26.7 C
Jaipur
Monday, July 14, 2025

युद्ध शल्य चिकित्सा संग्रहालय: सैन्य चिकित्सकों के जीवन की झलक दिखातीं दुर्लभ वस्तुएं

Newsयुद्ध शल्य चिकित्सा संग्रहालय: सैन्य चिकित्सकों के जीवन की झलक दिखातीं दुर्लभ वस्तुएं

पुणे, 14 जुलाई (भाषा) सर्जिकल उपकरण, युद्धक्षेत्र डायरियां और घायल सैनिकों के शरीर से निकाले गए छर्रे यहां युद्ध शल्य चिकित्सा संग्रहालय में एक अनूठी प्रदर्शनी का हिस्सा हैं, जो सैन्य चिकित्सा और अग्रिम मोर्चे पर सेवा देने वाले सशस्त्र बलों के वीर चिकित्सकों के जीवन की एक दुर्लभ झलक पेश करती हैं।

सशस्त्र सेना चिकित्सा महाविद्यालय (एएफएमसी) के शल्य चिकित्सा विभाग में स्थित यह संग्रहालय भारत और संभवतः एशिया में अपनी तरह का एक अनूठा संस्थान है।

दशकों से सावधानी के साथ तैयार किया गया यह संग्रहालय चिकित्सा छात्रों, स्कूली बच्चों, भूतपूर्व सैन्यकर्मियों और अतिथि गणमान्य व्यक्तियों को आकर्षित करता है। यह सैन्य सर्जन के जीवन और चुनौतियों की झलक प्रदान करता है तथा यह भी बताता है कि प्रथम विश्वयुद्ध के मेसोपोटामिया से लेकर आधुनिक आपदा राहत अभियानों तक, किस प्रकार प्रमुख वैश्विक और क्षेत्रीय संघर्षों के दौरान युद्ध चिकित्सा विकसित हुई है।

एएफएमसी के सर्जरी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर कर्नल जाफर हुसैन ने कहा, ‘‘लोग अकसर ‘युद्ध शल्य चिकित्सा’ का मतलब नहीं समझ पाते। यह नियमित चिकित्सा प्रशिक्षण का हिस्सा नहीं है। इस संग्रहालय की परिकल्पना इसी कमी को पूरा करने के लिए की गई थी, ताकि यह दिखाया जा सके कि एक सैन्य सर्जन क्या करता है और युद्ध के मैदान में उसे किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है।’’

वर्ष 1948 में स्थापित इस संग्रहालय में कलाकृतियां, दुर्लभ शल्य चिकित्सा उपकरण, युद्धक्षेत्र डायरियां, घायल सैनिकों के शरीर से निकाले गए छर्रे तथा विभिन्न अभियानों में सेवा देने वाले सैन्य चिकित्सकों की व्यक्तिगत वस्तुएं रखी गई हैं।

सबसे आकर्षक चीजों में 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान कानपुर के 7-वायु सेना अस्पताल में हताहतों के शरीर से निकाले गए छर्रे भी शामिल हैं।

इसमें शाही जापानी सेना के सैनिकों को आमतौर पर दी जाने वाली जापानी समुराई तलवारों पर भी एक खंड है। यह युद्धकालीन चिकित्सा की नैतिकता का प्रमाण है। ये तलवारें भारतीय सेना के डॉक्टरों को उपहार में दी गई थीं, जिन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान बर्मा, इंडोनेशिया और अराकान क्षेत्र में जापानी युद्धबंदियों का इलाज किया था।

वहीं, एक अन्य महत्वपूर्ण विशेषता विश्वयुद्ध के दौरान मेसोपोटामिया में तैनात की गई तृतीय भारतीय फील्ड एंबुलेंस की संरक्षित युद्ध डायरी है। ब्रिटिश उच्चायोग द्वारा दान की गई इस डायरी में 1915 से 1916 तक की दैनिक चिकित्सा गतिविधियों का विवरण है तथा यह 20वीं सदी के आरंभिक युद्धक्षेत्र की देखभाल गतिविधियों का प्राथमिक विवरण है।

संग्रहालय में 60 पैराशूट फील्ड अस्पताल के योगदान को भी प्रदर्शित किया गया है, जो भारतीय सेना की एकमात्र हवाई चिकित्सा इकाई है। हवाई मदद और त्वरित तैनाती के लिए डिज़ाइन किए गए उपकरणों के साथ यह इकाई संघर्ष क्षेत्रों में अभियानों के साथ-साथ म्यांमा में ऑपरेशन ब्रह्मा, नेपाल में मैत्री, तुर्की में दोस्त और इंडोनेशिया में समुद्र मैत्री जैसे आपदा राहत प्रयासों में अग्रणी रही है।

ऐतिहासिक संबंधों की गहराई के चलते संग्रहालय में 1917 के चिकित्सा उपकरण भी प्रदर्शित हैं, जिनमें से कुछ जेम्स वाइज एंड कंपनी द्वारा बनाए गए थे।

इस संग्रह में कैप्टन पी एन बर्धन (जो बाद में मेजर जनरल के रूप में सेवानिवृत्त हुए) का निजी सामान भी शामिल है। उन्होंने अपना कैरियर ब्रिटिश रॉयल आर्मी मेडिकल कोर से शुरू किया था और बाद में एएफएमसी के कमांडेंट के रूप में कार्य किया।

उनकी मेस जैकेट, चांदी के मेडिसिन वेट और विंटेज जिलेट रेजर सैन्य चिकित्सा के युग एवं लोकाचार को दर्शाते हैं।

प्राचीन से लेकर आधुनिक तक, संग्रहालय में 2600 ईसा पूर्व की भारतीय शल्य चिकित्सा परंपराओं की विरासत का भी पता चलता है। शल्य चिकित्सा के जनक सुश्रुत द्वारा प्रयुक्त उपकरणों के चित्र तथा प्रारंभिक शल्य चिकित्सा तकनीकों का वर्णन सहस्राब्दियों से भारत के चिकित्सा ज्ञान की निरंतरता को स्थापित करते हैं।

सशस्त्र सेना चिकित्सा सेवा (एएफएमएस) की महानिदेशक सर्जन वाइस एडमिरल आरती सरीन ने भी युद्ध सर्जरी संग्रहालय का दौरा किया। वह एएफएमसी में मेडिकल कैडेटों के सेवा में शामिल होने से संबंधित समारोह में भाग लेने के लिए पुणे में थीं।

भाषा नेत्रपाल सुरेश

सुरेश

Check out our other content

Check out other tags:

Most Popular Articles