडु के राज्यपाल मामले में हाल ही में पारित फैसले के मद्देनजर यह मुद्दा निरर्थक हो गया है।
वेंकटरमणि और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस दलील का विरोध किया और न्यायालय से आग्रह किया कि विधेयकों को मंज़ूरी देने के लिए संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत राष्ट्रपति के संदर्भ पर शीर्ष अदालत के फ़ैसले का इंतज़ार किया जाए।
मेहता ने कहा कि केरल सरकार की याचिका को भी राष्ट्रपति के संदर्भ के साथ जोड़ा जा सकता है।
इस पर हैरानी जताते हुए वेणुगोपाल ने पूछा कि उनकी याचिका का विरोध कैसे किया जा सकता है।
न्यायालय ने इस मामले की सुनवाई 25 जुलाई तक के लिए स्थगित कर दी।
उच्चतम न्यायालय ने 22 अप्रैल को कहा था कि वह इस बात पर गौर करेगा कि विधेयकों को स्वीकृति देने के लिए समयसीमा तय करने के संबंध में तमिलनाडु की एक याचिका पर हाल में दिए उसके फैसले में केरल सरकार की याचिकाओं में उठाए गए मुद्दे भी आते हैं।
उच्चतम न्यायालय की एक पीठ ने तमिलनाडु सरकार की एक याचिका पर आठ अप्रैल को महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए दूसरे दौर में राष्ट्रपति के विचार के लिए 10 विधेयकों को रोककर रखने के फैसले को अवैध और कानून के लिहाज से त्रुटिपूर्ण करार देते हुए खारिज कर दिया था।
पीठ ने पहली बार यह निर्धारित किया कि राष्ट्रपति को राज्यपाल द्वारा उनके विचार के लिए आरक्षित विधेयकों पर उस तारीख से तीन महीने की अवधि के भीतर निर्णय लेना चाहिए, जिस दिन विधेयक उन्हें भेजा गया था।
केरल ने अपने मामले में इसी तरह के निर्देश देने का अनुरोध किया था।
भाषा गोला नरेश
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