नयी दिल्ली, 14 जुलाई (भाषा) सरकार की सौर और पवन परियोजनाओं के लिए अंतर-राज्यीय पारेषण प्रणाली (आईएसटीएस) शुल्क छूट सीमा को बढ़ाने की कोई योजना नहीं है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने यह जानकारी दी है।
सौर और पवन परियोजनाओं की स्थापना और संचालन के लिए अंतर-राज्यीय पारेषण प्रणाली (आईएसटीएस) शुल्क छूट की घोषणा की समयसीमा 30 जून, 2025 को समाप्त हो गई।
इस सवाल कि ‘‘क्या क्या सरकार आईएसटीएस छूट बढ़ाने की योजना बना रही है,’’ के जवाब में एक अधिकारी ने पीटीआई-भाषा को बताया, ‘‘हम (सौर और पवन परियोजनाओं के लिए) छूट नहीं बढ़ाएंगे।’’
इस साल जून तक चालू नहीं हो पाने वाली परियोजनाओं की वित्तीय लाभप्रदता पर एक अन्य सवाल के जवाब में अधिकारी ने कहा, ‘‘हम मामला-दर-मामला आधार पर उनकी स्थिति का मूल्यांकन करेंगे और उसी के अनुसार उपयुक्त राहत प्रदान करने का निर्णय लेंगे।’’
आईएसटीएस छूट, अक्षय ऊर्जा डेवलपर्स को उन महत्वपूर्ण शुल्क से बचने में मदद करती है जो अन्यथा उत्पादक राज्य से उपभोग केंद्रों तक बिजली ले जाने पर लगते हैं।
अंतर-राज्यीय पारेषण प्रणाली (आईएसटीएस) शुल्क भारत में राज्य की सीमाओं के पार बिजली संचारित करने के लिए लगाए जाने वाले शुल्क हैं।
यदि आईएसटीएस छूट को आगे नहीं बढ़ाया जाता है, तो इससे शुल्क में उल्लेखनीय वृद्धि होगी और नवीकरणीय स्रोतों से उत्पादित बिजली कोयले जैसे अन्य पारंपरिक स्रोतों की तुलना में गैर-प्रतिस्पर्धी हो जाएगी।
पिछले महीने, शीर्ष उद्योग निकाय इलेक्ट्रिक पावर ट्रांसमिशन एसोसिएशन (ईपीटीए) ने सरकार से आईएसटीएस शुल्क छूट को मार्च, 2026 तक बढ़ाकर लगभग 30 गीगावाट स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं की व्यवहार्यता का संरक्षण करने का आग्रह किया था।
ईपीटीए के महानिदेशक जी पी उपाध्याय ने कहा था कि यदि छूट में विस्तार के रूप में कंपनियों को राहत नहीं दी जाती है, तो लगभग दो लाख करोड़ रुपये का निवेश प्रभावित होगा।
उन्होंने कहा कि बिजली कंपनियों के नियंत्रण से परे कारणों से क्षमता में देरी हुई है और वे समाधान के लिए सीईआरसी (केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग) का रुख कर सकती हैं। इससे राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में फैली इन परियोजनाओं के चालू होने में और देरी हो सकती है।
नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं को भूमि की उपलब्धता, स्थानीय मुद्दों और ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (राजस्थान और गुजरात में पाया जाता है) आदि के कारण विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
भाषा राजेश राजेश अजय
अजय